Spic Macay: मेरठ में राग तोड़ी और सितार-तबले की जुगलबंदी से समां बांधा, बच्चों में भरा जोश
Spic Macay मेरठ में आर्मी पब्लिक स्कूल में सितारवादक पंडित नयन घोष भारतीय शास्त्रीय संगीत की प्रस्तुति की। इस दौरान स्कूल के बच्चों को भारतीय शास्त्रीय संगीत सुनने का अवसर प्राप्त हुआ। मियां तानसेन को श्रद्धांजलि के तौर पर राग तोड़ी में मियां की तोड़ी प्रस्तुत की।

मेरठ, जागरण संवाददाता। Spic Macay मेरठ में स्पिक मैके कार्यक्रमों की श्रंखला में बुधवार को छावनी स्थित आर्मी पब्लिक स्कूल के बच्चों को भारतीय शास्त्रीय संगीत सुनने का अवसर प्राप्त हुआ। जाने-माने सितारवादक पंडित नयन घोष और संगतकार पवन सिदम के साथ सितार और तबले की जुगलबंदी ने स्कूली बच्चों में जोश भर दिया। इस दौरान स्कूल की प्रिंसिपल डा. रीटा गुप्ता ने कलाकारों का स्वागत और अभिनंदन किया।
श्रद्धांजलि के तौर पर प्रस्तुति
पंडित घोष ने मियां तानसेन को श्रद्धांजलि के तौर पर सबसे पहले राग तोड़ी में मियां की तोड़ी प्रस्तुत की। राग के बारे में बच्चों को बताया कि यह पहले ऋषि की तरह और अंत में एक बच्चे के मन की तरह हो जाता है। इसके साथ ही उन्होंने राजस्थानी लोक संगीत मांड पर आधारित संगीत की प्रस्तुति दी।
पिता और दादा दोनों के मिले गुण
विद्यार्थियों के सवालों का जवाब देते हुए पंडित नयन घोष ने बताया कि भारतीय शास्त्रीय संगीत एक तपस्या है। इसके एक-एक वाद्य यंत्र में महारत हासिल करने में जीवन बीत जाते हैं। तब कलाकार को लगता है कि काश कुछ और समय मिल पाता। फर्रुखाबाद घराने के पंडित नयन घोष ने बताया कि पिता पद्मभूषण निखिल घोष तबला वादक थे और दादा अक्षय कुमार घोष सितारवादक थे। उन्होंने दादा को तो नहीं देखा लेकिन पिता से ही दोनों विधाओं को सीखा। बताया कि संगीत सुनना, सीखना और बजाना एकाग्रता बढ़ाता है। व्यक्तित्व में निखार लाता है। इसलिए सुनें सभी और जो संगीत में आगे बढ़ना चाहते हैं वह दो-तीन वर्ष गंभीरता से सीखें फिर निर्णय लें कि आगे जाना है या नहीं।
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संगीतकार के तीन गुरु, व्यक्ति, अभ्यास और मंच
पंडित घोष ने बताया कि एक कलाकार के तीन गुरुओं में व्यक्ति, अभ्यास और मंच होते हैं। पंडित या उस्ताद की उपाधि किसी को आधिकारिक तौर पर नहीं मिलती है। जब वरिष्ठ संगीतकार उभरते संगीतकारों को उस्ताद या पंडित बुलाने लगें तभी यह कलाकार के नाम से जुड़ जाता है।
सितार में पर्सिया की तकनीक और भारतीय संगीत
पंडित नयन घोष ने बताया कि भारतीय शास्त्रीय संगीत में तार वाले सभी वाद्य यंगों को किसी न किसी वीणा नाम से जाना जाता है। सितार को त्रितंत्री वीणा कहा जाता था। 17वीं शताब्दी के अंत में अमीर खान खुसरो ने इरानी सहतार से सितार विकसित किया। इसमें उन्होंने तकनीक पर्सिया से ली और संगीत भारतीय था। इरानी सहतार बहुत छोटा होता है जबकि सितार समय के बाद बदलते हुए वर्तमान स्वरूप तक पहुंचा है। स्कूल की प्रिंसिपल डा. रीटा गुप्ता ने कलाकारों का स्वागत व अभिनंदन किया।
