मुरादाबाद जीएसटी फर्जीवाड़ा: टैक्स चोरों ने 'इंटरप्राइजेज' नाम को बनाया ढाल, राज्यकर विभाग को ऐसे किया गुमराह
जीएसटी चोरी के मामले में राज्यकर विभाग को गुमराह करने के लिए 'इंटरप्राइजेज' जैसे नामों का इस्तेमाल किया गया। फर्जी ई-वेबिल जारी किए गए और जांच में 535 फर्मों का खुलासा हुआ। इन फर्मों ने फर्जी बिल बनाकर इनपुट टैक्स क्रेडिट पास किया। विभाग टर्नओवर, जीएसटी फाइलिंग और ई-वेबिल की गहन जांच कर रहा है।
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प्रतीकात्मक चित्र
जागरण संवाददाता, मुरादाबाद। जीएसटी चोरी प्रकरण में सामने आ रहे नए खुलासे विभागीय अधिकारियों को चौंका रहे हैं। स्पष्ट हो रहा है कि फर्जी टैक्स नेटवर्क सुनियोजित था कि शुरुआत से ही इसे राज्यकर विभाग की नजरों से बचाने की रणनीति तैयार की थी। इसी के तहत एक अहम हिस्सा था, फर्म के नाम में ‘इंटरप्राइजेज’ जोड़ना। यह नामकरण पैटर्न उन फर्मों में आमतौर पर देखा जाता है, जो केमिकल, पाउडर, औद्योगिक कच्चे माल या बड़ी कंपनियों की सप्लाई से जुड़ी होती हैं।
इस रुटीन को ढाल बनाते हुए टैक्स चोरों ने अपनी फर्जी फर्मों के नाम एके इंटरप्राइजेज, सौरभ इंटरप्राइजेज, एसके इंटरप्राइजेज जैसे रखे, ताकि पहली नजर में वे सामान्य व्यापारिक इकाइयों की तरह ही दिखें। लेकिन, ई-वेबिल, टर्नओवर और रूट की वजह से यह चोरी का खेल राज्यकर अधिकारियों ने पकड़ लिया। जांच जैसे जैसे आगे बढ़ रही है और जीएसटी चोरी के इस ताने-बाने ने मुरादाबाद ही नहीं, प्रदेश भर में टैक्स प्रशासन को सतर्क कर दिया है।
इंटरप्राइजेज नाम देखकर आमतौर पर यह अनुमान लगाया जाता है कि फर्म बड़े स्तर पर आपूर्ति करती है। इसी भरोसे का दुरुपयोग करते हुए फर्म संचालकों ने पहले ई-वेबिल जनरेट किए और फिर बाद में स्क्रैप के बिल तैयार कर जीएसटी चोरी कर ली। कई फर्म ने तो पहले कुछ दिन नियमित व्यापार का दिखावा किया और उसके बाद लाखों-करोड़ों के फर्जी बिल बनाकर इनपुट टैक्स क्रेडिट (आइटीसी) पास कर दिया। 24 अक्टूबर को पकड़े गए लोहे से भरे ट्रक की चोरी ने तो जैसे इस पूरे प्रकरण का दरवाजा खोल दिया।
एक ट्रक से शुरू हुई जांच में परत दर परत खुलासा होता गया और अब मामला 535 फर्मों तक पहुंच गया है। जांच टीम के अनुसार, यह संख्या और बढ़ सकती है, क्योंकि अनेक फर्म एक-दूसरे से लिंक होती जा रही हैं। राज्यकर विभाग अब हर संदिग्ध फर्म के टर्नओवर, जीएसटी फाइलिंग, ई-वेबिल, बैंक लेन-देन और खरीदार–विक्रेता चेन की बारीकी से जांच कर रहा है।
जांच में यह भी मिला कि कई फर्म ने एक ही पते से चलने का दावा किया, जबकि मौके पर वहां कोई कारोबारी गतिविधि नहीं मिली। कुछ फर्म में मोबाइल नंबर, ईमेल और संपर्क व्यक्ति भी एक ही थे। यह संकेत देता है कि पूरा नेटवर्क सीमित लोगों द्वारा नियंत्रित था, जो फर्जी नामों और दस्तावेज़ों का उपयोग करके करोड़ों रुपये का कारोबार दिखाकर आइटीसी पास कर रहे थे।
टीम हर फर्म की गहन जांच कर रही है और अब किसी भी उत्पाद की सप्लाई करने वाली फर्म का अचानक बढ़ा हुआ टर्नओवर संदेह के दायरे में लिया जा रहा है। विभाग ने ई-वेबिलों की भी स्कैनिंग शुरू कर दी है। जिन फर्म ने बड़े स्तर पर बिल जनरेट किए लेकिन, उनके पास वास्तविक स्टाक नहीं मिला, वे सीधे जांच के रडार पर हैं। नेटवर्क जितना बड़ा है, उतने ही बड़े फर्जी लेनदेन सामने आने की संभावना है।
- अशोक कुमार सिंह, अपर आयुक्त ग्रेड-वन राज्यकर मुरादाबाद जोन
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