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    नोएडा में अवैध कॉलोनियां बनी मौत का जाल, सेप्टिक टैंक में दो भाइयों की मौत; और भी कई राज खुले 

    Updated: Tue, 04 Nov 2025 07:51 AM (IST)

    अवैध कॉलोनियां मौत का कुआं बनती जा रही हैं, जहां सुरक्षा मानकों की अनदेखी हो रही है। मूलभूत सुविधाओं का अभाव है और निर्माण कार्य बिना नियम के हो रहा है। स्थानीय प्रशासन और संबंधित विभाग इस गंभीर समस्या पर ध्यान नहीं दे रहे हैं, जिससे लोगों की जान जोखिम में है।

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    अवैध कॉलोनियां मौत का कुआं बनती जा रही हैं।

    मुनीश शर्मा, नोएडा। गौतमबुद्ध नगर में अवैध कॉलोनियों का विस्तार दिन-प्रतिदिन हो रहा है, जिससे लोग भूख से मर रहे हैं। 25-30 गज के मकानों में भी सुरक्षा मानकों की अनदेखी की जा रही है। इस लापरवाही के कारण बड़े पैमाने पर जान-माल का नुकसान हो रहा है, फिर भी जिम्मेदार बेखबर हैं।

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    कॉलोनाइजर सुरक्षा मानकों को पूरा किए बिना ही जमीन बेच रहे हैं। अधिकारी इन अवैध कॉलोनियों को देखते हुए बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराना अपनी जिम्मेदारी नहीं समझते। नतीजतन, ये अवैध कॉलोनियां मौत का जाल बनती जा रही हैं। सोमवार को सेक्टर 63 स्थित चोटपुर कॉलोनी में दो भाइयों की मौत के मामले में इसका नजारा देखा जा सकता है। भरा हुआ नाला साफ करते समय सेप्टिक टैंक का ढक्कन खोलते ही बड़े भाई की मौत हो गई। उसे बचाने आए छोटे भाई की भी मौत हो गई।

    सवाल यह उठता है कि गौतमबुद्ध नगर, नोएडा और ग्रेटर नोएडा में 250 से ज़्यादा अवैध कॉलोनियाँ हैं। कॉलोनाइजर इन कॉलोनियों को या तो बेच रहे हैं, या बेच चुके हैं, यह दावा करके कि वे केवल कागजों पर ही बुनियादी सुविधाएं प्रदान करते हैं। सस्ती दरों के कारण, आम लोग भी प्लॉट खरीद पा रहे हैं।

    संकरी गलियों और छोटे घरों को अक्सर नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है, चाहे वह सेप्टिक टैंक हो, वेंटिलेशन हो या अन्य मानक। चोटपुर कॉलोनी में चंद्रभान के घर में लापरवाही साफ़ दिखाई दी, जिसमें गैस आउटलेट पाइप का न होना और गेट के ठीक बगल में मैनहोल होना शामिल है। पुलिस और दमकल की गाड़ियों ने टैंक का लिंटल तोड़कर चंद्रभान और राजू को बचाया।

    भविष्य में होंगी बड़ी समस्याएं

    चोटपुर, बहलोलपुर, छिजारसी, डूब क्षेत्र, कुलेसरा और बिसरख सहित कई अवैध कॉलोनियाँ हैं। भंगेल, सलारपुर और सूरजपुर में भी ऐसी कॉलोनियाँ हैं, जहाँ अवैध निर्माण बड़े पैमाने पर हो रहा है। इनमें चार-पाँच मंज़िला इमारतों में छोटे-छोटे कमरे बनाए जा रहे हैं, जिनमें क्षमता से ज़्यादा लोग रहते हैं। यह स्थिति भविष्य में और भी समस्याएँ पैदा करेगी। गौतमबुद्ध नगर की सरकारी मशीनरी को इस मुद्दे पर ध्यान देने की ज़रूरत है।