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KARGIL VIJAY DIVAS : तीन गोलियां लगने के बावजूद जीत हासिल करने के लिए लड़ते रहे अखिलेश Moradabad News

टुकड़ी को कुछ कर गुजरने का जज्बा दिखाया और उनका नाम इतिहास में दर्ज हो गया। कैप्टन अखिलेश की टीम ने तोलोलिंग पहाड़ी पर जीत हासिल की।

By Narendra KumarEdited By: Published: Fri, 26 Jul 2019 02:46 PM (IST)Updated: Fri, 26 Jul 2019 04:15 PM (IST)
KARGIL VIJAY DIVAS  : तीन गोलियां लगने के बावजूद जीत हासिल करने के लिए लड़ते रहे अखिलेश Moradabad News
KARGIL VIJAY DIVAS : तीन गोलियां लगने के बावजूद जीत हासिल करने के लिए लड़ते रहे अखिलेश Moradabad News

मुरादाबाद, जेएनएन। कारगिल युद्ध भारत का ही नहीं बल्कि विश्व के सबसे मुश्किल युद्धों में एक माना जाता है। यह युद्ध केवल कुशल नेतृत्व और कौशल के बल पर नहीं बल्कि भारतीय जांबाज सिपाहियों के हौसले और पराक्रम के बल पर जीता गया। जान की बाजी लगाने की ऐसी मिशाल इतिहास के बहुत कम युद्धों में देखने को मिलती है। मुरादाबाद के कैप्टन अखिलेश सक्सेना ने हिम्मत और बहादुरी भी उन बिरले शूरवीरों में शामिल हैं, जिन्होंने तीन गोलियां लगने के बाद भी दुश्मनों को मुंहतोड़ जवाब दिया और कारगिल युद्ध की पहली सबसे बड़ी मुश्किल तोलोलिंग जीत हासिल करके ही दम लिया। 

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नवीन नगर निवासी सीपी सक्सेना के बेटे अखिलेश सक्सेना कारगिल युद्ध के समय द्रास सेक्टर में बतौर कैप्टन तैनात थे। घुसपैठियों के ऊंचे स्थान पर होने के कारण भारतीय सेना उनके सीधे निशाने पर थी। सेना के दो हमले विफल हो चुके थे। ऐसे समय अखिलेश सक्सेना को सीधा मोर्चा लेने के लिए कमांड सौंपी गई। उनके सामने पहली चुनौती तोलोलिंग पहाड़ी को जीतने की थी। राजपूताना राइफल्स रेजीमेंट की अपनी टुकड़ी के साथ वे दुश्मनों की गोलियों की परवाह किए बिना आगे बढ़ते रहे। इससे पहले उन्होंने अपने परिवार को अपने शायद वापस न लौटने की चिट्ठी भेज दी थी। लेकिन कुदरत को कुछ और मंजूर था। लेह-लद्दाख को जोडऩे वाले नेशनल हाईवे को पाकिस्तान के चंगुल से मुक्त कराया जा सका। 

 खून से लथपथ होने के बावजूद नहीं खोया हौसला

 अखिलेश सक्सेना ने बताया कि 1999 को देर रात करीब तीन बजे जब तोलोलिंग को पाकिस्तान के कब्जे से मुक्त कराकर आगे कूच करने के लिए सैनिकों को प्रेरित कर रहे थे। इसी दौरान तीन गोलियां लगने से घायल हो गए। हाथ में गोलियां लगने के बावजूद हिम्मत नहीं हारी। खून से लथपथ होने के बावजूद उन्होंने पीछे मुडऩा स्वीकार नहीं किया और जीत हासिल होने तक लड़ते रहे। जबकि दुश्मन ऊंचाई पर था और उसकी लोकेशन का पता नहीं चल पा रहा था। रास्ते में लैंडमाइंस बिछा रखी थीं तो गोलियों के साथ बमों की बौछार के बीच पहाड़ी से बड़े-बड़े पत्थर धकेले जा रहे थे। सामने मौत होने के बावजूद उन्होंने जीत हासिल करके ही दम लिया। अखिलेश सक्सेना को विशेष विमान से आर्मी अस्पताल लाया गया, जहां उनका एक साल तक इलाज चला। भारत सरकार ने उनके अदम्य साहस के लिए गैलेंट्री अवार्ड से सम्मानित किया। जबकि उप्र के राज्यपाल ने राजभवन में सम्मानित किया। 

 सपरिवार होंगे सम्मानित 

 वहीं अखिलेश सक्सेना ने कारगिल युद्ध विजय की बीसवीं सालगिरह पर कहा कि सांस का हर सुमन है वतन के लिए, जिंदगी भी हवन है वतन के लिए। वहीं, पिता सीपी सक्सेना ने बताया कि बीस साल पूरे होने पर सभी योद्धाओं को सपरिवार सम्मानित करने का फैसला लिया है। कैप्टन अखिलेश सक्सेना सपरिवार कारगिल रवाना हो चुके हैं।

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