सुख-दुख में साथ रहने से होती है सच्चे मित्र की पहचान
भारतीय परंपरा में हमेशा से ही मित्रता का महत्व रहा है। हमारे जीवन में माता-पिता और गुरु के बाद मित्र को स्थान दिया गया है। कहा जाता है- विपत्ति रूपी कसौटी पर कसा जाने वाला व्यक्ति ही सच्चा मित्र होता है। संस्कृत में कहावत है कि राजदरबारेश्च श्मशाने यो तिष्ठति स बान्धव अर्थात राज दरबार और श्मशानघाट में साथ रहने वाला ही सच्चा मित्र कहलाता है।
मुजफ्फरनगर, जेएनएन। भारतीय परंपरा में हमेशा से ही मित्रता का महत्व रहा है। हमारे जीवन में माता-पिता और गुरु के बाद मित्र को स्थान दिया गया है। कहा जाता है- विपत्ति रूपी कसौटी पर कसा जाने वाला व्यक्ति ही सच्चा मित्र होता है। संस्कृत में कहावत है कि राजदरबारेश्च श्मशाने यो तिष्ठति स: बान्धव: अर्थात राज दरबार और श्मशानघाट में साथ रहने वाला ही सच्चा मित्र कहलाता है। यहां राज दरबार सुख का और श्मशान दुख का प्रतीक है। अत: सुख-दुख में साथ रहने वाला ही व्यक्ति सच्चा मित्र होता है।
सच्चा मित्र स्वार्थ से ऊपर उठकर मित्र को बुराई की राह पर चलने से व गिरते हुए मित्र का हाथ थामकर उसे गिरने से बचाता है। वह अपने मित्र को न तो कभी भटकने देता है और न ही सही रास्ता भूलने देता है। सदैव उसे सही रास्ते पर चलाने की कोशिश करता है। संकट के समय कभी साथ नहीं छोड़ता, सच्चा मित्र अपना विवेक सदा जगाए रखकर मित्र का विवेक भी जगाए रखता है।
मित्रता तो दुनिया का एक ऐसा धन होता है, जिसकी तुलना दुनिया की किसी भी वस्तु से नहीं की जा सकती है। सच्ची मित्रता को दर्शाते हुए बहुत सारे प्रसंग सुनने को मिलते हैं, जैसे-कृष्ण और सुदामा की मित्रता, अर्जुन और कृष्ण की मित्रता, विभीषण और सुग्रीव की राम से मित्रता।
सरल शब्दों में कहें तो भटकाने और मौज-मस्ती में साथ देने वाले मित्र कदम-कदम पर मिल जाते हैं, परंतु सही राह दिखाने वाले मित्र बहुत कम मिलते हैं। व्यक्ति को अपने मित्रों का चुनाव सदैव सोच-समझकर करना चाहिए सच्चे मित्र का उपहास कर या किसी भी कारण से उसे खोना नहीं चाहिए। इसके विपरीत अपना काम निकालने वाले दोस्तों से दूर ही रहना चाहिए। यह बुरे समय पर आपकी मदद के लिए कभी सामने नहीं आएंगे और उल्टा आपको समय-समय पर समस्या में डालते रहेंगे।
गरुड़ पुराण में कहा गया है कि दुष्ट प्रवृत्ति के मित्र का कभी संग नहीं करना चाहिए। ऐसा मित्र स्वयं अधोगति को प्राप्त होता है और अपने साथ लोगों को भी संकट में डाल देता है। ऐसे मित्र के साथ रहना साक्षात मृत्यु जैसा है।
हमें ऐसे ही मित्रों की खोज में रहना चाहिए, जिनमें हमसे अधिक आत्मबल हो। हमें उनका पल्ला उसी तरह पकड़ना चाहिए, जिस तरह सुग्रीव ने राम का पल्ला पकड़ा था। मित्र हों तो प्रतिष्ठित और शुद्ध हृदय के हों। मृदुल और पुरुषार्थी हों, शिष्ट और सत्यनिष्ठ हों, जिससे हम अपने को उनके भरोसे पर छोड़ सकें और यह विश्वास कर सकें कि उनसे किसी प्रकार का धोखा न होगा। व्यक्ति जन्म के बाद से अपनों के मध्य रहता है, खेलता है, उनसे सीखता हैं पर हर बात व्यक्ति हर किसी से साझा नहीं कर सकता। व्यक्ति का सच्चा मित्र ही उसके प्रत्येक रा•ा को जानता है। पुस्तक ज्ञान की कुंजी है, तो एक सच्चा मित्र पूरा पुस्तकालय, जो हमें समय-समय पर जीवन की कठिनाइयों से लड़ने में सहायता प्रदान करते हैं।
उसको ही मित्र बनाइये, जो न छोड़ता हाथ ।
विपदा जब कोई पड़े, हर पल देता साथ ।।
- मीनू अरोरा, प्रधानाचार्या, जीडी गोयनका पब्लिक स्कूल