मानसिक विकास या मसल कंट्रोल की है परेशानी तो हो सकती है सेरेब्रल पाल्सी, जानिये क्या हैं लक्षण?
सेरेब्रल पाल्सी (सीपी) से ग्रसित बच्चों के लिए सही जानकारी और सहयोग महत्वपूर्ण है। परिवार समाज और स्कूल का सकारात्मक माहौल उन्हें आत्मनिर्भर बना सकता है। यह बीमारी गर्भावस्था या जन्म के दौरान हो सकती है जिसके कई कारण हैं। फिजियोथेरेपी और स्पीच थेरेपी जैसे उपचार मददगार होते हैं। मां का स्वास्थ्य और बच्चे के जन्म के समय सावधानी बरतने से सीपी के खतरे को कम किया जा सकता है।

आशीष चौरसिया, ग्रेटर नोएडा। अगर आपका भी बच्चा सेरेब्रल पाल्सी (सीपी) से ग्रसित है तो इसे रुकावट नहीं बल्कि हिम्मत और उम्मीद से भरा एक सफर मानना चाहिए। सही जानकारी के जरिए दिए गए प्यार और सहयोग से इन बच्चों के सपनों को सच किया जा सकता है।
बालरोग विशेषज्ञों का मानना है कि परिवार का साथ, समाज की समझ और स्कूलों में बराबरी के लिए जरूरी माहौल इन बच्चों को आत्मनिर्भर बनने का मौका देता है। व्हीलचेयर, ब्रेसेस और कम्युनिकेशन डिवाइस जैसे साधन उनकी आजादी और आत्मविश्वास को बढ़ाते हैं।
सेरेब्रल पाल्सी की समस्या प्रेगनेंसी के समय, जन्म के दौरान या जन्म के कुछ महीनों बाद भी हो सकती है। यह बीमारी दुर्लभ होने के साथ ही गंभीर भी है। यह एक हजार में किन्ही दो या तीन बच्चों में बीमारी मिलती है।
सीपी के पीछे कई वजहें हो सकती हैं, जैसे दिमाग में आक्सीजन की कमी, संक्रमण, समय से पहले जन्म या फिर हेरेडिटरी वजहें हो सकती हैं। यह बीमारी न तो फैलती न तो बढ़ती है, लेकिन इसका असर लंबे समय तक रहता है।
फिजियोथेरेपी, आक्यूपेशनल थेरेपी और स्पीच थेरेपी जैसी सेवाएं सीपी से जूझ रहे बच्चों की बहुत मदद करती हैं। इलाज और देखभाल समय पर शुरू कर दी जाए, तो उनकी मसल्स मजबूत होती हैं और चलने-फिरने की क्षमता बेहतर होती है।
ग्रेटर नोएडा के राजकीय आयुर्विज्ञान संस्थान (जिम्स) के निदेशक बिग्रेडियर डा. राकेश गुप्ता ने बताया कि सेरेब्रल पाल्सी बच्चों में होने के मुख्य तीन कारण होते हैं, जिसमें बच्चे का समय से पहले जन्म लेना, जन्मे के दौरान बच्चे का न रोना और जन्म के दौरान बच्चे में पीलिया का होना है।
इससे बच्चों में फिजिकल और मेंटल दोनों या फिर इनमें से किसी एक तरह की परेशानी हो सकती है। इससे बच्चों का दिमाग ठीक से विकसित नहीं हो पाता है। शरीर के विकास में परेशानी, मसल कंट्रोल और बैलेंस की आ समस्या आती है।
जिम्स के बालरोग विभाग की डॉ. संजू यादव ने बताया कि सीपी मुख्यता चार तरह की होती है। शरीर में अकड़न (अटैक्सी सीपी), मिक्सड सीपी, अटैक्सी सीपी और हाइपोटोनिक सीपी शामिल है। सीपी बीमारी को रोका जा सकता है, लेकिन जड़ से खत्म नहीं किया जा सकता है।
यथार्थ सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल, नोएडा एक्सटेंशन की विकासात्मक शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. स्वाति छाबड़ा ने बताया कि मां को गर्भावस्था के दौरान अपनी सेहत का ध्यान रखने की जरूरत होती है। नियमित जांच के साथ ही गर्भधारण से पहले टीकाकरण करवाना चाहिए। संक्रमण और हानिकारक चीजों से बचने के अलावा मधुमेह जैसी बीमारियों को नियंत्रित रखना चाहिए।
जिम्स के बालरोग विभाग के डॉ. राजीव ने बताया कि गर्भावस्था के दौरान मां को हाइपरटेंशन की समस्या बच्चे में सीपी का खतरा बढ़ाता है। जन्म के दौरान बच्चे का अगर ब्लड शुगर कम निकलने से भी सीपी पाजटिव हो सकता है। जन्म के करीब तीन वर्ष तक मानसिक तौर पर संक्रमण या दिमागी बुखार और लकवा मारने की समस्या भी सीपी से ग्रसित करता है।
क्या हैं लक्षण?
- समय से मानसिक और शारीरिक विकास न होना।
- तीन महीने में गर्दन का सीधा नहीं कर पाना।
- आठ से दस महीने तक में बैठ नहीं बैठ पा रहा है।
- डेढ़ वर्ष तक की आयु में नहीं चल पाने की समस्या।
- आई कांटेक्ट नहीं करना।
- शरीर का ढीला रहना।
- बच्चे को उठाने के दौरान पैर टाइट होना।
- बच्चे का किसी एक हिस्से का अधिक काम करना।
- अधिक लार और कब्ज की समस्या।
- खाने की समस्या और वजन का नहीं बढ़ना।
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