नमामि विंध्यवासिनी मीरजापुर: पर्यटन के पटल पर छा जाने को आतुर हैं विंध्य क्षेत्र के छिपे हुए सौंदर्य, वाराणसी से मात्र 60 KM दूर
पिकनिक स्पाट के तौर पर यहां परिवार के साथ आना एक सुखद अहसास है। गर्मी और लू के दौरान अप्रैल से जून तक का तीन माह का दौर थोड़ी चुनौती भरा हो सकता है लेकिन अन्य दिनों में लोगों की भारी भीड़ उमड़ती है। जिन नजारों के लिए उत्तराखंड हिमाचल और कश्मीर का रुख पर्यटक करते हैं वह आपके पड़ोस में ही उपलब्ध है।

जागरण संवाददाता, मीरजापुर। सबसे पुराने पर्वतीय क्षेत्रों में शामिल विंध्य पर्वत माला अपने आप में प्राचीनता और प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है। वाराणसी से महज साठ किलोमीटर की दूरी पर मौजूद मीरजापुर के मुख्यालय और आसपास प्राकृतिक संपदा से समृद्ध जिला आपको धार्मिक और आध्यात्मिक रूप से सहज आकर्षित करता है।
भोलेनाथ की नगरी काशी के समीप गंगा नदी के किनारे बसा मीरजापुर जनपद धार्मिक, आध्यात्मिक व पर्यटन स्थलों की त्रिवेणी है। विंध्याचल स्थित मां विंध्यवासिनी मंदिर के नवनिर्मित धाम ने विन्ध्य धाम की सूरत बदल दी है। धार्मिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक स्थलों की समृद्ध विरासत को समेटे मीरजापुर को प्रकृति ने भी प्राकृतिक पर्यटन स्थलों की कभी न खत्म होने वाली थाती सौंपी है।
पूरे वर्ष आप यहां आकर विन्ध्य धाम में दर्शन पूजन करने के साथ ही जनपद के विभिन्न देवी धामों, देवालयों में दर्शन पूजन का सौभाग्य प्राप्त कर सकते हैं। इसके साथ ही वर्ष पर्यंत यहां के पर्यटक स्थल भी आपको अपनी ओर आकर्षित करते हैं। बारिश के मौसम में यहां के कल-कल करते जल प्रपात बरबस ही आपको अपनी ओर आकर्षित करते हैं।
मीरजापुर शहर से सोनभद्र के रास्ते पर आपको विंध्य पर्वतमाला में कई प्राकृतिक सौंदर्य आपको आकर्षित करते नजर आएंगे। ऊंचे पहाड़ का रुख करेंगे तो विंढ़मफाल और सिद्धनाथ की दरी आपको सहज आकर्षित करते नजर आएंगे।
दोनों ही बरसात में खूबसूरत नजारे प्रस्तुत करते हैं तो साल के अन्य मौकों पर आपको पानी की धार कम ही सही लेकिन वर्ष भर पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए पर्याप्त है। दोनों ही वाटरफाल पर जाने के लिए मुख्य मार्ग से संपर्क जुड़ा हुआ है। वाहन पार्किंग के अलावा छोटी दुकानों पर चाय नाश्ते का प्रबंध भी है।
पिकनिक स्पाट के तौर पर यहां परिवार के साथ आना एक सुखद अहसास है। गर्मी और लू के दौरान अप्रैल से जून तक का तीन माह का दौर थोड़ी चुनौती भरा हो सकता है लेकिन अन्य दिनों में लोगों की भारी भीड़ उमड़ती है।
जिन नजारों के लिए उत्तराखंड, हिमाचल और कश्मीर का रुख पर्यटक करते हैं वह आपके पड़ोस में ही उपलब्ध है। जिले का 80 फीसद से अधिक हिस्सा आज भी पहाड़ों, जंगलों और वन्य जीवों से भरा हुआ है जो पर्यटकों के लिए शानदार नजारे भी प्रस्तुत करता है।
प्राकृतिक संपदा से समृद्ध
