विंध्यधाम: आस्था का केंद्र विहंगम त्रिकोण, पूर्वांचल के पहले रोपवे से सुगम डगर
विंध्याचल में स्थित मां विंध्यवासिनी मंदिर एक प्रमुख तीर्थ स्थल है जहां मां विंध्यवासिनी अपने पूरे शरीर के साथ विराजमान हैं। यहां त्रिकोण यात्रा का विशेष महत्व है जिसमें मां अष्टभुजा महाकाली और मां विंध्यवासिनी के दर्शन किए जाते हैं। मंदिर के आसपास के क्षेत्र में कई अन्य दर्शनीय स्थल भी हैं जिनमें कालीखोह मोतिया तालाब और विंधम फाल शामिल हैं।
मिलन गुप्ता, मीरजापुर। विंध्य पर्वत शृंखला के मध्य पतित पावनी मां गंगा के कंठ पर विराजमान मां विंध्यवासिनी देवी का मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का प्रमुख केंद्र है। मां विंध्यवासिनी को महासिद्ध पीठ माना जाता है। यहां माता विंध्यवासिनी अपने पूरे शरीर के साथ विराजमान हैं जबकि देश के अन्य 51 शक्तिपीठों में माता सती के शरीर का एक-एक अंग गिरा है।
ख्यात पंडित स्वामी दीनबंधु महाराज के अनुसार, जैसे साकेत का प्रतिनिधित्व अयोध्या करता है, गौलोक का वृंदावन, बैकुंठ का द्वारका और शिवलोक का काशी करता है, उसी प्रकार विंध्याचल मणिद्वीप का प्रतिनिधित्व करता है। इसका वर्णन श्रीमद्भागवत में भी है। ऋषि-मुनियों के लिए सिद्धपीठ आदि काल से सिद्धि पाने के लिए तपस्थली रहा है।
विश्व का एकमात्र ऐसा स्थल जहां मां सत, रज, तम गुणों से युक्त महाकाली, महालक्ष्मी और अष्टभुजा तीनों रूपों में एक साथ विराजती हैं। तीन देवियों के त्रिकोण में भगवान शिव विराजमान हैं जो विंध्य पर्वत को शिव शक्ति बनाकर भक्तों का कल्याण करते हैं। विंध्यधाम में त्रिकोण यात्रा का विशेष महत्व है।
मां विंध्यवासिनी का पद्मपुराण में उल्लेख
विंध्य पंडा समाज के अध्यक्ष पंकज द्विवेदी के मुताबिक, मां विंध्यवासिनी का पद्मपुराण में विंध्यवासिनी के नाम से उल्लेख मिलता है तो मंदिर के बारे में मार्कंडेय पुराण में लिखा है।
विंध्य पवर्त का इशान कोण विंध्य क्षेत्र में ही माना जाता है। इस कोण पर मां विंध्यवासिनी विराजमान हैं। मां के दरबार में चैत्र व शारदीय नवरात्र के साथ ही विशेष तिथियों पर श्रद्धालुओं की भीड़ होती है।
दिल्ली, मुंबई, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ समेत अन्य प्रदेशों से श्रद्धालु सुख समृद्धि की कामना के लिए आते हैं। मुंडन संस्कार को लेकर भी भीड़ होती है। महाकुंभ के दौरान विगत दिन चार दिनों में ही छह लाख श्रद्धालु मां के दरबार में शीश नवा चुके हैं। मां विंध्यवासिनी मंदिर से तीन किलोमीटर की दूरी पर कालीखोह पहाड़ी पर मां विंध्यवासिनी का महाकाली स्वरूप स्थित है।
मान्यता है कि रक्तबीज दानव ने ब्रहा के आशीर्वाद के बाद स्वर्गलोक से ब्रहा, विष्णु व महेश सहित अन्य देवताओं को भगा दिया था। रक्तबीज दानव को आशीर्वाद था कि उसका एक बूंद खून जमीन पर गिरेगा तो लाखों दानव पैदा होंगे।
ब्रहा, विष्णु व महेश सहित अन्य देवताओं के आग्रह से मां विंध्यवासिनी ने महाकाली स्वरूप धारण कर रक्तबीज दानव का वध किया। नवरात्रि में यहां श्रद्धालु तंत्र विद्याओं की सिद्धि के लिए आते हैं। मां अष्टभुजा के मंदिर में मां आठ भुजाओं वाले रूप में विराजमान हैं।
काशी की तरह भव्य गंगा आरती के लिए स्थान निर्धारित
सरकार के प्रयासों से आज इसकी पहचान एक धार्मिक स्थल के रूप में ही नहीं बल्कि पर्यटन विकास के साथ आर्थिक नियोजन के रूप में भी होने लगी है। आस्था का केंद्र विहंगम त्रिकोण अब देश-विदेश के श्रद्धालुओं को आकर्षित करने लगा है। नव्य-भव्य विंध्यधाम आकार ले चुका है।
41 करोड़ रुपये से मां विंध्यवासिनी मंदिर के चारों तरफ परकोटा व परिक्रमा पथ बन गया है। करीब 36 करोड़ रुपये से मां विंध्यवासिनी मंदिर को जाने वाले मार्गों को जोड़ने वाले पहुंच मार्गो का सुदृढ़ीकरण कर दिया गया है। इसके अलावा 36.33 करोड़ रुपये से मंदिर की गलियों में फसाड लाइट ट्रीटमेंट से पूरा धाम जगमग हो रहा है।
