मुरादाबाद में लिखी गई थी खिलाफत आंदोलन की इबारत
स्वतंत्रता की लड़ाई में मुरादाबाद का नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज है।
मुरादाबाद (तेजप्रकाश सैनी) : स्वतंत्रता की लड़ाई में मुरादाबाद नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज है। खिलाफत और असहयोग आंदोलन की शुरुआत मुरादाबाद से सितंबर 1920 में हुई थी। यहां प्रांतीय कांग्रेस कमेटी का डॉ.भगवान दास की अध्यक्षता में अधिवेशन हुआ था। शहर के मुसलमान और ¨हदुओं ने बढ़-चढ़कर इस आंदोलन में हिस्सा लिया था। इतना ही नहीं आसपास की तहसीलों से भी बहुत से लोग भारत की आजादी की लड़ाई के दौरान खिलाफत और असहयोग आंदोलन में जेल गए थे। यह अधिवेशन प्रांतीय स्तर का था पर इसमें महात्मा गांधी, अन्सारी, हकीम अलमत खां, मौलाना मुहम्मद अली, शौकत अली, आसफ अली, मोती लाल नेहरू, जवाहर लाल नेहरू, पंडित मदन मोहन मालवीय जैसे बड़े-बड़े नेताओं ने हिस्सा लिया था।
शहर से पारित हुए थे प्रस्ताव
अधिवेशन में खिलाफत आंदोलन संबंधी सभी प्रस्ताव मुरादाबाद की सरजमीं पर पारित हुए थे। यह प्रस्ताव बाद में कोलकाता के विशेष अधिवेशन तथा नागपुर में होने वाले वार्षिक अधिवेशन द्वारा भी पारित किए गए थे। खिलाफत एवं असहयोग आंदोलन संबंधी गिरफ्तारियां सन 1921 के आखिर में शुरू हुई जो सन 1922 तक जारी रहीं। इसमें सम्भल, अमरोहा, हसनपुर तथा चन्दौसी के स्वतंत्रता सेनानियों ने भी हिस्सा लिया और जेल गए थे। मुरादाबाद में सबसे पहले बनवारी लाल रहबर को गिरफ्तार किया गया था। जफर हुसैन बास्ती, अश्फाक हुसैन मुख्तार की हुई। इसके बाद सम्भल से मौलवी मुहम्मद इस्माइल और लाला चंदूलाल (सिरसी) फिर चौधरी रियासत अली खां और मास्टर रूप किशोर, अमरोहा से पहले नाथूराम वैद्य, बाबूलाल सर्राफ, डॉ.नरोत्तमशरण, छिद्दा उल्ला, अश्फाक अहमद और मुमताज अली पकड़े गए। रजबपुर से लाला मुन्नीलाल, शेख मुहम्मद अफजल, चंदौसी से लाला लक्ष्मीचंद्र, लच्छू भगत, मुंशी लाल तथा सादिक पकड़े गए थे। अहमदाबाद अधिवेशन से लौटने पर रामशरण एवं शंकर दत्त पकड़ लिए गए। इसके बाद भगवत शरण, मुमताज पकड़े गए। नुमाइश का बहिष्कार करने के सिलसिले में अलीमुद्दीन गिरफ्तार हुए। चौरी-चौरा कांड के कारण महात्मा गांधी इस निष्कर्ष पर पहुंचे थे कि असहयोग आंदोलन के लिए जिस संयम एवं आत्मबल की आवश्यकता होनी चाहिए वह सत्याग्रहियों में नहीं है और फिर उन्होंने असहयोग आंदोलन स्थगित कर दिया था। आंदोलन के स्थगित होते ही लोगों ने कांग्रेस के संगठन की ओर ध्यान दिया और फिर कांग्रेस का संगठन जिले भर में फैल गया।
1930 में शुरू हुआ था नमक सत्याग्रह
