मोबाइल टावर से निकलने वाले रेडिएशन से खतरा नहीं, मेरठ में दूरसंचार विभाग के निदेशक ने इस आधार पर कही यह बात
मेरठ के आइआइएमटी विश्वविद्यालय में मोबाइल टावर से होने वाले विकिरण को लेकर कार्यशाला का आयोजन हुआ। बताया गया की मोबाइल टावर से निकलने वाले विकिरण से कोई खतरा नहीं होता है। सबंधित कंपनी को मानकों के पालन पर ही टावर लगाने की अनुमति मिलती है।

मेरठ, जागरण संवाददाता। मोबाइल संचार में उपयोग किए जाने वाले इलेक्ट्रोमैगनेटिक सिग्नल की आवृत्ति हानिरहित गैर आयनीकरण स्पेक्ट्रम में टेलीविजन और रेडियो संकेतों की तरह होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन और अन्य वैज्ञानिकों द्वारा अध्ययन किया गया है कि आज तक टावर विकिरणों के हानिकारक प्रभावों का कोई निर्णायक साक्ष्य नहीं पाया गया है। भारत सरकार ने अंतरराष्ट्रीय मानकों की तुलना में 10 गुना कड़े मानक निर्धारित किए हैं। इन मानकों पर आइआइइी, एम्स, आइसीएमआर और डीओटी आदि के विशेषज्ञों की टीम ने व्यापक अध्ययन के बाद यह बात कही है। ऐस में रिहायशी इलाकों में टेलीकॉम टावर लगाने में कोई बुराई नहीं है। उक्त विचार दूरसंचार विभाग उप्र पश्चिम एलएसए मेरठ के निदेशक विवेक अस्थाना ने आइआइएमटी विश्वविद्यालय गंगानगर में आयोजित अवेयरनेस कार्यक्रम में व्यक्त किए।
रेडिएशन की जांच के बाद ही दी जाती है टावर लगाने की अनुमति
मोबाइल टावर से होने वाले विकिरण पर कार्यशाला का आयोजन हुआ। जिसमें बताया गया की मोबाइल टावर से निकलने वाले विकिरण (रेडिएशन) से कोई खतरा नहीं है और यह एक सीमा के अंदर ही रहता है। उन्होंने बताया कि मोबाइल सेवाओं को शुरू करने से पहले संचार सेवा प्रदाता कंपनी को नए टावर से उत्सर्जित होने वाले विकिरण का विवरण दूरसंचार विभाग कार्यालय (डीओटी) मेरठ में प्रस्तुत करना होता है। दूरसंचार विभाग विवरण की जांच करता है। ईएमएफ रेडिएशन सीमा के अंदर पाए जाने पर ही सेवाएं शुरू करने की अनुमति दी जाती है। एलएसए मेरठ कार्यालय यह सुनिश्चित करता है कि विकिरण भारत सरकार के द्वारा निर्धारित सीमा के अंदर ही हों।
मोबाइल टावरों का विकिरण पूरी तरह से सुरक्षित सीमा के भीतर
पश्चिम उप्र में बढ़ी टावरों की संख्या पर कार्यशाला के मुख्य वक्ता विवेक अस्थाना ने बताया कि मोबाइल टावरों से विकिरण पूरी तरह से सुरक्षित सीमा के भीतर हैं और इनका स्वास्थ्य पर कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ता है। मोबाइल सेवाओं को ध्यान में रखते हुए पिछले तीन वर्षों में उत्तर प्रदेश पश्चिम में टावरों की संख्या 23332 से बढ़कर 28126 हो गई है। जबकि अभी भी कुछ क्षेत्रों में टावर व बीटीएस नहीं है, साथ ही इंटरनेट की गति भी धीमी है। इसलिए टावरों की अधिक संख्या की आवश्यकता है। इसलिए दूरसंचार सेवा की अभूतपूर्व मांग को पूरा करने के लिए टेलीकाम इंफ्रास्ट्रक्चर के तेजी से रोल आउट के लिए सभी उत्तर प्रदेश के लोगों से सहयोग के लिए अनुरोध करते हैं।
वर्क फ्रोम होम ने बनाया काम को आसान
निदेशक विवेक अस्थाना ने बताया कि दूरसंचार सेवाएं हमारी अर्थव्यवस्था में एक अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। विशेषकर आपदाओं के दौरान जैसे वर्तमान में कोविड-19 महामारी में दूरसंचार सेवाओं ने न केवल प्रशासनिक मशीनरी की निरंतरता और कार्यप्रणाली को बनाए रखने में एक प्रमुख भूमिका निभाई, बल्कि आर्थिक और औद्योगिक गतिविधियों के अलावा, वर्क फ्रोम होम, शिक्षा, समाचार, मनोरंजन, सामाजिक नेटवर्किंग, मित्रों और परिवारों को जोड़े रखने को सुविधाजनक बनाया। इसके चलते दूरसंचार सेवाओं की जरूरत अभूतपूर्व तरीके से बढ़ गई है। राज्य में दूरसंचार बुनियादी ढांचे के तेजी से विस्तार की तत्काल आवश्यकता है। इसमें कवरेज के विस्तार और सुधार के लिए टावरों के शीघ्र लगाने का आह्वान किया गया है। हालांकि भ्रांतियों और गलत सूचनाओं के कारण लोगों के निवास आदि के आसपास कोई टावर प्रस्तावित होता है तो कुछ स्थानों पर जनता आशंकित रहती है। इसलिए मोबाइल टावरों से विकिरण की सुरक्षा और वास्तविकता के बारे में जागरूकता पैदा करने की तत्काल आवश्यकता है।
इससे पहले कार्यशाला का उद्घाटन विश्वविद्यालय के प्रति उप कुलपति डा. सतीश बंसल ने किया। दूरसंचार विभाग से सहायक निदेशक मजहर उल इस्लाम ने सभी का आभार व्यक्त किया। डा. संदीप, मोनू गुप्ता, डीन दिनेश कुमार शर्मा, निदेशक सुनील माहेश्वरी आदि का आयोजन में सहयोग रहा।
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