यहां के पहाड़ और वन जिले की प्राकृतिक संपदा और धरोहर को कहीं अधिक समृद्ध बनाती है। वन्य जीवों में काला हिरन, भालू, लोमड़ी, लकड़बग्घा और बंदर ही नहीं सरीसृपों और जड़ी बूटियों का खजाना भी है। ग्रामीण पर्यटन की संभावनाओं के लिहाज से प्रयासों में कमी नजर आती है अन्यथा कोई वजह नहीं कि यहां आम जन को प्रेरित कर विंध्य क्षेत्र को समृद्ध न किया जा सके। विलेज टूरिज्म की कल्पना सिर्फ आश्रमों तक ही सीमित है, यह गांवों तक जाए तो आर्थिकी और बेहतर हो सकती है। मध्य प्रदेश से सटे क्षेत्रों से लेकर चुनार और सोनभद्र आदि क्षेत्र में ग्रामीण पर्यटन की असीम संभावनाएं हैं।
लखनिया दरी जलप्रपात
चुनार की सीमा से आठ किलोमीटर दूर दक्षिण दिशा पर स्थित लखनिया दरी का विहंगम जल प्रपात है। बारिश के मौसम में काफी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। जल प्रपात से कल-कल कर गिरते हुए झरने सैलानियों को काफी आकर्षित करती है। मीरजापुर से इसकी दूरी करीब 68 किमी है।
चूनादरी जल प्रपात
अहरौरा नगर से करीब 10 किलोमीटर दूर इस विहंगम दृश्य वाले प्रपात पर डेढ़ सौ फीट की ऊंचाई से गिरते हुए झरने को देखने का आनंद उठाने के लिए काफी संख्या में सैलानियों की भीड़ उमड़ती है। तीन ओर से पहाड़ियों से घिरा हुआ विहंगम जल प्रपात पर्यटन स्थल के रुप में विकसित है। मीरजापुर से इसकी दूरी करीब 70 किमी है।
सिद्धनाथ की दरी
चुनार क्षेत्र में प्राकृतिक पर्यटन के अनूठे वरदानों में से एक सिद्धनाथ की दरी का जल प्रपात माना जाता है। यहां बारिश के दिनों में सौ मीटर की ऊंचाई से कल-कल गिरते झरने का पानी यहां के प्राकृतिक सौंदर्य को चार चांद लगा देता है। ये मीरजापुर जनपद मुख्यालय से वाया मड़िहान करीब 45 किलोमीटर दूर और चुनार-राजगढ़ मार्ग पर चुनार से करीब 23 किलोमीटर दूर स्थित है। बरसात के दिनों में यहां प्रतिदिन सैलानी आकर झरनों में नहाने का आनंद भी लेते हैं।
आकर्षित करता है सिरसी जल प्रपात
सिरसी बांध के बगल में सिरसी जल प्रपात स्थित है। जहा बरसात में सुदूर से अंतर्जनपदीय पर्यटकों का रेला लगारहता है। 100 फीट ऊंचाई से गिरते जल प्रपात की छटा देखते बनती है। पास में हरितिमा से भरे जंगल की छटा और पक्षियों का कलरव मनमोहक लगता है। जनपद मुख्यालय से इसकी दूरी 50 किलोमीटर है।
प्राचीन दुर्गा खोह मंदिर चुनार
विंध्य पर्वत श्रृंखला की हरितिमा के बीच चुनार-राजगढ़ मार्ग पर मात्र दो किमी दूर स्थित प्राचीन मां दुर्गा खोह मंदिर का ऐतिहासिक, पौराणिक और धार्मिक महत्व है। काशी खंड में उल्लिखित हजारों वर्ष पुराने इस मंदिर मेंपहाड़ी गुफा में मां दुर्गा का विग्रह विराजमान हैं। इनके दर्शन-पूजन से भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।मीरजापुर मुख्यालय से इसकी दूरी करीब 37 किमी है। वाराणसी से वाया अदलपुरा यहां की दूरी 35 किमी है।
चुनार दुर्ग
