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    नियमित में नहीं मिल रही बर्थ, पूजा स्पेशल ट्रेनों की जनरल बोगियां खाली

    By JagranEdited By:
    Updated: Sat, 03 Nov 2018 12:59 PM (IST)

    मुरादाबाद : दीपावली व छठ पूजा पर घर जाना है और बर्थ नहीं मिल पा रही है तो परेशान होने की जरूरत नहीं है।

    नियमित में नहीं मिल रही बर्थ, पूजा स्पेशल ट्रेनों की जनरल बोगियां खाली

    मुरादाबाद : दीपावली व छठ पूजा पर घर जाना है और बर्थ नहीं मिल पा रही है तो परेशान होने की जरूरत नहीं है। पूजा स्पेशल की जनरल बोगी में आप आराम से सफर कर सकते हैं। इन ट्रेनों में जनरल बोगियां खाली चल रहीं हैं। दीपावली की भीड़ शुक्रवार की शाम से ट्रेनों में चलनी शुरू हो गई है। त्योहार पर चलाई जा रहीं 15 जोड़ी ट्रेनें रेलवे की ओर से दीपावली व छठ पूजा के लिए 15 जोड़ी स्पेशल ट्रेनें चलाई जा रहीं हैं। इसके अलावा एक दिन के लिए पांच जोड़ी ट्रेनें चलाने की व्यवस्था की गई है। बरौनी, दरभंगा और लखनऊ एसी एक्सप्रेस में फ्लैक्सी किराया लिया जा रहा है। शेष ट्रेनों में सामान्य किराया लिया जा रहा है। नियमित ट्रेनों में वेटिंग का टिकट भी नहीं मिल पा रहा है, पूजा स्पेशल में कोई बर्थ खाली नहीं है। स्पेशल ट्रेनों की जनरल बोगियां देंगी सहारा स्पेशल ट्रेनों की आरक्षित बोगी में बर्थ नहीं मिलेगा लेकिन जनरल बोगी पूरी तरह के खाली होती है। एक बोगी में पांच से सात यात्री ही सवार होते हैं। विशेष कोटे पर मंत्री कार्यालय का कब्जा सभी ट्रेनों में विशेष कोटे के तहत कुछ बर्थ आरक्षित होती हैं। इन पर कैंसर रोगी, गंभीर बीमारी से पीड़ित रोगी, आपात स्थिति में सफर करने वाले यात्रियों, आन ड्यूटी अधिकारियों व कर्मचारियों का प्रथम अधिकार होता है। बर्थ खाली होने पर सांसद, मंत्री, सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट के न्यायाधीश को बर्थ उपलब्ध कराने का प्रावधान है। पिछले दिनों उत्तर रेलवे के कई आला अधिकारियों को भी बर्थ नहीं मिल पाई थी। आला अधिकारी के सास-ससुर को नहीं मिली बर्थ जिले के एक प्रशासनिक आला अधिकारी की 85 वर्षीय सास व ससुर को गुरुवार को पद्मावत एक्सप्रेस से लखनऊ जाना था। एसी टू में वेटिंग का टिकट था। बर्थ दिलाने के लिए मंडल और उत्तर रेलवे मुख्यालय के अधिकारियों ने प्रयास किया, लेकिन सफल नहीं हुए। इस पर आला अधिकारी ने एसी टू के टिकट पर स्लीपर में बर्थ उपलब्ध कराने को कहा। राजनीतिक पकड़ रखने वाले रेलवे के एक वरिष्ठ कर्मचारी ने मंत्री कार्यालय के अधिकारियों से वार्ता की, इसके बाद वे एक बर्थ छोड़ने को तैयार हुए। दोनों बुजुर्गो को एक ही बर्थ पर सफर करना पड़ा।

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