Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    चार हजार वर्ष पुरानी सभ्यता को समेटे है बागपत का सिनौली गांव, जो यहां मिला, अब तक कहीं और नहीं मिला

    By Taruna TayalEdited By:
    Updated: Mon, 21 Dec 2020 04:35 PM (IST)

    यह सिनौली है यहां मिल चुके हैं मानव कंकाल रथ तलवार और ताबूत। चार हजार वर्ष पुरानी सभ्यता को समेटे है सिनौली।सिनौली उत्खनन से निकले इतिहास को डिस्कवरी प्लस चैनल पर वेब सीरीज सीक्रेट्स आफ सिनौली- डिस्कवरी आफ द सेंचुरी में दिखाया जाएगा।

    Hero Image
    सिनौली उत्खनन में मिले मानव कंकाल, रथ, तलवार और ताबूत।

    बागपत, [भूपेंद्र शर्मा]। सिनौली उत्खनन में मिले प्रमाण अंग्रेजों के लिखे इतिहास को बदल देने का माद्दा रखते हैं। यहां की जमीन से निकले लगभग चार हजार वर्ष पुराने रथ, तलवार और ताबूत पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (एएसआइ) के पूर्व सुपरीटेंडेंट आॢकयोलाजिस्ट और इतिहासविद् कौशल किशोर शर्मा कहते हैं कि सिनौली में हमें वो मिला, जो अब तक भारत में कभी-कहीं नहीं मिला। फिलहाल, भारत में आर्यों के आक्रमण की मैक्समुलर थ्योरी को झुठलाते ये प्रमाण अब लाल किला तक पहुंच गए हैं और लोगों की जुबान पर सिनौली का नाम चढ़ गया है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    2005 में पहली बार चर्चा में आया सिनौली

    यमुना नदी से लगभग आठ किलोमीटर दूर स्थित बागपत जिले का सिनौली एक शांत-सामान्य हरियाली संपन्न गांव है। लगभग 4000 बीघे में फैले इस गांव की चर्चा सबसे पहले 2005 में हुई। उन दिनों गांव के ही प्रभाष शर्मा को अपने खेत में प्राचीन वस्तुएं मिली थीं। इसके बाद ही एएसआइ ने खोदाई कर यहां से 106 मानव कंकाल निकाले थे। कार्बन डेटिंग में सभी तीन हजार वर्ष से भी पुराने बताए गए। दूसरे चरण में 2017 और तीसरे चरण में सन 2019 में हुई खोदाई में एक से बढ़कर एक वस्तुएं निकलीं। जब उन्हेंं पता चला कि उनकी जमीन के नीचे कई सभ्यताएं दफन हैं, तब से यहां के ग्रामीण भी अब अपने को महाभारत काल से जोड़कर देखने लगे हैं।

    मिश्रित आबादी वाले गांव की आबादी लगभग 11000 है। बड़ी हिस्सेदारी जाट समाज की है। दूसरे नंबर पर ब्राह्मण हैं। इनके अलावा दलित और मुस्लिम समुदाय के लोग भी भाईचारे से रहते हैं। साफ-सुथरे ढंग से जीवन यापन कर रहे इस गांव के लोग खेती-किसानी पर ही आश्रित हैं। कुछ लोग सरकारी नौकरियों में हैं जबकि रोजाना लगभग हजार लोग बड़ौत और आसपास के कस्बों में दिहाड़ी मजदूरी, अथवा नौकरी के लिए जाते हैं।

    यह तो शाही कब्रगाह था

    एमएम कालेज, मोदीनगर में इतिहास के एसोसिएट प्रोफेसर डा. के के शर्मा बताते हैं कि सिनौली की संस्कृति का संबंध उत्तर वैदिक काल और हड़प्पा सभ्यता के बीच की संस्कृति का प्रतीत होता है। यहां एक शाही कब्रगाह में मिली आठ कब्र में से तीन खाटनुमा ताबूतों में हैं। इनके साथ हथियार, विलासिता की सामग्री, पशु-पक्षियों के कंकाल और तीन दफनाए गए रथ मिले हैं। ये ताबूत पूरे भारतीय उपमहाद्वीप के लिए नई खोज है, जो चार हजार साल पुरानी उन्नत संस्कृति को दर्शाते हैं। 2000 ईसा पूर्व के आसपास मेसोपोटामिया और अन्य संस्कृतियों में जिस तरह के रथ, तलवार-ढाल और हेलमेट (टोपा) युद्ध में इस्तेमाल किए जाते थे, उसी काल के आसपास यहां भी वो चीजें थीं। ये तकनीकी रूप से काफी उन्नत थीं, और अन्य सभ्यताओं के समकालीन या उससे थोड़ा पहले ही यहां आ चुकी थीं।

    राष्ट्रीय स्मारक का क्षेत्र घोषित

    एएसआइ ने सिनौली गांव में 40 किसानों की 28 हेक्टेयर भूमि को राष्ट्रीय स्मारक का क्षेत्र घोषित किया है। भूमि पर तारबंदी होगी। अब इस जमीन पर किसान खेती तो कर सकेंगे लेकिन किसी भी निर्माण के लिए एएसआइ से अनुमति लेनी होगी।

    डिस्कवरी प्लस पर सिनौली का इतिहास

    सिनौली उत्खनन से निकले इतिहास को डिस्कवरी प्लस चैनल पर वेब सीरीज 'सीक्रेट्स आफ सिनौली- डिस्कवरी आफ द सेंचुरी में दिखाया जाएगा। अभिनेता मनोज वाजपेयी इसकी कहानी प्रस्तुत करेंगे। पुष्टि करते हुए एएसआइ के निदेशक डा. संजय मंजुल बताते हैं कि डिस्कवरी प्लस चैनल ने सिनौली में कई दृश्य शूट किए हैं। इसे दिखाने की तिथि जल्द ही सामने आएगी।

    सड़क मार्ग से सवा घंटे में पहुंच जाएंगे

    दिल्ली के कश्मीरी गेट से चलें या फिर मेरठ के भैंसाली बस अड्डे से, यहां सवा घंटे में पहुंच जाएंगे। अगर आप दिल्ली से आ रहे हैं तो दिल्ली-सहारनपुर राजमार्ग पकड़कर खेकड़ा, बागपत होते बड़ौत आना होगा। यहां से छपरौली की ओर मुड़ रही सड़क पर लगभग साढ़े छह किलोमीटर चलते ही सादिकपुर सिनौली का बोर्ड मिल जाएगा। इसी तरह मेरठ से आने के लिए सरधना रोड पकड़कर बरनावा होते हुए बड़ौत पहुंचना होगा। यहां से छपरौली मार्ग पर बढ़ते ही मलकपुर के बाद सादिकपुर सिनौली पहुंच जाएंगे। मेरठ से कुल दूरी 56 किलोमीटर है।