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    'गुरु जी पास कर देना, वरना मेरी सौतेली मां...', यूपी बोर्ड की कॉपी देखकर टीचर के उड़े होश

    By Jagran NewsEdited By: Aysha Sheikh
    Updated: Thu, 20 Mar 2025 08:44 PM (IST)

    मुरादाबाद में यूपी बोर्ड परीक्षाओं की उत्तर पुस्तिकाओं का मूल्यांकन जारी है। दूसरे दिन 55953 कॉपियों की जांच हुई। इस दौरान परीक्षार्थियों ने नंबर पाने ...और पढ़ें

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    यूपी बोर्ड की कॉपी देखकर टीचर के उड़े होश - प्रतीकात्मक तस्वीर।

    जागरण संवाददाता, मुरादाबाद। जनपद में यूपी बोर्ड परीक्षाओं की उत्तर पुस्तिकाओं के मूल्यांकन का कार्य चल रहा है। गुरुवार को मूल्यांकन का दूसरा दिन रहा। जिसमें मूल्यांकन के दौरान छात्र-छात्राओं ने परीक्षकों को विभिन्न प्रकार से नंबर देने के लिए लुभाने का प्रयास किया। किसी ने कांपी में 500-500 के नोट रखकर नंबर देने को कहा।

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    तो किसी ने राम नाम पर भरोसा किया। एक छात्रा ने तो हद ही कर दी। उसने अपनी कापी में लिखा सर प्लीज मुझे पास कर देना। मेरी सौतेली मां है। जो मुझसे बहुत नफरत करती है। अगर में फेल हो गई। तो वह मेरी कहीं शादी करवा देगी। मैं अभी पढ़ाना चाहती है। मेरी शादी का फैसला अब आपके हाथ में है।

    कितने केंद्रो पर चल रहा मूल्यांकन

    जिले में मूल्यांकन कार्य पांच केंद्रों पर चल रहा है। दूसरे दिन कुल 55,953 उत्तर पुस्तिकाएं जांची गई। महाराजा अग्रसेन इंटर कालेज में गुरुवार को 11993, जीजी हिंदू इंटर कालेज में 14474, आरएन इंटर कालेज में 14318, पारकर इंटर कालेज में10190 और हैविट मुस्लिम इंटर कालेज में 4978 उत्तर पुस्किाएं जांची गई।

    अब तक कुल 96267 उत्तर पुस्किाएं जांची गई है। अभी भी 369399 उत्तर पुस्तिकाएं जांची जानी शेष हैं। उत्तर पुस्तिकाओं के मूल्यांकन के दौरान महाराजा अग्रेसन इंटर कालेज में एक शिक्षिका की कापियों में 500-500 के नोट मिले। मिली जानकारी के अनुसार उनकी कई कापियों में रुपये निकले थे। जिसमें 100 से लेकर 500 तक के नोट थे। जिसमें छात्रा ने उनसे पैसे के एवज में पास करने की बात कहीं।

    वहीं साइंस की एक छात्रा ने पूरी कांपी राम नाम से भर दी। कांपी के हर पन्ने और सिर्फ राम नाम लिखा था। उसने पूरे तीन घंटे सिर्फ राम-राम लिखा। वहीं एक अन्य छात्रा ने कापी में प्रश्न के स्थान पर प्रश्न और उत्तर के स्थान पर भी सिर्फ प्रश्न ही उतार दिए।

    100 रुपये की किताब... अभिभावक चुका रहे 1500 रुपये

    वहीं दूसरी ओर, निजी स्कूलों अपने बच्चों को पढ़ाना मुश्किल होता जा रहा है। स्कूलों की मनमानी इस कदर बढ़ गई है कि 100 रुपये की किताब के अभिभावक 1500 रुपये चुकाने को मजबूर हैं। मगर, जिम्मेदारों ने सब देख कर अनदेखा कर रखा है। निजी स्कूलों की मनमानी के खिलाफ अभिभावकों के लाख प्रयास भी काम नहीं आए।

    सत्र शुरु होने से पहले ही अभिभावकों ने जिलाधिकारी को ज्ञापन दिया। जिसमें उन्होंने सिलेबस में बदलाव न करने की बात कहीं। मगर, इसके बाद भी निजी स्कूलों ने सिलेबस में बदलाव कर दिया है। इस सिलेबस में अधिकतर किताबें निजी प्रकाशकों की लगाई गई है। जिन्हें खरीदने में अभिभावकों के घर का बजट बिगड़ रहा है।

    नियमानुसार निजी स्कूलों में सिर्फ एनसीईआरटी किताबों से पढ़ाई कराना अनिवार्य है। हां जिन विषयों की एनसीईआरटी किताबें बाजार उपलब्ध नहीं है। उनके स्थान पर निजी प्रकाशकों की किताबें लगाई जा सकती है। मगर, शहर के स्कूलों में नियम को किनारे करते हुए अधिकतर स्कूलों में एनसीईआरटी को कोर्स से किनारे कर दिया गया है।

    इन स्कूलों में निजी प्रकाशकों की किताबें लगाई गई है। जिनकी कीमत सुनकर ही अभिभावकों को होश उड़ रहे हैं। विज्ञान विषय की एनसीईआरटी पुस्तक के 100 रुपये में आ जाती है। लेकिन, स्कूलों ने इसके स्थान पर निजी प्रकाशकों की किताबें लगा दी है।

    वह भी बायो, कमेस्ट्री और फिजिक्स तीनों की अलग-अलग पुस्तक है। जिनमें एक की कीमत ही 500 रुपये के करीब है। इस तरह अभिभावकों की जैब पर दिनदहाड़े डाका डाला जा रहा है। मगर. जिम्मेदारों ने इसे देख कर अनदेखा कर रखा है।

    कमीशन के खेल का शिकार अभिभावक

    निजी स्कूलों में निजी प्रकाशकों की किताबें लगाने के पीछे कमीशन का खेल छुपा है। अभिभावकों से मिला जानकारी के अनुसार हर स्कूल का कोर्स अलग-अलग दुकानों पर मिलता है। हर स्कूल का कोर्स उसकी चुनिंदा दुकान पर ही उपलब्ध है।

    हर स्कूल अपनी पसंद के प्रकाशकों की किताबों को शामिल करता है। या यह कहना गलत नहीं होगा कि जो प्रकाशक स्कूलों को अच्छी कमीशन देता है। उसकी किताबें लगाई जाती है। फिर उन किताबों के लिए चुनिंदा दुकान मालिक से संपर्क किया जाता है। जिससे स्कूल दुकान और प्रकाशक दोनों से अपनी कमीशन लेता है और अभिभावकों को उसकी चुनी दुकान से किताबें खरीदने को मजबूर करता है।

    हर साल बदल दिया जाता है सिलेबस

    निजी स्कूलों में हर साल सिलेबस में बदलाव कर दिया जाता है। अभिभावकों ने बताया कि इससे हर साल अभिभावकों को नई पुस्तकें खरीदनी पड़ती है। सिलेबस में मामूली बदलाव करके पुरानी किताबें को सिलेबस से हटा दिया जाता है। जिससे अभिभावकों अपने बच्चों के लिए हर साल नए सिलेबस को खरीदने के लिए मजबूत हो जाते हैं।

    अभी मेरे पास अभिभावकों की ओर से ऐसी कोई शिकायत नहीं आई है। अगर शिकायत आती है। तो नियमों के अनुसार उसपर कार्रवाई की जाएगी। -देवेंद्र कुमार पांडे, जिला विद्यालय निरीक्षक