सरकार द्वारा मां विंध्यवासिनी मंदिर में आयोजित मेले को राज्यस्तरीय मेला घोषित किया गया है। धाम के उत्तर दिशा में 48 करोड़ रुपये से गंगा किनारे पक्का स्नान घाट व पाथवे का निर्माण कराया जा रहा है।
इसके अलावा हरिद्वार की तर्ज पर मां की पैड़ी प्रस्तावित है। पर्यटन विकास को धार देने के लिए करीब 4.87 करोड़ रुपये से पर्यटन को लेकर साइनेज बोर्ड लगाए जा रहे हैं और 75 प्रतिशत कार्य पूर्ण हो चुका है।
मां अष्टभुजा के पास स्थित मोतिया तालाब का जीर्णोद्धार व सौंदर्यीकरण कराया जा रहा है। तालाब की सीढ़ियों पर पत्थर लगाने का कार्य, शौचालय, ब्लाक में स्लैब का कार्य तथा पार्क के पाथवे निर्माण एवं चेनलिंक फेनसिंग का कार्य प्रगति पर है। दीवान घाट पर शौचालय के साथ ही सांस्कृतिक संध्या व आरती के लिए मंच का निर्माण जारी है।
रोपवे से घाटी की अद्भुत नजारा संग सुलभ दर्शन
मां विंध्यवासिनी के दर्शन के साथ त्रिकोण दर्शन को सुलभ बनाने के लिए कालीखोह व अष्टभुजा मंदिर के पास रोप-वे शुरू किया गया है। इसे पूर्वांचल के पहले रोप-वे के रूप में भी जाना जाता है।
पहले 12 किलोमीटर की पैदल यात्रा और सैकड़ों सीढ़ियां चढ़ने के बाद मां के भक्त महालक्ष्मी, महाकाली व मां सरस्वती के त्रिकोण दर्शन करते थे। रोप-वे बन जाने से विदेशी सैलानी भी यहां घाटी का मनोरम दृश्य देखने पहुंच रहे हैं। नव्य, भव्य धाम बनने के बाद मीरजापुर के आर्थिकी को भी पंख लगे हैं।
विंध्याचल के गंगा घाटों पर फ्लोटिंग जेटी
विंध्याचल स्थित मां विंध्यवासिनी मंदिर के नजदीक गंगा घाटों पर लगभग कुल 1250 मीटर लंबाई की फ्लोटिंग जेटी व प्लेटफार्म निर्माण तथा हाई स्पीड बोट पर 1.32 करोड़ रुपये खर्च होंगे।
इसके लिए पर्यटन विभाग की ओर से प्रस्ताव तैयार गत वर्ष सितंबर में ही निदेशालय को प्रेषित किया जा चुका है। इसके अलावा टांडा फाल के पास मियावाकी पद्धति से पार्क व गार्डन का निर्माण कराया जा रहा है। विंध्यवासिनी धाम के उत्तर दिशा में पक्का स्नान घाट व पाथवे बनाने की योजना है।
अन्य दर्शनीय स्थल
- 300 वर्ष पुराना ऐतिहासिक ओझला पुल
- मड़िहान स्थित विंढम फाल
- मां अष्टभुजा के पास स्थित मोतिया तालाब
- कुशियरा फाल
- चुनार स्थित लखनिया दरी वाटर फाल
- चुनार स्थित सिद्धनाथ दरी वाटर फाल
- विंध्याचल स्थित नागकुंड
ऐसे पहुंचें मीरजापुर
विमान सेवा: वाराणसी और प्रयागराज दो करीबी हवाई अड्डे हैं। वहां से मीरजापुर के लिए आसानी से टैक्सी या बस मिल जाएगी। ट्रेन से आ रहे हैं तो मीरजापुर या विंध्याचल स्टेशन पर उतर सकते हैं। 45 जोड़ी ट्रेनें मीरजापुर स्टेशन और 22 जोड़ी ट्रेनें विंध्याचल स्टेशन पर रुकती हैं। यहां उतरने के बाद आप स्थानीय साधन का इस्तेमाल कर सकते हैं।
दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, छत्तीसगढ़, बिहार, मध्य प्रदेश के बड़े शहरों से मीरजापुर के लिए सीधी ट्रेन सेवा है। वाराणसी से मीरजापुर के लिए हर 15 मिनट में बसें उपलब्ध हैं।
प्रयागराज से भी कई बसें सीधे मीरजापुर के रोडवेज डिपो और विंध्याचल डिपो तक आती हैं। ऐसे में मीरजापुर में आने के लिए कनेक्विटी में कोई कमी नहीं है। इसके अलावा आप सुविधानुसार प्रयागराज या वाराणसी से कैब भी बुक कर सकते हैं।
मां विंध्यवासिनी मंदिर की दूरी
- 8 किलोमीटर मीरजापुर मुख्यालय से
- 70 किलोमीटर वाराणसी से
- 85 किलोमीटर प्रयागराज से
- 283 किलोमीटर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से
- 767 किलोमीटर देश की राजधानी दिल्ली से
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