उज्जैन के महाराजा विक्रमादित्य द्वारा 56 ईसा पूर्व बनवाया गया ये विशाल-अभेद्य दुर्ग भारतवर्ष के प्राचीनतम दुर्गोंमें शुमार है। किंवदंतियों के अनुसार विष्णु के दशावतारों में से पांचवे अवतार वामन ने राजा बलि का दंभ तोड़नेके लिए यहीं अपना पहला पग धरा था, इसीलिए चुनार को चरणाद्रि भी कहा जाता है। मीरजापुर मुख्यालय से मात्र 35 किमी दूर स्थित ये दुर्ग वर्ष पर्यंत देशी विदेशी पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है। वाराणसी से वाया अदलपुरा यहां की दूरी 30 किमी है।
परमहंस आश्रम सक्तेशगढ़
भगवान श्रीकृष्ण के श्रीमुख से निकली गीता को सरल भाष्य में प्रतिपादित कर यथार्थ गीता के रूप में उसका लेखन करने वाले स्वामी अड़गड़ानंद महाराज का परमहंस आश्रम सक्तेशगढ़ वर्तमान में आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्ति हेतु एक शक्ति केंद्र के रूप में स्थापित हो चुका है। उनके लाखों अनुयायी अपने गुरु की चरण रज लेने और उनके मुखारबिंदु से निकली ज्ञानवाणी का श्रवण करने के लिए प्रति वर्ष यहां आते हैं। मीरजापुर मुख्यालय से वाया चुनार इसकी दूरी करीब 55 किलोमीटर और वाया मड़िहान राजगढ़ करीब 60 किमी है।
गुंसाई श्री विट्ठलनाथ की प्राकट्य स्थली
चुनार के आश्चर्य कूप स्थित श्रीबल्लभाचार्य चरण व श्री गुसाई विट्ठलनाथजी की बैठक देशभर के बल्लभ संप्रदाय के अनुयायियों व वैष्णवजनों की तीर्थस्थली के रूप में प्रसिद्ध है। किंवदंतियों के अनुसार जगदगुरु महाप्रभु श्रीबल्लभाचार्य तीसरी पृथ्वी परिक्रमा कर विक्रम संवत् 1572 में यहां पधारे थे। मीरजापुर मुख्यालय से यहां की दूरी करीब 40 किलोमीटर है। यहां पर मंदिर प्रशासन द्वारा संचालित 46 कमरों की धर्मशाला भी है। जिसमें वातानुकूलित और साधारण कमरे उचित किराए पर उपलब्ध हो जाते हैं।
शीतला मंदिर अदलपुरा
जनपद मुख्यालय से 45 किमी व वाराणसी मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर पर चुनार घाट वाराणसी मार्ग पर पड़ने वाले अदलपुरा के पूरब में गंगा तट पर स्थित आराजीलाइन सुल्तानपुर में बड़ी शीतला माता का भव्य मंदिर है। पूरे वर्ष यहां दर्शनार्थियों का आना होता है। शारदीय व चैत्र नवरात्रों में यहां मेला लगता है। जिसमें लाखों श्रद्धालु आते हैं।
भंडारी देवी मंदिर अहरौरा
अहरौरा में विंध्य पर्वत शिखर पर स्थित मां भंडारी देवी का अति प्राचीन मंदिर है। नवरात्र में मंदिर पर पूजा को लेकर विशेष तैयारियां की जाती है। श्रावण मास के प्रत्येक रविवार व मंगलवार को श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ पड़ता है। माता के दरबार में जो भक्त पूरी श्रद्धा और पूरे विश्वास के साथ आते हैं। मां विंध्यवासिनी धाम से मंदिर की दूरी 60 किलोमीटर व वाराणसी से 40 किलोमीटर दूर है।
सम्राट अशोक का शिलालेख
सम्राट अशोक का शिलालेख खासडीह में स्थित मां भंडारी देवी मंदिर के पास ढाई हजार वर्ष पूर्व का मौजूद है। जो बौद्ध धर्म अनुयायियों के लिए आस्था का केंद्र लंबे समय से बना हुआ हैं। मीरजापुर से इसकी दूरी 60 किमी है।
दस्तखती साहेब गुरुद्वारा
