गंगा पर बने तीन पुल साबित हो रहे हाथी के दांत
दुर्घटनाओं रोकने एंव व्यापार को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा करोड़ों रुपये खर्च करके गंगा नदी पर तीन तीन पुल का निर्माण कराया गया है। करोड़ों खर्च करने के बावजूद किसी को समस्या से निजात नहीं मिला। सभी सेतु बेकार साबित हो रहे हैं। शासन की लापरवाह के चलते सरकार को प्रति मह दस करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ रहा है।
जागरण संवाददाता मीरजापुर : दुर्घटनाओं रोकने एवं व्यापार को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा करोड़ों रुपये खर्च करके गंगा नदी पर तीन तीन पुल नाकाफी साबित हो रहे हैं। तीनों पुलों से बड़े वाहनों के आवागमन पर पाबंदी लगाए जाने के कारण एक ओर सरकार को प्रतिमाह दस करोड़ रुपये के राजस्व का घाटा हो रहा है वहीं ट्रांसपोर्ट का धंधा भी चौपट होता जा रहा है। करोड़ों खर्च करने के बावजूद किसी को समस्या से निजात नहीं मिला। समय रहते इसपर ध्यान नहीं दिया गया तो वह दिन दूर नहीं जब इस जिले से ट्रांसपोर्ट का धंधा पूरी तरह से समाप्त हो जाएगा।
जनपद बढ़ते वाहनों के दबाव को कम करने के लिए शासन की ओर से गंगा तीन पर लगभग 20 करोड़ रुपये खर्च करके तीन सेतु बनाए गए हैं। इसमें 1976 में पहला तीन करोड़ की लागत से पहला शास्त्री सेतु का निर्माण कराया गया था। जिसका मानक नौ और 18 टन रखा गया था। लेकिन जैसे जैसे समय बीतता गया इसपर वाहनों का भार बढ़ता गया। पिछले कुछ सालों मे इसपर से नौ और 18 टन की बजाय 40 टन का भार वाहन लेकर गुजरने लगे। इससे पुल धीरे धीरे जर्जर होता चला गया। दो महीने पहले पुल से वाहन गुजरने पर उसमें धमक पैदा होने लगी। जिसकी जांच के लिए दिल्ली की टीम की बुलाई गई। टीम ने जांच के बाद पुल की मरम्मत कराए जाने की बात कही। मरम्मत के लिए लगभग 74 लाख रुपये का खर्च आना बताया गया। निर्देशित किया गया कि गया अगर पुल से बड़े वाहन गुजारे गए तो खतरा हो सकता है। इसको देखते हुए पुल पर बड़े वाहनों के आने जाने पर पाबंदी लगा दी गई। वहीं भटौली और चुनार में लगभग 14 करोड़ रुपये की लागत से बनाए गए दोनों पुल पर भी बड़े वाहनों के आवागमन पर पाबंदी लगा दी गई। जिससे जिले में वाहनों की लंबी लाइनें लगनी शुरू हो गई। 48 घंटे तक जाम लगने लगा। स्थिति काफी बदतर हो गई। जाम को देखते हुए वाहन मालिकों ने सड़क पर उतरकर अपना विरोध जताना शुरू कर दिया। फिर भी पुल से बड़े वाहनों के आने जाने पर लगी पाबंदी को नहीं हटाया। इससे प्रति महीने लाखों का उनका नुकसान होने लगा। करोड़ों खर्च होने के बावजूद अभी तीनों पुलों से बड़े वाहनों के आवागमन नहीं होना एक बड़ा मुद्दा बन गया है। वाहन मालिकों की माने तो ऐसे पुल का निर्माण कराने से क्या फायदा है जब कोई काम का ही नहीं है। बता दें कि जनपद के शास्त्री सेतु से प्रतिदिन 15 से 20 हजार वाहन गुजरते है। इसमें लगभग 15 हजार बड़े वाहन शामिल है जो मध्य प्रदेश, दिल्ली, पंजाब, राजस्थान, बिहार, नेपाल, मुंबई आदि स्थानों से मीरजापुर होते हुए गंगा पुल के रास्ते वाराणसी, जौनपुर, गाजीपुर, नेपाल, बिहार, मऊ, बलिया आदि स्थानों पर माल पहुंचाने का काम करते है। गैर प्रांत और प्रदेश से आने वाले वाहनों से प्रदेश सरकार को प्रति महीने दस करोड़ रुपये का फायदा होता था। लेकिन पिछले तीन महीने से गंगा पुल से बड़े वाहनों के गुजरने पर पाबंदी लगाए जाने के बाद स्थित काफी दयनीय हो गई है। सरकार को प्रति महीने दस करोड़ रुपये के राजस्व का घाटा हो रहा है। वाहन मालिकों को भी बड़ा नुकसान उठाना पड़ रहा है। पुल से आवागमन पर रोक लगाए जाने के कारण वाहन का धंधा धीरे धीरे मंदा होता जा रहा है।
