आस्था और बेजोड़-शिल्प का अद्भुत संगम सरधना का ऐतिहासिक चर्च
मेरठ मुख्यालय के बेगमपुल से करीब 22 किलोमीटर दूर सरधना में बेगम समरू द्वारा बनाया ऐतिहासिक चर्च आस्था और कलात्मक का बेजोड़ नमूना है। यह वर्षो पुराने इतिहास को समेटे हुए है।
मेरठ, जेएनएन। मेरठ मुख्यालय के बेगमपुल से करीब 22 किलोमीटर दूर सरधना में बेगम समरू द्वारा बनाया ऐतिहासिक चर्च आस्था और कलात्मक का बेजोड़ नमूना है। यह वर्षो पुराने इतिहास को समेटे हुए है। इसकी भव्यता देखते ही बनती है। दूरदराज से लोग माता मरियम की चमत्कारिक तस्वीर के दर्शन व प्रार्थना के लिए आते है।
मान्यता है कि चर्च में माता मरियम श्रद्धालुओं पर कृपा बरसाती हैं। माता मरियम की चमत्कारिक तस्वीर ने ही सरधना चर्च को बसिलिका का खिताब दिलाया था। इसी के चलते सरधना का नाम भी अंतरराष्ट्रीय फलक पर चमकता है। माता मरियम तस्वीर के समक्ष चर्च में विशेष प्रार्थना और विशाल मेले की परंपरा शुरू की गई थी। बताया जाता है कि करीब 61 वर्ष पूर्व मेरठ की नई डायस के बिशप इटली से आए और माता मरियम की चमत्कारी तस्वीर को एक बड़े जुलूस के रूप में नवंबर 1957 को सरधना लेकर पहुंचे थे। उस समय श्रद्धालुओं ने माता मरियम की तस्वीर के समक्ष मन्नतें मांगीं थीं, जो पूरी हो गई। तभी से चर्च की दूर-दूर तक ख्याति है।
11 वर्ष में चर्च बनकर हुआ था तैयार
यह चर्च करीब 11 वर्ष में बनकर तैयार हुआ था। इसका निर्माण 1809 में शुरू हुआ था। गिरिजाघर के महत्वपूर्ण दरवाजे पर इमारत बनने का समय 1822 अंकित है। कुछ अभिलेखों में निर्माण का वर्ष 1820 भी बताया गया है। चर्च के निर्माण में कई हजार लोग लगे थे। उस समय करीब चार लाख रुपये निर्माण में लगे थे।
मेजर एंथोली रेगीलीनी को था वास्तुकला का ज्ञान
बेगम समरू ने चर्च के निर्माण का कार्य सैन्य अफसर मेजर एंथोली रेगीलीनी को दिया गया था। बताया जाता है कि उन्हें वास्तुकला का ज्ञान था। जहां पर चर्च में प्रार्थना होती है। उसे अल्तार कहा जाता है। अल्तार के निर्माण के लिए संगमरमर जयपुर से मंगवाया गया था। इसके अलावा कौरनेलियन, मैलकाइट और जास्पर आदि पत्थर जड़े हैं।
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