ड्राई क्लीनिंग रोबोट दूर करेगा सोलर पैनल की धूल, बढ़ेगा 20 प्रतिशत बिजली उत्पादन
हीरो मोटोकार्प लिमिटेड के सेंटर आफ इनोवेशन एंड टेक्नोलाजी के लीड यूटिलिटी मेंटेनेंस राजेश शर्मा ने बताया कि इस रोबोट की कार्यक्षमता काफी बेहतर है। जयपुर स्थित कंपनी की साइट में इन्हें लगाया गया है। इनके परीक्षण के दौरान आई लागत की वसूली 18 से 24 महीनों में हो जाएगी।

अर्पित त्रिपाठी, ग्रेटर नोएडा : सौर ऊर्जा उत्पादन में पैनल पर जमी धूल बाधा बनती है और सूर्य की सीधी किरणे नहीं मिल पाने के कारण करीब 15 से 20 प्रतिशत बिजली का उत्पादन कम होता है। आइआइटी जोधपुर से इंजीनियरिंग स्नातक नीरज कुमार ने एक रोबोट तैयार किया है जिसके माध्यम से बगैर पानी खर्च किए सौर पैनलों की बेहतर सफाई कम समय में हो रही है। इसे एसे समझें। बड़े सौर ऊर्जा संयत्र में लगे चार हजार पैनल को जहां एक व्यक्ति तीन दिन में प्रतिदिन छह घंटे साफ करता है यानी कुल 18 घंटे लगते हैं, यह रोबोट मात्र 45 मिनट में इसी कार्य को संपन्न कर देता है। सौर ऊर्जा का अब बड़े स्तर पर हो रहा प्रयोग। हजारों की संख्या में पैनल लगा कर बिजली उत्पादन किया जा रहा है, लेकिन पैनल अपनी क्षमता के मुताबिक तभी बिजली उत्पन्न करेंगे जब वे धूल रहित होंगे। वर्ष 2017 में इस रोबोट की डिजाइन का पेटेंट हो चुका है। कई कंपनियों में इसका प्रयोग हो रहा है।
पढ़ने के दौरान तैयार की डिजाइन
नीरज कुमार ने आइआइटी में अपने बीटेक कोर्स के आखिरी वर्ष 2014 में रोबोट को डिजाइन किया था जिसे आगे जाकर स्किलेंसर नाम से स्टार्टअप बनाकर इसे मूर्त रूप दिया। खास बात यह है कि इस रोबोट को संचालित करने के लिए बिजली कनेक्शन या बैटरी की जरूरत नहीं है। ये खुद सूरज की किरणों से चार्ज होता है। इसकी मोल्डिंग की पकड़ इतनी मजबूत है की 98 किलोमीटर की रफ्तार से चल रही हवा भी इसे नहीं उखाड़ पाएगी। इसमें लगे ब्रिसल (सफाई करने वाले महीन व मुलायम तार) पैनल में किसी तरह का क्रैक नहीं आने देते जो मानव श्रम में संभावित होता है। रोबोट को अमेरिका स्थित ग्लोबल सेफ्टी साइंस कंपनी की ओर से भी यूएल सर्टिफिकेट मिल चुका है। कंपनी को नोएडा व फरीदाबाद में कार्यालय है।
पानी की भी होगी बचत
नीरज ने बताया कि ड्राइक्लीनिंग रोबोट के जरिये बड़ी मात्रा में पानी की बचत की जा सकती है। यदि 3,500 सौर पैनल की सफाई पानी से महीने में दो बार हो, तो एक बार में सात हजार लीटर पानी का इस्तेमाल होता है। अब यदि यही सफाई रोबोट से की जाए तो इस पानी की बचत होगी।
आइआइएम लखनऊ के इन्क्यूबेटर सेंटर से शुरू हुआ सफर
डिजाइन बनने के बाद वर्ष 2018 में रोबोट तैयार हो गया था, लेकिन इसकी ब्रांडिंग और जानकारी लोगों तक पहुंचाने की बड़ी चुनौती थी। ऐसे में नीरज को दोस्त मनीष दास का साथ मिला। मनीष भी इंजीनियरिंग हैं। दोनों ने नोएडा स्थित आइआइएम लखनऊ कैंपस के इन्क्यूबेटर सेंटर में प्रोजेक्ट की प्रस्तुति दी। यहां आए अल्फा वेक्टर कंपनी के संस्थापक धिआनु दास को प्रोजेक्ट काफी पसंद आया और फंडिंग के लिए हां कर दी। वर्ष 2019 में फरीदाबाद में आयोजित वेंचर कैटालिस्ट में भी नीरज ने प्रोजेक्ट की प्रस्तुति दी, जहां आटोमोबाइल पार्ट सप्लाई करने वाली इंडो आटो टेक के एसके जैन ने इसमें निवेश की हामी भरी। एसके जैन ने बताया कि जब इन बच्चों को देखा तो खुशी होने के साथ ही गर्व भी हुआ कि अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा देने में बेहतरीन कार्य कर रहे हैं। इनका रोबोट हल्का होने के साथ ही काफी किफायती भी है। तकनीक इतनी बेहतर है कि रोबोट को 15 से 20 वर्ष तक इसका इस्तेमाल किया जा सकता है।
कंप्यूटर और एप से रख सकते हैं नजर
क्लाउड डाटा पर आधारित तकनीक के जरिये रोबोट के कार्य की कंप्यूटर व एप से निगरानी कर सकते हैं। जिस साइट पर रोबोट लगा है, वहां का तापमान, आर्द्रता, हवा, वर्षा, रोबोट के चलने की स्पीड, कितने पैनल साफ हुए आदि की जानकारी मिल जाती है।
हीरो मोटोकार्प लिमिटेड के सेंटर आफ इनोवेशन एंड टेक्नोलाजी के लीड यूटिलिटी मेंटेनेंस राजेश शर्मा ने बताया कि इस रोबोट की कार्यक्षमता काफी बेहतर है। जयपुर स्थित कंपनी की साइट में इन्हें लगाया गया है। इनके परीक्षण के दौरान ये साबित हो गया कि इन पर आई लागत की वसूली 18 से 24 महीनों में हो जाएगी।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।