इनसेट
1972 में हुई थी नाव दुर्घटना
सन 1972 में गंगा पार करते समय चील्ह घाट के पास एक बड़ी नाव दुर्घटना हुई थी। जिसमें कई लोगों की जाने गई थी। इसकी जानकारी होने पर शासन ने गंगा नदी पर शास्त्री सेतु के नाम से पुल का निर्माण तीन करोड़ की लागत से 1976 में कराया था। ताकि लोग आसानी से इसपार व उसपार आ जा सके। पुल चालू होने पर लोगों ने काफी खुशी जाहिर की थी। उस समय पुल का निर्माण नौ और 18 टन के भार पार करने के आधार पर किया गया था। इसी बीच भटौली और चुनार में आम जनता ने पुल का निर्माण कराए जाने की मांग की। उनकी मांग पर वर्ष 2007 में पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह ने दोनों स्थानों पर पुल का निर्माण कराए जाने की घोषणा कर दी। दोनों पुलों को तीन तीन करोड़ से बनाया जाना था। बजट मिलने पर निर्माण कार्य भी शुरू हो गया। बाद में सरकार बदली तो बजट मिलना बंद हो गया। जिससे निर्माण कार्य ठप हो गया। कुछ दिनों बाद बजट मिलने पर फिर निर्माण कार्य शुरू हुआ और पुल वर्ष 2018 में बनकर तैयार हो गया। सबकुछ ठीक चल रहा था इसी बीच लोक निर्माण विभाग की ओर से बताया गया कि शास्त्री सेतु अपनी अवधि पूर्ण कर चुका है। इसपर से बड़े वाहन गुजरना खतरे से खाली नहीं है। इसकी खबर लगते ही अधिकारियों की नींद हराम हो गई। आनन फानन में शास्त्री सेतु से बड़े वाहनों के आवागमन पर पाबंदी लगा दी गई। जिससे व्यापार भी प्रभावित हो रहा है। मोटर वाहन का धंधा मंदा हो गया। मोटर यूनियन के लोगों में त्राहि त्राहि मची हुई है। यहीं हालत रहे तो वह दिन दूर नहीं जब इस जिले ट्रांसपोर्ट का धंधा पूरी तरह से बंद हो जाएगा। ट्रकों का व्यापार कर रहे लोग परेशानी होने पर अपने-अपने वाहन बेचने के कगार पर पहुंच गए है।
इनसेट
महज 74 लाख की दरकार पुल से ट्रकों के गुजरने के लिए
शास्त्री सेतु से ट्रकों का आवागमन चालू करने के लिए महज 74 लाख की दरकार है। विभाग द्वारा शासन को पत्र लिखकर पैसे की मांग की गई लेकिन शासन के अधिकार ने पुल को ठीक बताते हुए पैसा देने से इंकार कर दिया। जिससे पुल के मरम्मत पर अभी भी तलवार लटकी है। बजट मिलने के बाद भी मरम्मत होने की संभावना है। इनसेट
दोनों पुलों से नहीं गुजर सकते है बड़े वाहन
भटौली और चुनार पुल छोटा होने के कारण इनपर से बड़े वाहन नहीं भेजे जा सकते है। अगर काफी दिनों तक इन पुलों से वाहन गुजारे गए तो यह भी जर्जर हो सकते है। लेकिन चोरी छिपे वाहन आ जा रहे हैं। इनसेट
तीनों पुलों से बडे़ वाहनों के आने जाने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। शास्त्री सेतु से बड़े वाहन से आने जाने की अनुमति प्रदान की जा सकती है लेकिन मरम्मत के बाद।
रमेश राम अधिशासी अभियंता लोक निर्माण विभाग
इनसेट
पुलों से बड़े वाहन के आने जाने पर पाबंदी लगाए जाने के चलते वाहन मालिकों को प्रति माह लाखों का घाटा हो रहा है। समय रहते है लगाई गई पाबंदी नहीं हटाई गई तो लोगों को अपने अपने वाहन बेचने पड़ेंगे।
- राजू चौबे, अध्यक्ष ट्रकर एसोसिएशन मीरजापुर
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।