Noida News: धर्म परिवर्तन के मामले में विवेचक की रिमांड याचिका खारिज, आरोपित की रिहाई का आदेश
धर्म परिवर्तन के मामले में गिरफ्तार मो. अमीन कोलू को रिमांड मजिस्ट्रेट ने रिहा करने का आदेश दिया। पुलिस ने पहले दी गई जमानत रद्द नहीं कराई थी न ही गैर जमानती वारंट जारी किया। पीड़िता ने छेड़छाड़ धर्म परिवर्तन और निकाह का आरोप लगाया था। अधिवक्ता ने दूसरी गिरफ्तारी को जमानत आदेश का उल्लंघन बताया जिसके बाद अदालत ने यह फैसला सुनाया।

जागरण संवाददाता, ग्रेटर नोएडा। रिमांड मजिस्ट्रेट शिवानी त्यागी की अदालत ने धर्म परिवर्तन के मामले में गिरफ्तार कर जेल भेजे गए आरोपित मो. अमीन कोलू को तत्काल रिहा करने का आदेश दिया है।
सुनवाई में सामने आया कि पुलिस ने पूर्व में अदालत द्वारा दी गई जमानत को न तो निरस्त कराया और न ही गैर जमानती वारंट जारी कराए। थाना फेज-एक में 28 अप्रैल 2025 को पीड़िता ने मो. अमीन कोलू पर मामला दर्ज कराया था।
पीड़िता का आरोप था कि कोलू ने व्यावसायिक कार्य के बहाने उसे अपनी फैक्ट्री में बुलाकर छेड़छाड़ की, धर्म परिवर्तन और निकाह करने का दबाव बनाया। पुलिस ने आरोपित के खिलाफ धारा-74, 75 और 76 में मामला दर्ज कर गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था। सात मई 2025 को आरोपित को सत्र न्यायालय से जमानत मिल गई थी।
विवेचक ने 13 सितंबर 2025 को कोलू को पुन: गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था। साथ ही कोलू के खिलाफ धर्म परिवर्तन अधिनियम-2024 की धारा 3(1) और 5(1) भी जोड़ दी थी। पुलिस ने चार्जशीट अदालत में दाखिल की थी। जिसकी सुनवाई रिमांड मजिस्ट्रेट शिवानी त्यागी की अदालत में चल रही थी। अधिवक्ता सुमित भड़ाना ने अदालत में आरोपित का पक्ष रखते हुए कहा दूसरी बार गिरफ्तारी न्यायालय के जमानत आदेश का उल्लंघन है।
केवल पूर्व के तथ्यों को आधार बनाकर धर्म परिवर्तन की धारा जोड़ना न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के अर्नेश कुमार बनाम स्टेट आफ बिहार (2014) और प्रदीप राम बनाम स्टेट आफ झारखंड (2019) के मामलों का हवाला दिया। कहा कि जमानत पर रहने के दौरान आरोपित को पुनः गिरफ्तार करने के लिए सक्षम न्यायालय की अनुमति लेना अनिवार्य है, जो कि पुलिस ने इस मामले में नहीं ली।
जमानत के बाद पुलिसकर्मी उनकी फैक्ट्री के कर्मचारियों को परेशान करते रहे। इसकी शिकायत उन्होंने पुलिस आयुक्त से भी की थी। दोनों पक्षों की दलीलें सुनने, केस डायरी और अन्य दस्तावेजों को देखने के बाद न्यायालय ने पाया कि आरोपित कोलू पहले से इस मामले में सत्र न्यायालय से जमानत पर है। जमानत आदेश अभी भी प्रभावी है। उसे निरस्त नहीं किया गया।
विवेचक ने न तो सत्र न्यायालय से आरोपित की गिरफ्तारी की अनुमति ली और न गैर जमानती वारंट जारी कराए। केवल पूर्व में दर्ज मामले और बयानों के आधार पर नई धाराएं जोड़कर गिरफ्तारी करना कानूनन गलत है।
अदालत ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की व्यवस्था के अनुसार ऐसी गिरफ्तारी तब तक वैध नहीं मानी जा सकती जब तक सक्षम न्यायालय से अनुमति नहीं मिली हो। इसी आधार अदालत ने आरोपित की जमानत मंजूर कर ली।
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