1857 में क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों से छीनी थी तोप, यह है तोप की दास्तान
इतिहासकार डॉ. प्रदीप जैन ने बताया कि करीब 200 साल पहले पुरकाजी क्षेत्र दलदल हुआ करता था। यहां अंग्रेजों ने बड़ी संख्या में आंदोलनकारियों को मार दिया था ...और पढ़ें

संजीव तोमर, मुजफ्फरनगर। उत्तर प्रदेश स्थित मुजफ्फरनगर के पुरकाजी के हरिनगर गांव के भू-गर्भ से निकली तोप ब्रिटिशकालीन है। आगरा की प्रयोगशाला में तोप को लेकर कालखंड संबंधित तस्वीर साफ होने से कई सवाल खड़े हो गए हैं। आखिरकार तोप यहां कैसे आई? इसका सूली वाला बाग से क्या जुड़ाव है? इसे लेकर इतिहासकार मानते हैं कि 1857 की क्रांति के दौरान इन तोपों का इस्तेमाल हुआ। विद्रोह को कुचलने के लिए फिरंगियों ने आंदोलनकारियों को मौत के घाट उतारा था। उनका कहना है कि सूली वाला बाग में आंदोलनकारियों को फांसी दी गई। इसके पलटवार में आंदोलनकारियों ने अंग्रेजों पर हमला कर उनके हथियार छीन लिए थे, जिसमें तोप भी शामिल थी। यही वजह है कि भाकियू के लोग तोप को पुरकाजी के सूली वाला बाग में स्थापित करना चाहते हैं। वहीं प्रशासन इतिहास के पन्ने पलटने में लगा है।
यह है तोप की दास्तान : पुरकाजी स्थित हरिनगर में 20 जनवरी को एक किसान के खेत में प्राचीन तोप मिली थी, जिसका वजन करीब 40 क्विंटल था। भाकियू ने तोप को सूली वाला बाग में रख दिया था। प्रशासन ने तोप की सुरक्षा के लिए पुलिस बल तैनात किया था। दो दिन तक भाकियू ने सूली वाला बाग से तोप को नहीं उठने दिया था। उसका कहना था कि यह तोप यहां फिरंगियों से लड़ाई की निशानी है जिसे स्मृति चिन्ह के तौर पर यहीं रखा जाना चाहिए। भाकियू और प्रशासन के बीच रस्साकशी के बीच 22 जनवरी की आधी रात को प्रशासन ने तोप कड़ी सुरक्षा में आगरा प्रयोगशाला के लिए रवाना किया था। पुरातत्व विभाग की जांच में तोप ब्रिटिशकालीन बताई गई। भाकियू ने जांच के बाद तोप को सूली वाला बाग में स्थापित करने की मांग की है। हालांकि प्रशासन इस मामले पर मौन है। एडीएम प्रशासन अमित सिंह का कहना है मामले की जांच की जा रही है। अभी कुछ भी स्पष्ट नहीं है।
भगवती देवी को तोप से उड़ा दिया था : अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम में क्रांतिकारी की अमिट गाथा है। देश की आजादी के लिए टोलियां बनाकर महिलाओं ने गांव-गांव में स्वाधीनता की अलख जगाई थी। 1857 में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से लेकर आजादी के आंदोलन तक मुजफ्फरनगर और शामली की वीरांगनाएं इतिहास के पन्नों में अपने त्याग, संघर्ष, देशभक्ति और बलिदान के लिए दर्ज हैं। शोभा देवी, आशादेवी गुर्जर, बख्तावरी देवी, भगवती त्यागी, भगवानी देवी, इंद्रकौर, जमीला पठान, रहीमो राजपूत, राजकौर, रणवीरी वाल्मीकि ने आंदोलन में हिस्सा लिया था। बताया जाता है कि भगवती देवी को ब्रिटिश सरकार ने तोप से उड़ा दिया था। थाना भवन की हबीबा खातून महिलाओं का जत्था लेकर गांव-गांव में घूमी थीं। बाद में उन्हें फांसी दी गई।
जमीन में दबा दी थी तोप : इतिहासकार यह भी मानते हैं कि 1857 की क्रांति के दौरान जब भारतीय वीरों ने अंग्रेजों पर हमला कर तोप समेत हथियार छीन लिए थे तो उन्हें जमीन में दाब दिया था। आंदोलनकारियों को यह अंदेशा था कि फिरंगी सेना गांव-दर गांव सर्च अभियान चलाएगी। इसके चलते छोटे हथियारों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया गया, लेकिन भारी भरकम तोप को जंगल क्षेत्र में जमीन में दबा दिया गया।
एसडी डिग्री कॉलेज के इतिहास विभाग के अध्यक्ष डॉ. अशोक त्रिपाठी ने बताया कि प्रशासन ने तोप प्रकरण में मुझसे संपर्क किया था। इसके लिए एक कमेटी बनाई गई है, जिसमें मैं भी हूं। 1857 की क्रांति में मुजफ्फरनगर के लोगों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था कई को फांसी भी हुई थी, लेकिन पुरकाजी क्षेत्र का नाम इतिहास के पन्ने में सामने नहीं आया है। इसकी शासन स्तर से वृहद जांच होनी चाहिए। दिल्ली स्थित राष्ट्रीय अभिलेखागार में इस विषय पर अध्ययन किया जाएगा, जिसमें समय लगेगा।
इतिहासकार डॉ. प्रदीप जैन ने बताया कि करीब 200 साल पहले पुरकाजी क्षेत्र दलदल हुआ करता था। यहां अंग्रेजों ने बड़ी संख्या में आंदोलनकारियों को मार दिया था। इसके बाद लोगों ने अंग्रेजों पर हमला कर दिया था, जिसके चलते वे हथियार छोड़कर भाग गए थे। पुरकाजी के जंगलों में मिली तोप उसी समय की है।

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