मुलायम सिंह भी नहीं टालते थे कैबिनेट मंत्री चौधरी चंद्रपाल सिंह की बात, जानिए राजनीतिक सफर के बारे में Amroha News
1990 में जब मुलायम सिंह पहली बार मुख्यमंत्री बने थे तो वह हेलीकाप्टर से चौधरी साहब को मिलने उनके गांव पपसरा पहुंचे थे। मुलायम ने ही चौधरी साहब को सहकारिता मंत्रालय दिया था।
अमरोहा, जेएनएन। चौधरी चंद्रपाल सिंह , इस नाम के आगे पूर्व विधायक, पूर्व सांसद, पूर्व मंत्री जैसे विशेषण छोटे हैं। वे अपने आप में एक समाजवादी संस्था का मानवीय स्वरूप थे, जिनके पैदा होने से लेकर अंत समय तक कोई दाग नहीं था। ऐसा स्वच्छ धवल चरित्र जिस पर आने वाली नस्लें गर्व करेंगी कि काजल की कोठरी वाली सियासत में रहते हुए भी कोई इतना बेदाग कैसे रह सकता है। वे ऐसे ही थे, पूरे ईमानदार। इसलिए कभी किसी से नहीं डरे। इस चरित्र के कारण ही उनमें स्वयं के प्रति इतना सम्मान था कि बाहर वाले से सम्मान की अपेक्षा ही नहीं करते थे। किसी भी छोटे से छोटे किसान के साथ खड़े हो जाते थे। इसलिए आज हर आंख रोई है। जिले ने एक अभिभावक को खो दिया।
विरोधी की जरूरत में भी नहीं हटते थे पीछे
अभिभावक इसलिए क्योंकि समाजवादी राजनीति करते हुए भी उन्हें जब लगता था कि किसी विरोधी को भी उनकी जरूरत है तो पीछे नहीं हटते थे और जिसके प्रति एक बार मन में निष्ठा हो गई, हमेशा उसके साथ हो गए। पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव से इसी कारण उनके अंत समय तक बेहद मजबूत रिश्ते रहे। इसका अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि पिछले जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में पार्टी ने कैबिनेट मंत्री महबूब अली की पत्नी सकीना बेगम का टिकट घोषित कर दिया था लेकिन, चौधरी चंद्रपाल सिंह ने मुलायम सिंह यादव से अपनी पुत्रवधु रेनू चौधरी के लिए यह टिकट मांग लिया। पार्टी में काफी उथल पुथल हुई लेकिन बात चौधरी साहब की ही रखी गई। उनके साथी हरपाल सिंह यादव बताते हैं कि वर्ष 1989 में जब लोकदल से उन्हें अमरोहा लोकसभा सीट से टिकट नहीं दिया गया, तब मुलायम सिंह यादव ने कांठ विधानसभा सीट से उन्हें टिकट दिलवाया था। उसमें वे जीते और तभी से नेताजी के खास साथियों में रहे।
इमरजेंसी के हीरो थे, मिलेगा गार्ड ऑफ ऑनर
चौधरी चंद्रपाल सिंह के बेटे सेवानिवृत्त प्रशासनिक अधिकारी सरजीत सिंह ने बताया कि इमरजेंसी के समय जब सब लोग पुलिस से डरते थे, जेल जाने से बचने के लिए छुपते घूम रहे थे, उस समय में चौधरी चंद्रपाल सिंह बाजार बंद करा रहे थे। क्षेत्र के किसान साथ थे, लिहाजा थाने का घेराव कर लिया। पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। 19 महीने जेल में बिताए। जिले के हर व्यक्ति की नजर में वे हीरो बन चुके थे। इसी का नतीजा रहा कि जेल से निकलने के बाद वर्ष 1980 में लोकसभा चुनाव लड़ा और सांसद चुने गए। आपातकाल में जेल में रहने के कारण ही वे लोकतंत्र सेनानी के रूप में पहचाने गए। इसी आधार पर उनकी अंत्येष्टि पर जिला प्रशासन की तरफ से गार्ड ऑफ ऑनर दिया जाएगा। अंत्येष्टि उन्हीं के गांव पपसरा में प्रात: दस बजे होगी।