बार-बार बदल रहा चश्मे का नंबर तो हो जाएं सावधान
बार-बार बदले चश्मे का नंबर तो कराएं जांच।

जागरण संवाददाता, नोएडा : नजर कमजोर होने पर सामान्य तौर पर बच्चे और बड़े लोग चश्मे का प्रयोग करते हैं, लेकिन अगर नंबर बार-बार बदल रहा हो तो सावधान होने की जरूरत है। यह इस बात का संकेत है कि आंख की काली पुतली कमजोर है और केरेटोकोनस नामक बीमारी है। इससे अंधापन हो सकता है। अगर शुरुआत में ही बीमारी का पता चल जाए तो आपरेशन करके इसको रोका जा सकता है।
तिरुपति आई सेंटर की नेत्र रोग विशेषज्ञ डा. मोहिता शर्मा बताती हैं कि बच्चों को चश्मा लगाना एक आम बात है। यह जरूरी है कि चश्मे का नंबर सही हो, नहीं तो सिरदर्द भी हो सकता है और परदे में कमजोरी भी आ सकती है। कई बार माइनस का नंबर अधिक होने से परदे पर छेद हो सकते हैं। लेकिन किसी भी समय छेद के द्वारा आंख का पानी परदे के पीछे जाकर परदे को अपनी जगह से हिला सकता है। जिसे रेटिनल डिटेचमेंट कहते हैं। यह एक खतरनाक बीमारी है, जिसमें नजर एकदम से चली जाती है। आपरेशन द्वारा भी नजर को पूरी तरह से बचाया नहीं जा सकता। ऐसे में जरूरी है कि वर्ष में एक बार परदे की जांच जरूर कराई जाए।
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बच्चों के लिए गंभीर है समस्या :
बच्चों की आंखों में कई ऐसी बीमारी होती हैं, जिनसे अंधापन हो सकता है। बड़े तो अपनी परेशानी बता सकते हैं, लेकिन बच्चे यह बता भी नहीं पाते। कई बार जांच होती है, लेकिन केवल चश्मे के नंबर की जांच करवाई जाती है। कई ऐसी बीमारियां हैं, जो साधारण जांच में पता नहीं चल पाती। जांच में काली पुतली, परदे, आंख की मांसपेशियों की जांच भी आवश्यक है।
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आठ वर्ष तक हो जाता है आंखों का विकास :
बच्चों की आंखों का विकास सात से आठ वर्ष तक हो जाता है। अगर बच्चे को साफ नहीं दिख रहा हो, तो पर्दा कमजोर हो जाता है और आंखों की रोशनी कभी भी पूरी नहीं आ पाती। सात साल की उम्र पार करने के बाद कोई इलाज परदे की रोशनी को नहीं बढ़ा सकता।
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