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    संशोधित:::कर्ज के शटल से बेटी ले आई खामोश क्रांति

    By JagranEdited By:
    Updated: Mon, 16 May 2022 09:15 PM (IST)

    जागरण संवाददाता नोएडा मंजिल उन्हीं को मिलती है जिनके सपनों में जान होती है पंख से कुछ नहीं होता हौसलों से उड़ान होती है। तमिलनाडु की मदुरई की 17 वर्षीय मूक-बाधिर बैडमिटन खिलाड़ी जर्लिन अनिका जयराचगन और उनके परिवार ने इस बात को बखूबी साबित किया है।

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    संशोधित:::कर्ज के शटल से बेटी ले आई खामोश क्रांति

    जागरण संवाददाता, नोएडा : मंजिल उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है, पंख से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है। तमिलनाडु की मदुरई की 17 वर्षीय मूक-बाधिर बैडमिटन खिलाड़ी जर्लिन अनिका जयराचगन और उनके परिवार ने इस बात को बखूबी साबित किया है। जर्लिन ने ब्राजील में हाल में संपन्न डेफ ओलिपिक में तीन स्वर्ण पदक जीते हैं। उनकी प्रतिभा की हर कोई प्रशंसा कर रहा है, लेकिन उनके यहां तक पहुंचने का सफर इतना भी आसान नहीं रहा। सोमवार को वह सेक्टर-126 स्थित एचसीएल आफिस पहुंची थी।

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    बता दें कि एचसीएल कंपनी का यहां हेडक्वार्टर है और एचसीएल फाउंडेशन वर्ष 2019 से जर्लिन का खेल का खर्च उठा रहा है। डेफ ओलिंपिक में जीत के बाद एचसीएल फाउंडेशन ने उन्हें यहां सम्मानित करने के लिए बुलाया था। इस दौरान आयोजित प्रेसवार्ता में बताया गया कि सरकारी स्कूल की छात्रा जर्लिन बेहद साधारण परिवार से आती हैं। उनके पिता जेया जयराचगन ने बताया कि उनकी बेटी ने आठ साल की उम्र में बैडमिटन खेलना शुरू किया। उनका खेल सबकी नजरों में आने लगा। वह दूसरों से अलग थी। इसके बाद उन्होंने पेशेवर के तौर पर कोचिग दिलाना शुरू किया। शुरुआत में वह सामान्य खिलाड़ियों के साथ ही खेलती थी, लेकिन सुनने और बोलने में दिक्कत होने के चलते वह खेल के बारे में बहुत सारी चीजें नहीं समझ पाती थीं। फिर उन्होंने मूक-बाधिर वर्ग में खेलना शुरू किया। समय के साथ उनका खेल निखरता गया।

    इसी के साथ कोचिग, डाइट समेत दूसरी चीजों पर खर्च भी बढ़ता गया। बेटी का खेल प्रभावित न हो इसके लिए उन्होंने लोन लिया। उन पर पांच लाख रुपये का लोन है। वह कपड़े के बैग बनाने काम करते हैं। सात-आठ वर्ष की उम्र में जब उन्हें पता चला कि बेटी अब ठीक नहीं हो पाएगी तो उनके सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने पूरा जीवन लगा दिया। मूक-बाधिर होने के चलते हर जगह उसके साथ चलना पड़ता है। उनकी सफलता में राष्ट्रीय कोच सोनू आनंद शर्मा का महत्वपूर्ण योगदान रहा। साथ ही 2019 में एचसीएल छात्रवृत्ति से भी उनको काफी मदद मिली। तीन वर्षो में ओलिपिक की तैयारी को लेकर एचसीएल से उनको 3.25 लाख रुपये की राशि मिली।

    साल दर साल जुड़ते गए कीर्तिमान : जर्लिन ने डेफ ओलिपिक में सिगल, मिक्स डबल और टीम इवेंट में तीन स्वर्ण पदक जीते हैं। यह उनका दूसरा डेफ ओलिपिक था। वह 2017 में 13 वर्ष की उम्र में ओलिपिक में प्रतिभाग कर चुकी हैं। तब वह प्रतियोगिता की सबसे युवा खिलाड़ी थी। 2016 और 2018 में राष्ट्रीय चैंपियन रही हैं। 2019 में व‌र्ल्ड डेफ यूथ बैडमिटन चैंपियनशिप में भी स्वर्ण और रजत पदक जीता था। वर्ष 2018 एशिया पैसिफिक डेफ बैडमिटन चैंपियनशिप में उन्होंने दो रजत पदक अपने नाम किए थे।

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