सपा कार्यालय पर चला डंडा… खाली हो सकती है कोठी, मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद लापरवाही भारी पड़ी, जानिए वजह
मुरादाबाद में समाजवादी पार्टी के कार्यालय को खाली करने का नोटिस जारी किया गया है। पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद नामांतरण में लापरवाही के कारण यह कार्रवाई हुई है। कोठी सपा को किराए पर आवंटित की गई थी लेकिन नामांतरण प्रक्रिया पूरी नहीं हुई। नगर आयुक्त ने इस संपत्ति को शासकीय प्रयोजन में लेने की सिफारिश की थी जिसके बाद प्रशासन ने नोटिस जारी किया।

जागरण संवाददाता, मुरादाबाद। समाजवादी पार्टी के जिम्मेदारों ने पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद कोठी नंबर-04 के नामांतरण की परवाह ही नहीं की। समय रहते यदि सपाइयों ने नियमों के तहत नामांतरण करा लिया होता, तो आज भवन खाली करने का नोटिस नहीं मिलता।
योगी आदित्यनाथ सरकार के अधिकारियों ने सपा कार्यालय के तौर पर इस्तेमाल हो रही इस कोठी को खाली करने का नोटिस देकर राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है।
शहर के पॉश इलाके चक्कर की मिलक में सपा कार्यालय के रूप में उपयोग हो रही इस सरकारी कोठी को खाली कराने को लेकर जारी हुआ नोटिस चर्चा का विषय बना हुआ है।
यह भवन समाजवादी पार्टी को किराए पर आवंटित किया गया था, लेकिन नामांतरण की प्रक्रिया अब तक पूरी नहीं की गई। जिलाधिकारी ने सपा जिलाध्यक्ष को नोटिस भेजते हुए एक माह में कोठी खाली करने को कहा है।
सपा के कब्जे से पहले यह कोठी बिजली विभाग के अधिकारियों के उपयोग में थी। जब सपा को यह भवन किराए पर मिला, तब इसकी हालत बेहद जर्जर थी। चारों ओर सुरक्षा के नाम पर केवल कटीले तार लगे थे और चाहरदीवारी भी नहीं थी।
उस समय की जिला पंचायत अध्यक्ष रहीं कुसुमलता यादव ने लाखों रुपये खर्च कर कार्यालय में चाहरदीवारी, मंच, शौचालय और छत की मरम्मत कराई थी। इन निर्माण कार्यों के लिए किसी भी तरह की प्रशासनिक या तकनीकी स्वीकृति नहीं ली गई थी।
वर्ष 2024 में सपा के तत्कालीन जिलाध्यक्ष स्वर्गीय डीपी यादव ने पूरे वर्ष का किराया तो जमा कर दिया था, लेकिन उसके बाद से किराया जमा नहीं हुआ। वर्तमान में किराया बढ़कर 900 रुपये प्रतिमाह हो गया है।
सपा कार्यालय को लेकर जारी नोटिस को राजनीतिक नजरिए से भी देखा जा रहा है। यह कदम विपक्ष को झटका देने की रणनीति के रूप में देखा जा रहा है, लेकिन तकनीकी दृष्टि से यह पूरी तरह से वैधानिक कार्रवाई प्रतीत होती है।
नामांतरण की प्रक्रिया पूरी न करना और निर्माण कार्यों में नियमों की अनदेखी, सपा को इस संकट तक ले आई। यदि समय रहते प्रक्रिया पूरी कर ली गई होती, तो यह स्थिति टाली जा सकती थी।
भवन का नियमित किराया जमा करना और उसकी रसीद रिकॉर्ड में संलग्न करना नामांतरण के लिए आवश्यक दस्तावेजों में शामिल होता है। यदि सपा ने समय से नामांतरण की प्रक्रिया पूरी की होती तो भवन पर कानूनी स्वामित्व स्पष्ट होता और प्रशासन नोटिस जारी करने की स्थिति में नहीं होता।
इस तरह कराना था नामांतरण
- किरायेदार का स्पष्ट विवरण- भवन यदि किसी राजनीतिक दल, व्यक्ति या संस्था को आवंटित किया जाता है, तो उसका आधिकारिक नाम व पता रिकार्ड में दर्ज होना चाहिए।
- नामांतरण के लिए आवेदन- जब किसी संगठन या व्यक्ति की जगह कोई नया व्यक्ति या पदाधिकारी उस संपत्ति का उपयोग शुरू करता है, तो उसे नामांतरण के लिए संबंधित विभाग को आवेदन देना अनिवार्य होता है। पहले जिसके नाम आवंटन है, उसके उत्तराधिकारी को आवेदन करके अपना दावा प्रस्तुत करना होता है।
- स्वीकृति प्रक्रिया- आवेदन प्राप्त होने के बाद संबंधित विभाग (जैसे जिला प्रशासन, पीडब्ल्यूडी या राज्य संपत्ति विभाग) भवन की स्थिति, उपयोग, भुगतान रिकार्ड आदि की जांच करता है। यदि सब कुछ सही हो, तो प्रशासनिक स्वीकृति के बाद नामांतरण मंजूर किया जाता है।
नगर आयुक्त ने खाली कराने के लिए लिखा था पत्र
सपा द्वारा एक साल से किराया जमा नहीं किया गया है। नगर आयुक्त ने 27 मार्च 2025 को शासन को पत्र भेजकर कोठी नंबर-चार को लेकर सिफारिश की थी कि इस संपत्ति को किसी राजनीतिक दल को न देकर शासकीय प्रयोजन में लिया जाए।
उन्होंने साफ कहा है कि 1994 का आवंटन आदेश अब अप्रासंगिक है और इसे तत्काल निरस्त किया जाए। शासन स्तर से जवाब न आने पर मंडलायुक्त ने 28 मार्च को पत्र लिखकर दिशा-निर्देश मांगे थे।
जवाब नहीं मिलने पर 23 जुलाई,.2025 को मंडलायुक्त ने शासन को रिमाइंडर भेजा है। मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए प्रमुख सचिव नगर विकास ने स्वयं इस तरह के मामलों की समीक्षा की और कार्रवाई शुरू कर दी।
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