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Dussehra 2022: ग्रेटर नोएडा वेस्ट में आज भी डराता है रावण, इस गांव में नहीं मनाया जाता दशहरा

Dussehra 2022 देशभर में दशहरा का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है लेकिन ग्रेटर नोएडा वेस्ट के बिसरख गांव में दशहरा पर्व पर सन्नाटा पसरा रहता है यहां पर रावण का पुतला भी नहीं फूंका जाता है। इस गांव में रावण का पुतला दहन करने को अपशकुन मानते हैं।

By Jagran NewsEdited By: Abhishek TiwariPublished: Mon, 03 Oct 2022 11:46 AM (IST)Updated: Wed, 05 Oct 2022 07:29 AM (IST)
Dussehra 2022: ग्रेटर नोएडा वेस्ट में आज भी डराता है रावण, इस गांव में नहीं मनाया जाता दशहरा
Dussehra 2022: ग्रेटर नोएडा वेस्ट में आज भी डराता है रावण, इस गांव में नहीं मनाया जाता दशहरा

नोएडा, जागरण डिजिटल डेस्क। Dussehra 2022: ग्रेटर नोएडा वेस्ट के बिसरख गांव में दशहरा का पर्व नहीं मनाया जाता है और न ही यहां रावण का पुतला जलाने की कोई जुर्रत करता है। यहां पुतला दहन करने को अपशकुन माना जाता है। दरअसल बिसरख गांव को लंकापति रावण की जन्मस्थली माना जाता है।

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दशहरे के दिन छाया रहता मातम

देशभर में बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक दशहरा पर्व धूमधाम से मनाया जाएगा। नवरात्रि पर्व के मौके पर शहरों में जगह-जगह रामलीला का आयोजन किया था और दशहरा के दिन रावण का पुतला दहन किया जाता है, लेकिन ग्रेटर नोएडा के बिसरख गांव में ऐसा नहीं किया जाता है। यहां दशहरे के दिन सन्नाटा छाया रहता है।

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क्या है मान्यता?

ऐसी मान्यता है कि रावण का जन्म ग्रेटर नोएडा वेस्ट के बिसरख गांव में हुआ था। गांव का नाम रावण के पिता विशरवा मुनि के नाम पर ही पड़ा। इस गांव में रावण का मंदिर भी बना हुआ है। यहां के लोग रावण को गलत नहीं मानते। साथ ही भगवान राम की पूजा करते हैं और उनके आदर्शो को मानते भी हैं।

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यहां लोग रावण को विद्वान पंडित बताते हैं, इसलिए गांव में रावण के पुतले का दहन करते। माना जाता है कि रावण के पिता विशरवा मुनि ने भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए बिसरख गांव में अष्टभुजा धारी शिवलिंग स्थापित कर मंदिर बनवाया था।

अष्टभुजाधारी शिवलिंग आज भी गांव के पुराने मंदिर में मौजूद है। ऐसा शिवलिंग हरिद्वार तक किसी मंदिर में नहीं मिलता। मंदिर के पास ही रावण का भी मंदिर है। जिसमें दर्जनों देवी देवताओं की मूर्ति भी विराजमान है।

सालों बाद कम हो रहा डर

समय के साथ गांव के लोगों की सोच में बदलाव आ रहा है। विजयदशमी के मौके पर गांव में पहले मातम जैसा माहौल रहता था, लेकिन समय के साथ इसमें कुछ बदलाव देखा जा रहा है। यहां लोगों को न तो रामलीला के मंचन से परहेज हैं और न रावण दहन से।

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