नोएडा-ग्रेटर नोएडा में ठगे गए 2 लाख से ज्यादा फ्लैट खरीदार, बिल्डरों ने बैंकों के साथ मिलकर किया बड़ा खेल
नोएडा- ग्रेटर नोएडा में बिल्डर और बैंकों ने मिलकर प्राधिकरण के साथ साठगांठ कर दो लाख से ज्यादा फ्लैट खरीदारों को धोखा दिया है। सबवेंशन स्कीम के जरिये हुए इस घोटाले की जांच अब सीबीआई करेगी। उत्तर प्रदेश अपार्टमेंट एक्ट 2010 और रेरा लागू होने के बावजूद बिल्डरों पर कार्रवाई नहीं हुई जिससे खरीदारों को घर मिलने में देरी हो रही है।

कुंदन तिवारी, नोएडा। बिल्डर-बैंकों ने सांठगांठ कर सुनियोजित तरीके से फ्लैट खरीदारों के साथ ठगी की है। अब इस ठगी की जांच का जिम्मा अब सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को सौंप दिया है, क्योंकि बिल्डर-बैंक ने प्राधिकरण अधिकारियों को साथ लेकर एक सिंडीकेट की तरह लाखों फ्लैट खरीदारों के साथ ठगी की है।
इस कारण आज तक नोएडा ग्रेटर नोएडा में दो लाख से अधिक फ्लैट खरीदार बैंक की ईएमआइ चुका रहे है, लेकिन उनको आशियाना कब मिलेगा इसका अता पता तक नहीं है।
यह सारा खेल बिल्डरों और बैंकों ने सबवेंशन स्कीम के जरिये खेला है, जिसमें रियल एस्टेट सेक्टर को बैंकों की ओर से सहयोग देने की प्रक्रिया से शुरू किया गया, जिसमें फ्लैट खरीदारों को एनसीआर में संपत्ति खरीदना आसान व आकर्षक करने के ऑफर से शुरू किया गया।
बैंकों ने प्रॉपर्टी पर दे दिया 80 प्रतिशत का लोन
बिल्डर परियोजना में फ्लैट खरीदार आ गए। उन्होंने कुल लागत का पांच से 20 प्रतिशत तक पैसा बिल्डर को देकर फ्लैट बुक कराया। इसके बाद बिल्डर ने बैंक से प्रॉपर्टी पर 80 प्रतिशत का लोन दिलाया। यह लोन बिल्डर के पास गया। योजना के तहत बिल्डर को लोन की ईएमआइ पर लगने वाले ब्याज का भुगतान बैंक को करना था।
बिल्डर ने बंद कर दिया ब्याज देना
कुछ किश्ते भरने के बाद बिल्डर ने ब्याज देना बंद कर दिया। यह पैसा अन्य परियोजना में डायवर्ट किया। साथ ही निर्माण कार्य भी बंद कर दिया। ऐसे में बायर्स को न तो फ्लैट मिला, ब्याज और किस्त जमा नहीं होने पर वह डिफाल्टर हो गया, जिसके बाद से दो लाख से अधिक फ्लैट खरीदार आशियाना पाने के लिए भटक रहे है।
बता दें कि नोएडा ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण ने बिल्डर परियोजनाओं के अनुसार कुल 43,1064 यूनिट सेक्शन है। इसमें 212752 यूनिट के लिए प्राधिकरण ने ओसी जारी की। यानी अब तक 218312 यूनिट को ओसी ही जारी नहीं की गई, जिनका निर्माण कब तक होगा इसकी जानकारी प्राधिकरण के पास नहीं है। मसलन ये सभी परियोजनाएं काफी लेट या अधूरी है। बिल्डरों ने इनकी बुकिंग का पैसा दूसरी परियोजना में ट्रांसफर कर दिया।
बिल्डरों पर मेहरबानी में सरकार भी नहीं रही पीछे
