मेरठ में नृत्यांगना विदुषी माधवी मुद्गल बोलीं-जिस उत्तर भारत की शास्त्रीय कला, वहीं कम दिखता है रुझान
Vidushi Madhavi Mudgal दयावती मोदी अकादमी में स्पिक मैके कार्यक्रम में आई नृत्यांगना ने दैनिक जागरण से की विशेष बातचीत। आज के जमाने में यह बहुत जरूरी ...और पढ़ें

अमित तिवारी, मेरठ। Vidushi Madhavi Mudgal ओडिसी नृत्यांगना पद्मश्री विदुषी माधवी मुद्गल का कहना है कि आज के जमाने में यह बहुत जरूरी है कि हम अपने बच्चों को भारतीय संस्कृत से परिचित कराएं। स्पिक मैके का उद्देश्य भी यही है। जिन घरों में भारतीय शास्त्रीय संगीत का माहौल होता है वहां के बच्चे बचपन से इनसे परिचित होते हैं, लेकिन जहां ऐसा माहौल नहीं होता।
जरूरी नहीं सभी कलाकार बने
वहां पल रही नई पीढ़ी तक भारतीय शास्त्रीय गीत और संगीत को पहुंचाने की कोशिश स्पिक मैके के कार्यक्रमों के जरिए की जा रही है। जरूरी नहीं कि सभी कलाकार बने लेकिन अपनी कला का ज्ञान होना चाहिए। शास्त्रीय कला सतही नहीं है, यह हमें आत्मीक ज्ञान प्रदान करती है। हमारे प्रयास से यदि सौ में से चार भी शास्त्रीय कला को अपनाते हैं तो यह हमारी बड़ी उपलब्धि होगी।
सामाजिक चेतना की है जरूरत
स्पीक मैके के कार्यक्रमों के जरिए युवाओं में शास्त्रीय संगीत के प्रति रुझान बढ़ा है। उन्होंने बताया कि विदेशों में भी कार्यक्रम करने जाते हैं तो वहां मिलने वालों युवा बताते हैं कि उन्होंने स्पिक मैके के विभिन्न कार्यक्रमों में नृत्य देखा है। नृत्यांगना माधवी मुद्गल ने कहा कि नई पीढ़ी को अधिक से अधिक शास्त्रीय कलाओं से जोड़ने में सामाजिक चेतना ही सबसे ज्यादा सहायक होगी।
सफलता और अधिक मिलेगी
स्कूलों में बच्चों को भी संगीत सिखाया जा रहा है। संस्थाएं अपना काम कर रही हैं लेकिन जब समाज इसे आगे बढ़ाने को कदम बढ़ाएगा तो सफलता और अधिक मिलेगी। नृत्यांगना ने बताया की बंगाल या चेन्नई जैसी जगहों पर हर परिवार में बच्चों को कोई एक शास्त्रीय कला सीखने के लिए प्रेरित करते हैं लेकिन जहां की ल कला है, उस उत्तर भारत में यह कम दिखती है।
यहां पर रुझान कम दिखता है
इसके कई कारण हो सकते हैं, जिनमें से विदेशी आक्रांताओं के हमले भी प्रमुख है। उस वजह से उत्तर प्रदेश, बिहार और आसपास की जगहों पर रुझान कम दिखता है जबकि ओडिशा, बंगाल असम में अधिक दिखता है। मुगलों ने भी हमले किए लेकिन उनका कुछ योगदान भी इस कला में दिखता है। इस क्षेत्र में शास्त्रीय कला के प्रति रुझान और बढ़ाने की जरूरत है जिससे लोग अपने बच्चों को शास्त्रीय कलाओं से परिचित कराएं और सिखाएं भी।
पुरानी फिल्मों में दिखती थी शास्त्रीय कला
नृत्यांगना विदुषी माधवी मुद्गल ने कहा कि पुराने भारतीय फिल्म निर्माता ज्यादातर शास्त्रीय संगीत से जुड़े रहते थे और इसकी झलक उनकी फिल्मों में भी दिखती थी। धीरे-धीरे पश्चिमी संगीत ने अपनी जगह बनाई। यह भी सच है कि शास्त्रीय संगीत और पापुलर कल्चर अक्सर समानांतर ही चलते हैं। जिस प्रकार लता मंगेशकर लोगों के बीच पॉपुलर थी उतने भीमसेन जोशी जी नहीं थे। उनको पसंद करने वाले संगीत प्रेमियों का स्तर अलग हुआ करता था।
विदेशों में बढ़ी है लोकप्रियता
विदुषी माधवी मुद्गल ने कहा किसान कि 70 के दशक में पंडित रविशंकर, जाकिर हुसैन जैसे कलाकारों ने विदेशों में भारतीय शास्त्रीय संगीत को प्रचारित प्रसारित कर लोगों तक पहुंचाया। उस दौरान वहां के संगीत प्रेमी कुछ अलग संगीत की तलाश में थे और उन्हें भारतीय संगीत बेहद पसंद आया। उसके बाद से हम लगातार आगे बढ़ रहे हैं लेकिन फिर भी अभी पाश्चात्य संगीत की तुलना में भारतीय शास्त्रीय संगीत व कला को इतनी प्रसिद्धि नहीं मिल सकी है।

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