मैसूर के शासक टीपू सुल्तान के शस्त्रागार से तोप लूटकर लाए थे फिरंगी Muzaffarnagar News
मुजफ्फरनगर की माटी में ब्रिटिश काल की निशानी पहले भी मिल चुकी हैं। 30 साल पहले पुरकाजी क्षेत्र में खोदाई के दौरान तोपें निकली थीं।
मुजफ्फरनगर, जेएनएन। डीएम आवास पर रखीं तोपें फिरंगी मैसूर के शासक टीपू सुल्तान के शस्त्रागार से लूटकर मुजफ्फरनगर लाए थे। यहां की माटी में ब्रिटिश काल की निशानी पहले भी मिल चुकी हैं। 30 साल पहले पुरकाजी क्षेत्र में खोदाई के दौरान तोपें निकली थीं। इनकी पुरातत्व विभाग ने जांच-पड़ताल की थी, तब इन्हें ब्रिटिशकालीन घोषित किया गया।
सैकड़ों मीटर तक कर सकती है मार
यह तोप इस तरह बनी हैं, जो सैकड़ों मीटर तक मार कर सकती हैं। इनमें हथगोला व बारूद इस्तेमाल होता है। इतिहास के जानकार बताते हैं कि मेरठ और रुड़की छावनी में फिरंगी हुकूमत की फौज अभ्यास के लिए खादर क्षेत्रों को चुनते थे। पुरकाजी गंगा खादर क्षेत्र है। ऐसे में फिरंगी यहां अपने हथियारों से युद्धाभ्यास करते थे। सोमवार को मिली तोप भी कमोबेश यही साबित करती है कि वह ब्रिटिश हुकूमत में यहां लाई गई है। पुरकाजी में सूली वाला बाग क्रांतिकारियों को फांसी पर लटकाने की याद दिलाता है। जाहिर है कि भारत छोड़ने के दौरान फिरंगी हथियारों को छोड़ गए थे। डीएम आवास के बाहर रखी तोपों के बारे में इतिहासकार बताते हैं कि ये काफी पुरानी हैं। जानकारों के अनुसार डीएम आवास पर रखी तोप मैसूर में बनी है, जो 1780 की है। इसे फिरंगी मैसूर के शासक टीपू सुल्तान से लूटकर यहां लाए थे। तीस साल पहले भी पुरातत्व विभाग ने पुरकाजी में डेरा डालकर तोपों की जानकारी जुटाई थी, मगर तब दो तोप के अलावा अन्य बरामद नहीं हो सकी थीं।
जीआइसी की शोभा थी
कभी तोप जीआइसी के पूर्व प्रधानाचार्य रमेश चंद शर्मा ने बताया कि डीएम आवास पर रखी तोप कभी जीआइसी के संग्रहालय की शोभा थी। इसी तरह दो तोप एसएसपी आवास पर रखी हैं। करीब दस साल पहले तोप को उठाकर डीएम आवास पर रखवाया गया। यह तोप भी पुरकाजी क्षेत्र में खोदाई में मिली थी। तोप मैसूर की है, जो एक धरोहर के रूप में है। इतिहासकार प्रदीप जैन बताते हैं कि डीएम आवास पर रखी गई तोपें ब्रिटिश शासनकाल की हैं। पूर्व में इस संदर्भ में हु़ए सर्वे में यह बात साफ हो चुकी है।
ऐसे होता है तोप का संचालन
मुजफ्फरनगर में मिली मैसूर निर्मित तोपों को चलाने के लिए बैरल के मुहाने से बारूद डाला जाता है। पर्याप्त मात्रा में बारूद डालने के बाद विशेष छड़ी से नाल में बारूद को ठोका जाता है, ताकि वह बैरल के अंतिम छोर पर बने सुराख तक पहुंच जाए। इसके बाद नाल में धातु से बना गोला डाला जाता है। बैरल के पिछले छोर पर बने सुराख में मशाल के जरिए आग लगाई जाती है। इससे आग लगने पर बारूद से बनी गैस गोले को धकेलकर दूर तक फेंक देती है।
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