अहरौरा नगर के मध्य स्थित इस प्राचीन गुरुद्वारे में गुरुतेग बहादुर साहेब का दस्तखत किया हुआ गुरुग्रंथ साहिब मौजूद हैं। जो सिख धर्मावलंबियों के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है। इसका दर्शन करने के लिए देश भर से सिख समुदाय के लोग यहां आते हैं। मीरजापुर से इसकी दूरी करीब 60 किमी है। जिले में सिख समुदाय के काफी लोग रहते हैं और परिवार में आने वाले लोगों को सिख धर्म से जुड़े उपासना स्थलों पर ले जाना नहीं भूलते।
गुरुद्वारा श्री गुरुतेग बहादुर साहिब
गुरुद्वारा गुरुतेग बहादुर सिंह नगर के पट्टी खुर्द में स्थित है। इस गुरुद्वारे में नवें गुरु श्री गुरुतेग बहादुर सिंह जी आए हुए थे। जिनके नाम पर गुरुद्वारे का नामकरण किया गया है। यहां पर मत्था टेकने के लिए काफी दूर दराज से श्रद्धालुओं का आवागमन लगा रहता हैं। साल भर विविध आयोजनों में शामिल होने के लिए दूर दराज से भी लोग यहां आते हैं। मीरजापुर से इसकी दूरी करीब 60 किमी है।
काली माता मंदिर जमालपुर
जनपद के सुदूर पूरब स्थित जमालपुर बाजार से पांच सौ मीटर जमालपुर गांव में काली माता का प्राचीन मंदिर है। मंदिर करीब 100 वर्ष पुराना है। मंदिर परिसर में वर्ष 2000ई. से प्रतिवर्ष शारदीय नवरात्रि में नौ दिवसीय हरिकीर्तन का आयोजन किया जाता है। हरिकीर्तन के समापन पर भंडारे का आयोजन किया जाता है। जनपद मुख्यालय से यहां की दूरी करीब दूरी 65 किलोमीटर है।
शीतला माता मंदिर खडेहरा
जमालपुर बाजार से नौ किलोमीटर दक्षिण पूर्व दिशा में खड़ेहरा गांव के तालाब के बगल में माता शीतला का मंदिर स्थित है। मंदिर का निर्माण माता की भक्त मनबासा देवी ने 17 अप्रैल 1967 को कराया था। वैशाख मास के शुक्ल सप्तमी तिथि पर परिसर में देवी जागरण का आयोजन किया जाता है। जनपद मुख्यालय से मंदिर की दूरी करीब 70 किलोमीटर है।
डोहरी गांव स्थित महाकाली माता मंदिर
जमालपुर बाजार से आठ किलोमीटर पूर्व दिशा में जिवनाथपुर -कंचनपुर स्टेट हाईवे पर डोहरी गांव के भोंका नाला के बगल में शक्तिपीठ काली माता का मंदिर स्थित है। ग्रामीणों के अनुसार मंदिर का निर्माण मुगल काल में कराया गया है। मां काली के साथ ही गणेश, सूर्यदेव, माता अन्नपूर्णा, विष्णु एवं मां दुर्गा की भी मूर्तियां विद्यमान है। चैत्र माह के नवरात्र में मेले का आयोजन किया जाता है। अष्टमी तिथी को कुश्ती दंगल का आयोजन होता है। जनपद मुख्यालय से मंदिर की दूरी करीब 73 किलोमीटर है।
शेरवा पहाड़ स्थित राम सागर धाम
जनपद के सुदूर उत्तर पूर्व दिशा में विंध्य पर्वत श्रृंखला के शेरवा पहाड़ पर प्राचीन रामसागर धाम स्थित है। रामसागर धाम मीरजापुर एवं चंदौली जनपद की सीमा पर स्थित है। दो मार्च 1979 को स्वामी धरणीधर खड़ेश्वरी महाराज की प्रेरणा से दक्षिणमुखी हनुमान मंदिर का निर्माण कराया गया। मंदिर परिसर में नौ ग्रह भी विराजमान है। रामसागर धाम पर अदृश्य जलस्रोत मौजूद हैं जिसमें बारहों माह पानी रहता है। सावन माह में धाम में कजली के अवसर पर कजरी महोत्सव का भी आयोजन किया जाता है। जनपद मुख्यालय से धाम की दूरी करीब 75 किलोमीटर है।
