घातक साबित हो रहा ब्लड कैंसर का अधूरा इलाज
रक्त (ब्लड) कैंसर का इलाज भले ही संभव है लेकिन मरीज बीच में इलाज।

जागरण संवाददाता, नोएडा : रक्त (ब्लड) कैंसर का इलाज भले ही संभव है, लेकिन मरीज बीच में इलाज छोड़ देते हैं। नतीजतन बीमारी दोबारा उभर आती है। ऐसे में इलाज करना कठिन हो रहा। चाइल्ड पीजीआइ में पीडियाट्रिक हिमोटोलाजी आन्कोलाजी डा. नीता राधाकृष्णन ने बताया कि पिछले वर्ष कैंसर के 130 नए मरीज पंजीकृत हुए हैं। इनमें 80 से अधिक मरीज रक्त कैंसर के हैं। अस्पताल में वर्ष से 2017 से कैंसर का इलाज हो रहा है। अबतक 500 से अधिक कैंसर के मरीजों का उपचार किया जा चुका है।
रक्त कैंसर तीन प्रकार के लिफोमा, ल्यूकेमिया एवं मायलोमा होते हैं। पहले प्रतिवर्ष 50 से 60 मरीज आते थे, लेकिन अब अधिक मरीज आ रहे हैं। अब तक 12 से अधिक मरीजों का बोन मेरो ट्रांसप्लांट हो चुका है। इनमें पांच से अधिक रक्त कैंसर के मरीज हैं। रक्त कैंसर के मरीजों का इलाज छह माह से दो वर्षों तक चलता है। जांच के बाद मरीज दो से तीन माह इलाज करते हैं, लेकिन तबीयत में सुधार के बाद मरीज इलाज बंद कर देते हैं। उन्हें लगता है कि मर्ज ठीक हो गया है, लेकिन यह हानिकारक है। रक्त कैंसर होने पर कोशिकाएं यानि सेल्स व्यक्ति के शरीर में खून को बनने नहीं देते। शरीर के खून के साथ कैंसर व्यक्ति की बोन मेरो को भी नुकसान करता है। अगर बच्चे को बुखार, खून की कमी और खाने में तकलीफ होने रही है, तो जांच करानी चाहिए। लक्षण दिखने पर इलाज कराए। इलाज में देरी से परेशानी बढ़ सकती है। अधिकांश मरीजों का दवाओं से इलाज हो जा रहा है। बचे हुए मरीजों को बोन मेरो ट्रांसप्लांट करते हैं।
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लक्षण :
- वजन में कमी
- खून की कमी
- तिल्ली का बढ़ना
- थकान, कमजोरी
- शरीर में गिल्टियां
- लंबे समय तक बुखार
- हड्डियों और जोड़ों में दर्द
- अचानक से उल्टियां होना
- पेट में सूजन व भूख में कमी
- शरीर के विभिन्न अंगों से रक्तस्त्राव
- त्वचा पर जगह-जगह चकत्ते पड़ना
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