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    BOOK REVIEW : सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार करती काव्य संग्रह है अंतर्वेदना Moradabad News

    By Narendra KumarEdited By:
    Updated: Sat, 06 Jul 2019 05:10 PM (IST)

    इस काव्य संग्रह में जीवन का प्रत्येक पक्ष मुखरित हुआ प्रतीत होता है । इसमें उल्लास वेदना प्रसन्नता व दर्द के साथ नयनों से छलकते हर्ष के आंसू भी हैं । समाज का प्रतिबिंब इन कविताओं

    BOOK REVIEW : सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार करती काव्य संग्रह है अंतर्वेदना Moradabad News

    मुरादाबाद, जेएनएन। साहित्यकार अपनी साधना से पुष्पवत संपूर्ण परिवेश को सुवासित करता है। उसका साहित्य जहां समाज में दर्पण का कार्य करता है वहीं आने वाली पीढिय़ां उसके रचनात्मक सृजन से अपना पथ प्रशस्त करती हैं। जिस प्रकार मानव जन्म दुर्लभ है, उसी भांति साहित्य सृजन करना भी अत्यन्त दुर्लभ है। मेरा मानना तो यह है कि यह कर्म ईश्वर प्रदत्त है। कहा भी गया है कि

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    नरतंवं दुर्लभ लोके विधा तत्र दुर्लभ

    कवित्वं दुर्लभं तत्र शक्तिस्तत्र सुदुर्लभ

    काव्य प्रकाश से( मम्मट)। डॉ. रीता सिंह ईश्वर द्वारा प्रदत्त प्रतिभा की धनी हैं। समय-समय पर उनकी कविताएं अनेक पत्र पत्रिकाओं में प्राय: प्रकाशित होती रहती हैं। अंतर्वेदना उनका प्रथम काव्य संग्रह है ।

    112 पृष्ठों की है काव्य संग्रह

    साहित्यपीडिया पब्लिशिंग की ओर से प्रकाशित यह काव्य संग्रह 112 पृष्ठों में समाहित है। इसमें सत्तर मनमोहक कविताएं हैं । ये कविताएं कवयित्री के हृदय से मुखरित उनकी भावाभिव्यक्ति, मन के दृष्टिकोणों का आत्मकथ्य या फिर उनके हृदय से उद्भूत सारगर्भित सत्य प्रतीत होती हैं। अंतर्वेदना पढ़कर ऐसा लगता है मानो कवयित्री ने समाज को अपनी पारखी नजरों से परख कर इसे कविताओं के रूप में समायोजित कर दिया है।

    विभिन्न आयामों को किया है समाहित

    इस काव्य संग्रह में जीवन का प्रत्येक पक्ष मुखरित हुआ प्रतीत होता है । इसमें उल्लास, वेदना, प्रसन्नता व दर्द के साथ नयनों से छलकते हर्ष के आंसू भी हैं । समाज का प्रतिबिंब इन कविताओं में झलकता है। हृदय समाज के भावों, विचारों एवं क्रिया कलापों को दर्शाता हुआ दर्पण बन जाता है।

    प्रस्तुत काव्य संग्रह में कवयित्री कहीं प्रकृति का अंग प्रतीत होती है, तो कहीं समाज के हृदय की धड़कन। एक बार यदि काव्य संग्रह को पढऩा शुरू कर दिया जाए तो पाठक मंत्र मुग्ध सा बस पढ़ते ही जाता है। बहुत सुंदर सृजन व अनूठी रचना है। कवयित्री निसंदेह बहुआयामी प्रतिभा की धनी हैं। काव्य संग्रह के प्रारंभ में कवयित्री ने रीतिकालीन परम्परा का निर्वाह करते हुए ईश वंदना के रूप में गुरु वंदन एवं मातृ वंदन किया है, जो उनके कृतज्ञता के भाव को प्रकट करता है । यह काव्य संग्रह चार भागों में विभक्त है-

    1-अंतर्वेदना, 2-नेह की पीड़ा, 3-देश मेरा है बड़ा निराला, 4-ममता के स्वर।

    काव्य संग्रह के प्रथम भाग अंतर्वेदना में नारी के कोमल कांत हृदय की वेदना को व्यक्त किया गया है। कवयित्री भू्रण हत्या जैसे अपराध और अंधविश्वास जैसी कुरीतियों के प्रति कितनी सजग है इसका मार्मिक वर्णन इसमें निहित है। नारी जो बिना प्रसव के ही मां बन सकती है अर्थात दूसरे के दुख को अनुभूत कर सकती है इन भावों को कवयित्री ने अपनी अंतर्वेदना में बखूबी बिंब रूप में उकेरा है -