नेफोवा महासचिव श्वेता भारती ने बताया कि बिल्डरों पर नकेल कसने के लिए उत्तर प्रदेश अपार्टमेंट एक्ट 2010 लागू होने के बाद एस्क्रो अकाउंट खोलने का प्रविधान था, लेकिन बिल्डरों-अधिकारियों की सांठगांठ से नियम को दरकिनार कर दिया। बिल्डरों के प्रति तत्कालीन सरकार व प्राधिकरण अधिकारियों की इतनी रहमदिली थी कि एक्ट लागू होने से पहले ही बिल्डरों को भूखंड आवंटन में सहूलियत उपलब्ध करानी शुरू कर दी थी।
यहां तक मोटेरियल पीरियड दे दिया गया। इसमें बिल्डरों को 10 प्रतिशत राशि लेकर भूखंड आवंटन कर चार वर्ष की किश्त बना दी गई, लेकिन किश्त की जगह 24 माह तक केवल बकाया राशि का ब्याज ही लिया जाने का प्रविधान किया। तब तक तमाम बिल्डरों ने इस सुविधा का लाभ उठाकर दूसरी कंपनियों में खरीदारों का पैसा ट्रांसफर चुके थे।
यही कारण है कि आज तक दो लाख फ्लैट खरीदार बिल्डरों के चंगुल में बाहर नहीं निकल सके। बिल्डरों ने एस्को अकाउंट तक नहीं खुलवाया जा सका। वर्ष 2016 में रेरा लागू होने के बाद बिल्डरों पर एस्क्रो अकाउंट खुलवाने का दबाव नहीं बनाया गया।
वर्ष 2024 में जब बिल्डर पर प्राधिकरण अधिकारियों ने एस्क्रो अकाउंट खोलन का दबाव बनाया तब तक बहुत देर चुकी थी, अधिकारियों की बिल्डर सुनने को तैयार ही नहीं हुए क्योंकि उनका मन तत्कालीन सरकार व अधिकारी पहले ही बढ़ा चुके है।
एक दशक में डूब चुकी हैं या दिवालिया घोषित हो चुकी बिल्डर कंपनियां
- आम्रपाली ग्रुप : 2019 में रेरा रजिस्ट्रेशन रद, एनबीसीसी को सौंपी गई परियोजनाएं, 35 हजार खरीदार फंसे हैं।
- अंसल एपीआई : कर्ज और कानूनी विवादों में फंस गई कंपनी, कई परियोजनाएं अधूरी, नौ हजार से अधिक निवेशक फंसे हैं।
- यूनिटेक : 2017 में एनसीएलटी में दिवालिया प्रक्रिया की शुरुआत हुई, 12 हजार होम बायर्स का पैसा अटक गया।
- जेपी इंफ्राटेक : 2017 में दिवालिया घोषित हो गई कंपनी यमुना एक्सप्रेसवे परियोजना प्रभावित, 20 हजार से अधिक निवेशक फंसे हैं।
- सुपरटेक : 2022 में एनसीएलटी ने दिवालिया प्रक्रिया शुरू की, 40,000 से ज्यादा फ्लैट्स अटके है। .
- थ्री सी कंपनी- कई प्रोजेक्ट्स में देरी हुई है वित्तीय संकट में फंसी है कंपनी, 18 हजार से अधिक निवेशक फंसे हैं
- पार्श्वनाथ डेवलपर्स- कर्ज में डूबी है कंपनी कई परियोजनाए रुके है।
- एचडीआइएल- 2019 में दिवालिया घोषित, कंपनी पीएमसी बैंक घोटाले से जुड़ा नाम।
सुप्रीम कोर्ट ने सुपरटेक प्रोजेक्ट्स समेत सात डेवलपर्स के खिलाफ सीबीआई की प्रारंभिक जांच का आदेश दिया, जहां घर खरीदारों ने सबवेंशन स्कीम में आवास ऋण लिया था, जिनकी परियोजनाएं देरी से पूरी हुईं और समय पर पूरी नहीं हुईं। साथ ही, आवास ऋण देने वाले बैंकरों के खिलाफ भी जांच की जाएगी। यह मामला सुपरटेक समाधान योजना से संबंधित नहीं है। हमने पहले ही प्रस्तुत किए गए शीर्ष योजना में सबवेंशन स्कीम से संबंधित सभी घर खरीदारों को ऐसे समाधान के बारे में बताया है।
- आरके अरोड़ा, चेयरमैन, सुपरटेक समूह।
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