अब शास्त्रीय संगीत के कार्यक्रमों में युवा पीढ़ी
मेरठ : स्पिक मैके कार्यक्रमों की श्रंखला में मंगलवार को दीवान पब्लिक स्कूल कैंट में सितारवादक पंडित नयन घोष ने अपने संगतकार तबलावादक पवन सिदम के साथ दीवान पब्लिक स्कूल में प्रस्तुति दी। कार्यक्रम में उन्होंने राग नट भैरव और भटियाली धुन बजाकर विद्यार्थियों को सितार से निकले तरंगों की सैर कराई। सितार के साथ ही वह तबले पर भी उनके हाथ जादू बिखेरते हैं। बच्चों के आग्रह पर उन्होंने तबले पर हाफ फेरा तो बच्चों के साथ बड़े भी झूम उठे। पंडित नयन घोष ने बच्चों को बताया कि शास्त्रीय संगीत की शुरुआत बारीकियों को सीखने के लिए किसी इंस्टीट्यूट में प्रवेश ले सकते हैं लेकिन एक अच्छे गुरु ही भीतर छिपे कलाकार को बाहर ला सकते हैं। अब अच्छे गुरु कम हैं लेकिन यदि कोई सीखना चाहता है तो अच्छे गुरु को तलाशना पड़ेगा और वह मिलेंगे जरूर।
युवाओं में बढ़ा है रुझान
पंडित नयन घोष ने बताया कि 20-25 वर्ष पहले शास्त्रीय संगीत की प्रस्तुति वाले कार्यक्रमों में अधेड़ या बुजुर्ग ही दर्शक व श्रोता होते थे लेकिन अब युवा पीढ़ी भी अच्छी संख्या में नजर आती है। नई पीढ़ी को इससे जोड़ने के लिए उन्हें शास्त्रीय संगीत सुनाने की जरूरत है। एक बार वह सुनने लगेंगे तो रुचि बढ़ती जाएगी। स्कूली बच्चों में शास्त्रीय संगीत के प्रति रुचि बढ़ाने का ही कार्य स्पिक मैके कर रही है जिसमें काफी हद तक सफलता मिल भी रही है। उन्होंने कहा कि यह जुड़ाव फिल्मों से आ सकता है। पुराने संगीतकार शास्त्रीय संगीत के जानकार थे जिसका इस्तेमाल उन्होंने फिल्मों में किया लेकिन नई पीढ़ी के संगीतकारों में शास्त्रीय संगी है नही। यह चक्र भी जल्द पूरा होगा और फिल्मों में शास्त्रीय संगीत की वापसी भी होगी।
फर्रूखाबाद घराने से जुड़े हैं पंडित नयन
पंडित नयन घोष बताते हैं कि सितारवादन से पहले ही उन्होंने तबलावादन सीखना शुरू किया था। वह 10 पीढ़ियों से चले आ रहे तबला के फर्रूखाबाद घराने से जुड़े हैं जिसमें उनके परिवार का जुड़ाव छह पीढ़ियों का रहा है। उन्होंने बताया कि फर्रूखाबाद घराने की शुरुआत हाजी विलायत अली खां ने किया था और उन्होंने ही सबसे पहले संगीत सिखाने की कक्षा शुरू की जिसमें एक साथ कई प्रशिक्षुओं को सिखाया करते थे। पंडित नयन पद्मभूषण निखिल घोष के पुत्र व शिष्य हैं।
आभार प्रकट किया
इस कार्यक्रम में पंडित नयन के साथ बीए अंतिम वर्ष की पढ़ाई कर रहे अकोला निवासी तबला वादक पवन सिदम पंडित नयन के ही शागिर्द हैं। संगीत महाभारती के निदेशक और आल इंडिया रेडियो के आडिशन बोर्ड के सदस्य पंडित नयन घोष को संगीत नाटक एकेडमी अवार्ड और वर्ष 1998 में कैलिफोर्निया के गर्वनर ग्रे डेविस ने अचीवमेंट अवार्ड से भी नवाजा था। स्कूल के निदेशक व स्पिक मैके मेरठ चैप्टर के चेयरपर्सन एचएम राउत व प्रिंसिपल एके दुबे ने आभार प्रकट किया।

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