    बहुत रोई थी उस दिन मेरी संवेदना

    जब मेरी मां ने मेरी होने वाली बहन को

    उसके जन्म लेने से पहले ही

    अपने गर्भाशय की छोटी सी

    दुनिया से निकाल

    चिरस्थायी नींद में सुला दिया था।

    काव्य संग्रह के भाग - 2 नेह की पीड़ा में कवयित्री ने बहुत ही सुंदर भाव-

    होती है प्यास क्या ये उससे पूछते हो क्यों?

    जिस नाव ने सूखा हुआ दरिया नहीं देखा।

    को जाग्रत किया है -

    इस पीड़ा का निर्मोही तान्हा

    अहसास यदि तुम कर जाते

    नहीं विरह - अग्नि में हमको

    गोकुल छोड़ गमन कर पाते ।

    संग्रह के भाग - 3 में देश मेरा है बड़ा निराला शीर्षक कविता में परोपकार की भावना एवं भारतीय संस्कृति को बिम्बित किया गया है-

    अरुण यह मधुमय देश हमारा।

    जहां पहुंच अंजान क्षितिज को मिलता एक किनारा।

    आक्रमणकारी या व्यापारी

    जिस नीयत से जो भी आया

    दामन फैलाकर इसने अपना

    सबको आगे बढ़ अपनाया।

    मां वास्तव में इस स्वर्ग सदृश धरती पर ईश्वर का ही दूसरा रूप होती है। वह करुणा की मूर्ति, सहनशीलता का आधार है । मानव जीवन में स्त्री अनेक रूपों में सामने आती है, परंतु उनमें उसका महान व सर्वश्रेष्ठ रूप मां का ही होता है । नारी के इस रूप में उसके अनेक गुणों को प्रस्तुत करती हुई कविता मां तो बस मां होती है इस काव्य संग्रह की अनुपम एवं सर्वश्रेष्ठ कविता है ।

    उठती सुबह सबसे पहले

    बिन आहट कोई सुन न ले

    कारज अपने निश्चित करके

    अरज ईश्वर से वो करती है

    जिसे जरूरत जो होती है

    मां तो बस मां होती है ।

    अंतर्वेदना काव्य संग्रह की सभी कविताएं हृदय से निकली संवेदनाएं प्रतीत होती हैं। रचनाओं में मानव मूल्यों के प्रति सत्यनिष्ठा स्पष्ट परिलक्षित होती है। जीवन के भावपूर्ण पहलुओं को छूने वाली कवयित्री की कविताओं में संवेदनशीलता है। काव्य संग्रह की भूमिका स्वयं कवयित्री ने लिखकर साहसपूर्ण व अनूठा कार्य किया है। यह कृत्य कुछ इस भांति प्रतीत होता है

    तनक कचाई देत दुख, सूरन लौ मुंह लागि।

    उपर्युक्त आधार पर कह सकते हैं कि डॉ. रीता सिंह का यह प्रथम काव्य संग्रह सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार करता हुआ पर्यावरण सुरक्षा, भ्रूण हत्या, बेटी बचाओ, मानवीय मूल्यों, भारतीय संसंकृति एवं समाज सुधार का एक सशक्त माध्यम सिद्ध होगा। कवयित्री को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं । आशा है भविष्य में भी उनकी श्रेष्ठ तथा लाभप्रद साहित्यिक कृतियाँ मिलती रहेंगी। हिंदी के रसज्ञ पाठकों द्वारा अंतर्वेदना हृदय से स्वागत योग्य है ।

    पुस्तक : अन्तर्वेदना

    लेखिका : डॉ. रीता सिंह

    प्रकाशन : साहित्यपीडिया पब्लिशिंग

    मूल्य : 150 रुपये

    पृष्ठ : 112

    समीक्षक

    डॉ. अविनाश कुमार

    प्रवक्ता ( हिंदी )

    कुन्दन मॉडल इंटर कॉलेज , अमरोहा

    ( उत्तर प्रदेश )