देह और दुनिया से नहीं, दुख और दर्द से है मुक्ति का अर्थ... उर्मिला दीदी ने समझाया यह मर्म
उर्मिला दीदी के अनुसार, मुक्ति का तात्पर्य केवल शरीर और संसार से विरक्ति नहीं, बल्कि पीड़ा और कष्ट से निवारण है। यह एक आंतरिक अवस्था है जो आत्म-अनुशासन और समझ से प्राप्त होती है। दीदी आंतरिक शांति के महत्व पर बल देती हैं, क्योंकि आंतरिक शांति के बिना बाहरी दुनिया में शांति पाना संभव नहीं है।

श्रद्धालुओं को संबोधित करतीं माउंट आबू राजस्थान से पधारीं मुख्य वक्ता उर्मिला दीदी। जागरण
जागरण संवाददाता, मेरठ : दिल्ली रोड मोहकमपुर स्थित प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के प्रभु मिलन भवन में सत्यनारायण कथा के आध्यात्मिक रहस्य का द्वितीय सत्र आयोजित हुआ। माउंट आबू राजस्थान से पधारी मुख्य वक्ता उर्मिला दीदी ने कहा कि राजा जनक ने पल भर में अष्टावक्र का शिष्य बन ज्ञान की धारणा की और आत्मिक में स्थित होकर राज्य संभाला।
ज्ञान मार्ग पर चलकर उन्होंने मुक्ति प्राप्त करने का उदाहरण भी प्रस्तुत किया। लौकिक में संबंध निभाते हुए ज्ञान मार्ग का अनुसरण किया जा सकता है, यह राजा जनक भली-भांति जान गए थे। राजा जनक को ज्ञान हो गया था कि वह देह नहीं, आत्मा है। यह दुनिया एक रंगमंच है, जिस पर वह अभिनय कर रहे हैं। इस ज्ञान के माध्यम से उन्होंने राज्य संभाला और मुक्ति प्राप्त की।
उर्मिला दीदी ने कहा कि मुक्ति का अर्थ देह और दुनिया से नहीं है। इसका सही अर्थ दुख और दर्द से मुक्ति है। जो व्यक्ति स्वयं को आत्मा समझ कर कर्म करता है, उसके साथ परमात्मा रहता है। उसके लिए निंदा-स्तुति, हानि-लाभ सब समान होता है। ऐसे कर्म योद्धा के कर्म में कुशलता होती है, जिससे लोक कल्याण का मार्ग भी प्रशस्त होता है। मंच संचालन सेवा केंद्र प्रभारी सुनीता दीदी ने किया।

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