जिल्ले इलाही बनाम जम्हूरियत
कांधला : ''सियासत से अदब की दोस्ती बेमेल लगती है, कभी देखा है पत्थर पे भी कोई बेल लगती है।
कोई भी अन्दरूनी गन्दगी बाहर नहीं होती, हमें इस हुकूमत की भी किडनी फेल लगती है।।''
मशहूर शायर मुनव्वर राणा के इस शेर सरीखी ही तबियत थी कांधला ईदगाह में 'सरकार' की। जम्हूरियत की आंखें उम्मीदबर थीं और दिल बेचैन। जुबां खामोश थी, पर जेहन में सवालों का शोर था। सीएम अखिलेश यादव के आने से पहले कुछ ऐसा ही नजारा था। इतवार को सीएम कांधला में थे। यहां विस्थापितों का दर्द सुनने आए थे 'जिल्ले इलाही'। इरादा जख्मों पर मरहम लगाने का था। लोग भी सीएम के मुंह से इमदाद सुनने को बेसब्र थे। सीएम जैसे ही मंच पर आए और दो बोल के बाद सारा मंजर बदल गया। 'उघड़े जख्मों' पर बड़े मरहम की उम्मीद कर रहे दंगा पीड़ितों को 'लाल दवा' भी नसीब न हो सकी। मौका जम्हूरियत से सीधे संवाद का था, लेकिन ये क्या दस मिनट में ही मंच से पैर उखड़ गए? बौखलाहट और अदूरदर्शिता आइने में हुक्मरानों की अपरिपक्वता का नजारा पेश करती रही।
कांधला ईदगाह में दंगे के दौरान बेघर हुए हजारों लोग पनाह लिए हैं। इतने ही लोग आसपास के इलाके से वहां पहुंचे। सबको उम्मीद थी कि युवा सीएम की हमदर्दी दंगा पीड़ितों के लिए सबसे माकूल मरहम का काम करेगी। मंच पर पहुंचते ही मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने माइक संभाला तो बात शांति-समाधान से शुरू की। बुजुर्गो से सलाह मांगी तो युवाओं से साथ। दूसरी ही लाइन में बात नफे-नुकसान पर आ पहुंची। इसमें भी नुकसान कुछ रुपयों में खरीदें जा सकने वाले सामान की उठी। सीएम साहब दंगे की भेंट चढ़ीं बेशकीमती जिंदगियों पर गौर करना भूल गए। जरा सी जुबान फिसली फिर क्या था? जो आंखें उम्मीदों से भरी थी, उनमें खून उतर आया। जो युवा सीएम की आमद से पहले उनकी पैरोकारी कर रहे थे वही तैमूर हो उठे। सीएम की मौजूदगी में ही सपा और उनके खिलाफ नारेबाजी हुई। मंच से बीच-बीच में स्थानीय नेताओं को डपटना और सीधे संवाद के बावजूद अवाम से वजनदारी में राब्ता कायम न कर पाने की बौखलाहट साफ झलक रही था। दंगे से खौफजदा भीड़ चिल्ला-चिल्लाकर गांव नहीं लौटने की दुहाई दे रही थी, लेकिन सीएम साहब कोई माकूल जवाब नहीं दे पाए। सपा के प्रति लोगों की नाराजगी साफ झलकी। शायद इसे भांपते हुए ही सीएम को दस मिनट से भी कम समय में मंच छोड़ना पड़ा। इस नाराजगी में एक चेतावनी भी छिपी थी, जो मुहाने पर खड़े लोकसभा चुनाव में पार्टी का रुख तय करेगी।
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