सफलता का मूल मंत्र जिम्मेदारी का निर्वहन
किसी भी काम की जिम्मेदारी लेना समझना और उसे पूरा करना सफलता की ओर बढ़ने वाला पहला कदम है। छात्र जीवन में भी इसकी उपयोगिता है। कुछ छात्र जो अपना परिणाम अच्छा न आने या अंक कम आने का कारण दूसरों को समझते हैं वह आगे नहीं बढ़ पाते हैं। इसके विपरीत छात्रों को मनमाफिक परिणाम न आने का कारण खुद में ढूंढना चाहिए।

जेएनएन, मुजफ्फरनगर। किसी भी काम की जिम्मेदारी लेना, समझना और उसे पूरा करना सफलता की ओर बढ़ने वाला पहला कदम है। छात्र जीवन में भी इसकी उपयोगिता है। कुछ छात्र जो अपना परिणाम अच्छा न आने या अंक कम आने का कारण दूसरों को समझते हैं, वह आगे नहीं बढ़ पाते हैं। इसके विपरीत छात्रों को मनमाफिक परिणाम न आने का कारण खुद में ढूंढना चाहिए। जिसने भी सुधार लाने के प्रयास किए, जिदगी में बहुत आगे निकल गए। किसी भी कार्य में हुई त्रुटि के लिए अपना बचाव करते रहेंगे तो कभी भी उसे बेहतर नहीं कर पाएंगे। अपनी जिम्मेदारी पूर्ण रूप से और अच्छे ढंग से निभाना ही एक अच्छा और स्वतंत्र नागरिक बनाता है। जीवन में क्या बनना चाहते हैं? क्या करना चाहते हैं? क्या आपका निर्णय है, इसकी जिम्मेदारी किसी और की कैसे हो सकती है। पूरी जिम्मेदारी के साथ प्रयास करेंगे तो सपने जरूर साकार होंगे। जो छात्र-छात्राएं या समाज का किसी भी वर्ग का व्यक्ति अपना उत्तरदायित्व समझते हैं? वह कभी विफल नहीं होते हैं। जिम्मेदारी से कार्य करने वाले और अपनी गलतियां मानने वाले लोगों की अन्य भी सहायता करते हैं। जीवन की जिम्मेदारी लेने वालों का शक्ति के साथ स्वाभिमान और सम्मान बढ़ता है। अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करना सफलता का मूल मंत्र है। शिक्षक होने के नाते अपने छात्र-छात्राओं को यही सिखाने का प्रयत्न रहता है कि छात्र संस्कारवान कैसे बनें। साथ ही अपने कार्यो के प्रति सजग और जिम्मेदार बनें। जो जिम्मेदारी स्वयं लेता है, वहीं सफल होता है। सभी छात्र और नागरिकों को प्रण लेना चाहिए कि अपनी जिम्मेदारियां स्वयं निभानी हैं। अधिकतर विकसित देशों में लोग अपने बच्चों को किशोर अवस्था से घर से बाहर भेज देते हैं। बच्चे युवा अवस्था में कदम रखते ही खुद कमाते हैं और खुद ही अपना खर्चा उठाते हैं। अकेले कमाकर वे जिदगी के पहलुओं से वाकिफ होते हैं। सही मायनों में यह कर्तव्य की शिक्षा है। इसके साथ ही जिम्मेदारी का अहसास मानसिक रूप से मजबूत बनाता है।
'दैनिक जागरण' में प्रकाशित 'संस्कारशाला' की कहानी पढ़कर कई बातों का बोध होता है। संदेश मिलता है कि मित्रता वास्तव में ईश्वर द्वारा बनाया गया एक ऐसा रिश्ता है, जो रक्त संबंध न होते हुए भी एक-दूसरे से भावनाओं से जोड़े रखता है। सुख-दुख के सच्चे सहयोगी बनकर हम मित्रता को और प्रगाढ़ करते हैं। एक दूसरे की जिम्मेदारी उत्तरदायित्व की भावना मित्रता को सफल बनाती है। सच्चा मित्र ही आईने की तरह होता है, जो मित्र की कमी को उसके समक्ष और अच्छाई को दूसरों के समक्ष प्रस्तुत करता है।
- प्रवेंद्र दहिया, प्रधानाचार्य होली चाइल्ड पब्लिक इंटर कालेज जदौड़ा, मुजफ्फरनगर
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