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    कोलकाता की स्वदेशी कला की आभा से आलोकित हो रही चुनार की मूर्ति मंडी

    By Gurpreet singh shammiEdited By: Abhishek sharma
    Updated: Wed, 15 Oct 2025 03:15 PM (IST)

    दीपावली पर चुनार का बाजार कोलकाता की मिट्टी से बनी गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियों से जगमगा रहा है। बंगाल के कारीगरों द्वारा बनाई गई ये मूर्तियां व्यापारियों और ग्राहकों को खूब पसंद आ रही हैं। पिछले कुछ वर्षों में इन मिट्टी की मूर्तियों की मांग में लगातार वृद्धि हुई है। ये मूर्तियां पर्यावरण के अनुकूल भी हैं, जिससे लोग इन्हें खूब पसंद कर रहे हैं।

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    पिछले पांच वर्षों में इन मिट्टी की मूर्तियों की मांग चुनार मूर्ति मंडी में लगातार बढ़ती जा रही है।

    जागरण संवाददाता चुनार (मीरजापुर)। दीपावली पर इस बार चुनार का बाजार स्वदेशी सृजन की नई चमक से जगमगा उठा है। स्वदेशी कला की आभा बिखेरती कोलकाता की मिट्टी (टेराकोटा) से बनी गणेश-लक्ष्मी मूर्तियां यहां की पारंपरिक प्लास्टर ऑफ पेरिस मूर्तियों के साथ व्यापारियों को काफी पसंद आ रही हैं।

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    बंगाल के कारीगरों की सूक्ष्म कलाकारी और भारतीय संस्कृति से सुसज्ज्ति इन मूर्तियों ने न केवल बाजार की रौनक बढ़ा दी है, बल्कि स्वदेशी शिल्प की प्रतिष्ठा को भी नया आयाम दिया है। यही वजह है कि पिछले पांच वर्षों में इन मिट्टी की मूर्तियों की मांग चुनार मूर्ति मंडी में लगातार बढ़ती जा रही है।

    बंगाल की मिट्टी से सजीव हुई स्वदेशी कला की गरिमा
    बंगाल की मिट्टी से गढ़ी इन फैंसी मूर्तियों में जहां परंपरागत सौंदर्य झलकता है, वहीं स्वदेशी कला की गरिमा भी सजीव हो उठती है। बीते कुछ वर्षों में मिट्टी की इन मूर्तियों की मांग में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। चुनार में बनने वाली मूर्तियों की तुलना में बंगाल की ये मूर्तियां अपेक्षाकृत महंगी हैं, बावजूद इसके चुनार की मूर्ति मंडी में इनकी हिस्सेदारी आठ से दस फीसद तक पहुंच चुकी है। बाजार में सामन्यतः इन मूर्तियों की कीमत 60 रुपये से लेकर 1500 रुपये प्रति जोड़ी तक है। इसके साथ ही दो हजार से ऊपर के भी कुछ विकल्प ग्राहकों के लिए उपलब्ध हैं।

    चुनार के व्यापारी कोलकाता से मंगवा कर करते हैं थोक कारोबार
    चुनार के मूर्ति निर्माता और व्यापारी इन्हें कोलकाता से मंगवाकर यहां थोक में बेचते हैं। इसके बाद प्रदेश के विभिन्न जिलों के अलावा मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और सीमावर्ती बिहार से आए व्यापारी इन्हें बड़े पैमाने पर खरीदते हैं। बाहर से आने वाले ग्राहकों को अब चुनार की मिट्टी से बनी मूर्तियों के साथ कोलकाता निर्मित प्रतिमाएं भी एक ही मंडी में आसानी से मिल जाती हैं। यही वजह है कि इन स्वदेशी मूर्तियों का बाजार लगातार विस्तृत होता जा रहा है।

    गंगा की मिट्टी से बनी होती हैं ये मूर्तियां
    चुनार मूर्ति बाजार की दर्जनों दुकानों पर थोक मिलने वाली ये कलात्मक मूर्तियां पूरी तरह से मिट्टी से निर्मित और पकाई गई होती है। मान्यता है कि मिट्टी से बनी प्रतिमा पूरी तरह से शुद्ध होती है। इसके कारण भी व्यापारियों द्वारा दुकानदारी के मेल के लिए इन्हें पसंद किया जा रहा है। पाटरी व्यवसायी अवधेश वर्मा का कहना है कि जैसे जैसे इन मूर्तियों की साज सज्जा और श्रृंगार बढ़ता जाता है वैसे वैसे इनके दाम भी बढ़ते हैं। बंगाली कलाकारी का हुनर इनमें स्पष्ट नजर आता है।

    मूर्ति व्यापारी जगदीश गुप्ता, लक्ष्मीकांत गुप्ता ने बताया कि कोलकाता से आईं टेराकोटा मिट्टी से निर्मित गणेश-लक्ष्मी की चमकीली मूर्तियां ग्राहकों को खूब लुभा रही हैं। वहीं मूर्ति व क्राकरी व्यवसाई रामकुमार पंडित, अविनाश कुमार का कहना है कि ये मूर्तियां काफी टिकाऊ होती हैं और पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं पहुंचाती। मूर्ति व्यवसायी अभिषेक प्रजापति का कहना है कि टेराकोटा की मूर्ति खूबसूरती के मामले में सब पर भारी हैं। कोलकाता की मूर्तियां बेहद कलात्मक हैं जो गंगा की मिट्टी से तैयार होती हैं। रंगीन मूर्तियां की खूबसूरती को उनके वस्त्र और छत्र और भी ज्यादा बढ़ा देते हैं।