पुरानी काशी भोगांव
विकास खंड कोन स्थित भोगांव में उत्तर वाहिनी गंगा तट पर भगवान शिव शंकर का विशाल शिवलिंग है। जो पुरानी काशी के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि काशी के पूर्व भगवान शिव शंकर यहीं पर रहा करते थे। इसलिए इसे पुरानी काशी के नाम से जाना जाता है। मंदिर के अंदर एक विशाल गुफा है जिसका सीधा संपर्क उत्तर वाहिनी गंगा में है। प्राचीन काल में इसी गुफा से होकर संत एवं महात्मा गंगा स्नान किया करते थे। प्रत्येक वर्ष कार्तिक पूर्णिमा के दिन यहां लाखों की संख्या में गंगा स्नान किया करते हैं। मीरजापुर से इसकी दूरी आठ किमी है
मां मवैयां देवी जी धाम सीखड़
सीखड़ विकास खंड के मवैयां में गंगा किनारे मां मवैया धाम स्थित है। मान्यता है कि यहां के रहने वाले मां विंध्यवासिनी के भक्त प्रतिदिन मां का दर्शन करने विंध्याचल जाया करते थे। जब वह काफी वृद्ध हो गए तो मां की आराधना करते हुए क्षमा याचना की और धाम तक पहुंचने में असमर्थता व्यक्त की। तब मां ने स्वयं यहां प्रकट होने का उनको स्वप्न दिया और फिर यहां भव्य मंदिर का निर्माण कराया गया। मवैयां देवी भी मां विंध्यवासिनी की ही स्वरूपा हैं। मीरजापुर से यहां की दूरी वाया चुनार करीब 45 किलोमीटर है।
बावन जी मंदिर, सीखड़
सीखड़ गांव में गंगा तट पर स्थित भगवान विष्णु का बहुत ही बड़ा मंदिर है। यहां साधु संतों को रहने के लिए आश्रम भी बनाए गए हैं। मान्यता है कि जो साधु संत प्रयागराज से गंगा के रास्ते वाराणसी तक परिक्रमा करते हैं वह यहां जरूर आते हैं। बावन अंगुल में बनी बावन जी की यहां बनी प्रतिमा बहुत ही अलौकिक है। यहां मंदिर प्रांगण का बहुत ही अच्छा निर्माण कार्य कराया गया है। मीरजापुर जनपद मुख्यालय से यहां की दूरी करीब 50 किमी है।
शिवलोक महादेव मंदिर, पड़री
राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित पड़री में स्थित शिवलोक महादेव मंदिर क्षेत्र के लोगों का सबसे बड़ा आस्था का केंद्र है। यहां पर महीने में एक बार सबसे बड़ी शिव चर्चा होती है। इसके साथ ही सावन के महीने में यहां पर भक्तों का जमावड़ा रहता है। जनपद मुख्यालय से यहां की दूरी 20 किमी है।
चंडिका धाम पड़री
पड़री से सात किलोमीटर उत्तर चंडिका धाम स्थित है। यहां पर मां चंडिका देवी का विशाल मंदिर व भव्य मूर्ति स्थापित है। यहां के लोगों का मानना है कि मां विंध्यवासिनी की छोटी बहन मां चंडिका के रूप में यहां विराजमान है। वासंतिक व शारदीय नवरात्र में यहां पर आस्थावानों की भीड़ उमड़ती है। जनपद मुख्यालय से यहां की दूरी करीब 27 किमी है।
शीतला मंदिर गड़बड़ाधाम
