कुली फिल्म का रेडियो और गदर का टेलीफोन देखना है तो आइए अमरोहा, लंदन की केतली के भी होंगे दर्शन
International Museum Day 2022 शौक तो शौक होता है। वह खानपान का हो घूमने का हो या विरासत को सहेजने का। उत्तर प्रदेश के अमरोहा जनपद के लोग भी गजब शौक रखते हैं। गजरौला में नाईपुरा निवासी राम सिंह के पास नायाब चीजों का संग्रह है।
अमरोहा, जेएनएन। International Museum Day 2022 : शौक तो शौक होता है। वह खानपान का हो, घूमने का हो या विरासत को सहेजने का। उत्तर प्रदेश के अमरोहा जनपद के लोग भी गजब शौक रखते हैं। गजरौला में नाईपुरा निवासी राम सिंह बौद्ध उत्तर-प्रदेश राज्य भंडार निगम मुरादाबाद के अधीक्षक पद से सेवानिवृत हैं। पुराने दौर की वस्तुएं संग्रह करने के शौक ने इन्हें निजी संग्रहालय का स्वामी बना दिया। वर्ष 2012 में इन्होंने संग्रहालय स्थापित किया।
अब इनके पास कुली फिल्म में चलने वाला एमई थाईलेंड मॉडल का रेडियो और गदर का टेलीफोन भी है। लंदन की वर्ष 1920 की केतली के साथ मुगलकाल से पहले चलने वाले सिक्के और नौ सौ से ज्यादा विभिन्न कंपनियों के रेड़ियो हैं। चाबी से चलने वाली घड़ी और जेब में रखने वाला टीवी भी संग्रहालय की शोभा बढ़ा रहा है। विभिन्न भाषाओं में हाथ से लिखे पोस्ट कार्ड, 500 पांडुलिपियां आदि भी यहां की शोभा बढ़ा रही हैं।
दुनिया की सबसे छोटी बाइबिल, 300 साल पुरानी महाभारत 10 खंडों वाली व 400 साल पुरानी भागवत गीता भी संग्रहालय में है। राम सिंह बौद्ध बताते हैं कि संग्रहालय में लगभग 15 लाख रुपये के पुराने दौर के उपकरण हैं। ये उपकरण चलने लायक हैं।रेडियो बजते हैं। घड़ी समय बताती है। उनका दावा है कि देशभर में उनके जैसा रेडिया का संग्रहालय नहीं है। इसलिए अब वह गिनीज बुक में दर्ज कराने की कवायद में जुटे हैं।
विदेशी करेंसी का खजाना भी हैः अमरोहा के मुहल्ला कोट निवासी सेवानिवृत्त शिक्षक अख्तर-उल-अब्बास 1973 से लुभावनी वस्तुओं का संग्रह करते आ रहे हैं। दिल्ली में तैनाती के दौरान रोजाना ट्रेन से आवागमन करने वाले अख्तर के पास दो सौ साल पुराना संगमरमर का पत्थर, 250 साल पुराना 30 रुपये की कीमत का स्टांप, बाट, लाइटर, प्याले, टार्च मौजूद हैं। साथ ही 75 देश के नोट तथा 52 तरह के 10 व पांच के सिक्के का संग्रह है।
यह संग्रहित वस्तुएं मुगल काल व उसके बाद की हैं। अख्तर-उल-अब्बास बताते हैं कि 1973 में दिल्ली में पहली तैनाती के बाद उन्होंने संग्रह करना शुरू कर दिया था। कुछ वस्तुएं खरीदीं तो कुछ तोहफे में मिलीं। सभी को उन्होंने सुरक्षित रखा है। इसके अलावा अख्तर की खास बात यह भी है कि वह 1973 से रोजाना घर के बाहर एक बोर्ड पर देसी नुस्खे लिखते हैं, 10 साल पहले तक उन्होंने दिल्ली-लखनऊ रूट की ट्रेनों के आने-जाने का समय भी लिखा।