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    बदायूंनी ने लिखा था हल्दीघाटी युद्ध का आंखों देखा हाल

    By Edited By:
    Updated: Mon, 09 May 2016 02:04 AM (IST)

    जागरण संवाददाता, मुरादाबाद: महाराणा प्रताप और उनके प्रिय घोड़े चेतक की गाथा को कौन नहीं जानता? लेकिन

    जागरण संवाददाता, मुरादाबाद: महाराणा प्रताप और उनके प्रिय घोड़े चेतक की गाथा को कौन नहीं जानता? लेकिन यह बहुत कम लोग जानते हैं कि हल्दीघाटी युद्ध का आंखों देखा हाल बदायूं के अब्दुल कादिर बदायूनी ने लिखा है।

    यह युद्ध 18 जून 1576 ईस्वीं में मेवाड़ और मुगलों के बीच हुआ था। इसमें मेवाड़ की सेना का नेतृत्व महाराणा प्रताप ने किया था। युद्ध में महाराणा प्रताप की तरफ से लड़ने वाले हकीम खां सूरी एकमात्र मुस्लिम सरदार थे। इस युद्ध में मुगल सेना का नेतृत्व मानसिंह और आसफ खां ने किया। युद्ध का आंखों देखा वर्णन बदायूं के अब्दुल कादिर बदायूनी ने किया। इस युद्ध को आसफ खां ने अप्रत्यक्ष रूप से जेहाद की संज्ञा दी। युद्ध में बींदा के झालामान ने अपने प्राणों का बलिदान करके महाराणा प्रताप के जीवन की रक्षा की थी। वहीं ग्वालियर नरेश राजा रामशाह तोमर भी अपने तीन पुत्रों और पौत्र व सैकड़ों तोमर राजपूत योद्धाओं समेत मारे गए थे। पुस्तकालय अध्यक्ष केपी अहिरवार ने बताया कि महाराणा प्रताप से जुड़ी किताबें व साहित्य को बच्चे निरंतर पढ़ते हैं।

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    फिल्म-टीवी व साहित्य में छाई है स्वाधीनता की गाथा

    मुरादाबाद: अपनी मातृभूमि की स्वाधीनता के लिए जीवन का बलिदान करने वाले महाराणा प्रताप की गाथा को कौन नहीं जानता? फिल्म-टीवी और साहित्य में आज भी उनकी स्वाधीनता गाथा छाई है। वर्ष 2013 में सोनी टीवी पर दि महाराणा प्रताप नाम से धारावाहिक प्रसारित हुआ तो इसमें बाल कुंवर प्रताप का पात्र फैसल खान और महाराणा प्रताप का पात्र शरद मल्होत्रा ने निभाया था। यह सीरियल आज भी घर-घर में चर्चित है। राजस्थान के कवि कन्हैयालाल सेठिया ने भी महाराणा प्रताप के जीवन काल पर बहुत कुछ लिखा है। उन्हीं के शब्दों में, महाराणा प्रताप का जीवन काल बहुत ही कठिनाई के दौर से गुजर रहा था। वे मुगलों की अधीनता स्वीकार नहीं करना चाहाते थे और परिणामस्वरूप उन्हें जंगल-जंगल में छुप-छुप कर गुजर बसर करनी पड़ रही थी। राणा प्रताप मेवाड़ को मुगलों से वापस छीनना चाहते थे और उसी कारण छापामार युद्ध कर रहे थे और मुगलों को करारा नुकसान दे रहे थे। उन्हीं कठिन दिनों में एक दिन जब राणा प्रताप ने अपने बेटे अमरसिंह को घास से बनी रोटी खाने के लिए दी और वह भी एक जंगली बिल्ला लेकर भाग गया तो अपने बेटे को भूख से रोता देख राणा का मन द्रवित हो उठा और उन्होंने आत्मसमर्पण के लिए अकबर को पत्र भेजा। इस पर अकबर को विश्वास नहीं हुआ। अकबर ने अपने कवि पीथल से पत्र भेजने को कहा। पीथल राणा प्रताप का बहुत सम्मान करता था। पीथल ने कुछ जोश से भरपूर पक्तिया लिखी और महाराणा प्रताप को फिर कभी न झुकने के प्रण को याद दिलाया तो महाराणा प्रताप फिर से मुगलों से लोहा लेने के लिये तत्पर तैयार खड़े हो गए। यही कारण है कि पूरे देश में महाराणा प्रताप को आज भी याद किया जाता है।

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