हलिया विकास खंड के गड़बड़ा गोकुल गांव में सेवटी नदी के तट पर स्थित सुप्रसिद्ध शीतला माता मंदिर गड़बड़ा धाम में प्रति वर्ष अगहन माह में विशाल मेला लगता है। कैमूर पर्वत श्रृंखला के मनोरम सानिध्य में स्थित शीतला धाम की महिमा, प्राचीन काल से भक्तों के बीच बनी हुई है। शीतला माता के महात्म्य एवं लोक प्रसिद्धि की चर्चा दूर दूर तक फैली हुई है। करीब दो सौ वर्ष पहले एक नीम के पेड़ की खोखली जड़ में मां शीतला की प्रस्तर मूर्ति प्रकट हुईं थी। यहां दोनों नवरात्रों में लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं। मीरजापुर मुख्यालय से यहां की दूरी 75 किमी है।
कोटार नाथ धाम
हलिया विकास खंड में अदवा नदी के स्थित कोटार नाथ धाम का भक्तों के लिए अनोखा चमत्कार है। यहां अपने आप शिवलिंग का प्राकट्य हुआ है। किंवदंतियों के अनुसार 400 वर्ष पूर्व बैलों की सवारी के साथ व्यापारियों के एक झुंड ने अदवा नदी के मध्य में पड़ाव किया था। इसी बीच नदी में जल प्रवाह की प्रचंड धारा आती दिखाई देने पर व्यापारियों ने भोलेनाथ का ध्यान किया और नदी दो धाराओं में विभक्त हो गई। मीरजापुर से यहां की दूरी 45 किमी है।
श्री परमहंस आश्रम जगतानन्द आश्रम कछवां
विकास खंड मझवा स्थित श्री परमहंस जगतानंद आश्रम जिला मुख्यालय से बरैनी भटौली पुल से बाए लगभग दो किलोमीटर पश्चिम गंगा नदी किनारे स्थित है। परमहंस स्वामी अड़गड़ानंदजी महाराज इसी आश्रम में पूर्व में भजन और पूजा अर्चना करते थे। यहां वर्ष पर्यंत उनके अनुयायियों का आना लगा रहता है। जनपद मुख्यालय से यहां की दूरी लगभग 21 किलोमीटर है।
बाबा सारनाथ महादेव मंदिर गोधना मझवा
विकास खंड मझवा स्थित ग्राम पंचायत गोधना में बाबा सारनाथ महादेव का विशाल एवं प्राचीन शिव मंदिर सदियों पूर्व स्थापित किया गया था। आस्था व भक्ति का प्रमुख केंद्र बन चुका यह मंदिर पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित है और क्षेत्रीय श्रद्धालुओं के अलावा आसपास के जनपदों से भी भक्तों का आगमन वर्ष पर्यंत होता है। मीरजापुर से यहां की दूरी करीब 25 किमी है।
प्राचीन गणेश मंदिर पटेहरा
कोटवा सिरसी रोड पर बनकी मोड़ से रामपुर रिक्शा मार्ग पर स्थित प्राचीन गणेश मंदिर की क्षेत्र में अत्याधिक मान्यता है। करीब छह दशक पहले प्रचंड सूखे में गड्ढे का पानी सूखा तो गणेश की विशाल प्रतिमा दिखी जिसे ऊपर उठाने के लिए 18 फिट गहरा खोदा गया किंतु जोड़ नहीं दिखा। उसी दशा में विशाल मंदिर की स्थापना कर श्रद्धालु पूजन अर्चन कर मनोवांछित लाभ पाते हैं। महाशिवरात्रि पर तीन दिवसीय मेला, लोकगीत गायन के साथ दंगल होता है। जनपद मुख्यालय से इसकी दूरी करीब 40 किमी है।
पटेहरा हरदी कला के हनुमान जी
पटेहरा के गढ़वा ग्राम पंचायत में स्थित प्राचीन हनुमान सिरसी बांध की खुदाई में हरदी कला में देखे गए थे। गांव के संपन्न परिवार द्वारा गढ़वा में विशाल मंदिर का निर्माण कर हनुमान जी को किसी तरह नए मंदिर में स्थापित किया तो हनुमान जी के कोप भाजन से सारा परिवार परेशान हुआ। बाद में अपने पुराने स्थान पर हनुमान जी प्रतिष्ठापित हुए। जनपद से 50 किलोमीटर दूर हरदी कला गांव जाने के लिए रजौहा चौराहा से गढ़वा हनुमान मंदिर 15 किलोमीटर के बाद तीन किलोमीटर दुर्गम मार्ग की यात्रा कर यहां पहुंचा जा सकता है।