अप्रैल 1930 से नमक सत्याग्रह आरम्भ हुआ। जिले की कई तहसीलों से स्वयं सेवकों के जत्थे पैदल बदायूं भेजे गए। इन जत्थों ने बदायूं में जाकर नमक कानून तोड़ा, लेकिन वहां पर कोई गिरफ्तारी नहीं हुई। जत्थों की वापसी के बाद उनके सामने फिर कानून तोड़ा, लेकिन यहां भी कोई गिरफ्तारी नहीं हुई। जत्थों की वापसी के बाद उनके द्वारा लाया गया नमक टाउन हाल के आम जलसे में नीलाम किया गया। यूपी लेजिसलेटिव काउंसिल का चुनाव 26 सितंबर 1930 को हुआ। इसका जिला कांग्रेस ने न केवल बायकाट किया, वरन इसके लिए जबरदस्त प्रचार किया था।
नहीं भुलाया जा सकता योगदान : धवल दीक्षित
आजादी की लड़ाई में मुरादाबाद का योगदान भुलाया नहीं जा सकता। खिलाफत और असहयोग आंदोलन के इतिहास में मुरादाबाद के लोगों की भूमिका भारत को स्वतंत्र कराने में अग्रणी पायदान पर थी।
धवल दीक्षित, उत्तराधिकारी, स्वतंत्रता सेनानी
अंग्रेजों से लिया था मोर्चा
मुरादाबाद के ¨हदू-मुस्लिम में एकता थी और आजादी की लड़ाई में एक साथ अंग्रेजों का मोर्चा लिया था। खिलाफत व असहयोग आंदोलन में हिस्सा लेने वालों पर हमें गर्व है।
- इशरत उल्ला खां, उत्तराधिकारी, स्वतंत्रता सेनानी
गुलअफसा ने अपनों से ही लड़ी आजादी की लड़ाई
रामपुर की गुलअफसा ने करीब सात माह तक अपनों से ही आजादी की लड़ाई लड़ी। उसे देर से सोकर उठने पर पति ने तीन तलाक दे दिया था। इसके बाद उसे तमाम चुनौतियों का सामना करना पड़ा। शोषण के खिलाफ अपनों से जंग लड़ी और नतीजा यह हुआ कि आज उसे फिर से पति का घर मिल गया है।
ये है पूरी कहानी
अजीमनगर थाने के नगलिया आकिल गांव की गुलअफ्शा की कहानी किसी ¨हदी फिल्म से कम नहीं है। उसने गांव के ही कासिम से प्रेम विवाह करने के लिए परिजनों से बगावत कर दी थी। इसके चलते परिजनों ने मजबूरन उसका निकाह कासिम के साथ अगस्त 2017 में करवा दिया था। इसके चार माह बाद ही दिसंबर 2017 में कासिम ने देर से सोकर उठने पर उसे तीन तलाक दे दिया था। गांव के लोगों ने पंचायत की लेकिन बात नहीं बनी। इस पर गुलअफसा ने न्याय पाने के लिए पुलिस का दरवाजा खटखटाया। तब पुलिस ने घर के ताले तोड़कर ससुराल पहुंचा दिया था। इसके बाद फिर पंचायत हुई, जिसमें तय हुआ कि शरीयत का पालन करते हुए वह पहले तीन महीने 13 दिन की इद्दत करेगी और हलाला करने के बाद निकाह कराया जाएगा। गुलअफ्शा ने इद्दत पूरी कर ली, लेकिन पति निकाह करने से मुकर गया और पति घर छोड़कर भाग गया। काफी तलाश करने के बाद भी कुछ पता नहीं लग। इस पर उसने एक बार फिर पुलिस की शरण ली। पुलिस ने दहेज एक्ट का मुकदमा दर्ज करते हुए पति को गिरफ्तार करने के लिए दबाव बनाया तो एक बार फिर दोनों पक्षों के लोगों की पंचायत हुई। हलाला के बाद निकाह कराने का समझौता हुआ। वह पंचों के फैसले पर राजी हो गई। दोनों खुश हैं और रामपुर में रहकर अपना गुजर बसर कर रहे हैं। महिला का कहना है कि पति को पाने के लिए काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा, लेकिन अब वह बहुत खुश है।
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