दीपनगर में मां राज राजेश्वरी मंदिर
1975 में बलिया निवासा डा. रामदेव बंगाली द्वारा मंदिर का निर्माण कर राज राजेश्वरी की स्थापना की गई थी। जहां भक्त दर्शन पूजन कर निहाल होते है। नवरात्रि के सप्तमी की शाम खिचड़ी का प्रसाद पाने के लिए भीड़ भी आती है। जनपद से 30 किलोमीटर दूर कोटवा सिरसी रोड पर दीपनगर बाजार पहुंचा जा सकता है
मझारी हनुमान मंदिर
औरंगजेब से भयाक्रांत जन मानस भी प्राचीन हनुमान मंदिर मझारी की कृपा से सुरक्षित था अक्रांता के सैनिक मंदिर की मूर्ति तोड़ने को आए किंतु परेशान होकर बैरंग वापस हुए थे। जनपद से 33 किलोमीटर दूर दीपनगर से लालगंज कलवारी रोड पर सड़क के बगल मझारी में ये प्राचीन हनुमान मंदिर है। जहा बराबर दर्शन पूजन भजन कीर्तन रामायण कर भक्त निहाल होते है।
मां शीतला धाम विजयपुर
गैपुरा लालगंज मार्ग पर विजयपुर गाव मे स्थित मां शीतला धाम में प्रत्येक वर्ष आषाढ़ और सावन के महीने मे दो माह तक मेला लगता है। नव विवाहित जोडे सफल दांपत्य जीवन के लिए रोट और लपसी चढाते है। साथ ही मुंडन, उपनयन संस्कार, बीमारी से राहत के लिए भी श्रद्धालु पूजन-अर्चन करते है। जनपद मुख्यालय से यहां की दूरी 25 किमी है।
दुलारो धाम डेरवा
गैपुरा क्षेत्र के पियरी भीट गाव के डेरवा नामक गांव मे छोटी माता दुलारो का धाम है। इन्हें छोटी माता के नाम से भी जाना जाता है। इसलिए माता शीतला के पूजन से पूर्व छोटी माता मां दुलारो की पूजा की जाती है। मीरजापुर से 23 किमी दूर गैपुरा लालगंज मार्ग से डेरवा संपर्क मार्ग पर स्थित है।
परमहंस आश्रम विजयपुर
गैपुरा लालगंज मार्ग पर ब्लाक मुख्यालय छानबे से दो किमी पूर्व पहाडी पर स्थित इस स्थान को झोरिया महादेव और परमहंस आश्रम के नाम से जाना जाता है। 28 दिसंबर 1981 स्वामी विमलानंदजी महराज के ब्रहमलीन हुए थे। तभी से प्रति वर्ष 28 दिसंबर को विशाल भंडारा और स्वामी अडगडानंदजी महराज का प्रवचन अयोजित होता है। जिसमें लाखो की संख्या मे भक्तगण आते है। जिला मुख्यालय से ये 25 किमी दूर है।
राजाबाबा आश्रम विजयपुर
राजा बाबा आश्रम विजयपुर-गैपुरा-लालगंज मार्ग पर पहाडी पर स्थित है.। इस आश्रम का निर्माण नेपाल के मोरंग राज्य के राजकुमार राजा बाबा ने कराया था। मान्यता है कि आश्रम मे स्थित बावली के पानी से स्नान करने से राहत मिलती है। मीरजापुर से इसकी दूरी 28 किमी है।
कंतित स्टेट विजयपुर
गैपुरा से विजयपुर संपर्क मार्ग पर विजयपुर गाव में गहरवार वंश के आखिरी राजा स्व. श्रीनिवास प्रसाद सिंह का लगभग 500 साल पुराना किला विजयपुर गाव में स्थित है। किले के चारों दिशा मे अलग अलग देवी देवताओं के नक्काशीदार मंदिर स्थित है। आस पास के लोग प्रायः किला को देखने आते है। जनपद मुख्यालय से ये 28 किमी दूर है।
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