हस्तिनापुर में दबे इतिहास से पर्दा उठाने की पटकथा तैयार
सिनौली के बाद अब हस्तिनापुर में छिपे इतिहास को उजागर करने के लिए संस्कृति मंत्रालय को पत्र लिखकर हस्तिनापुर में फिर खोदाई कराने की मांग रखी गई है।
मेरठ (रवि प्रकाश तिवारी)। बागपत के सिनौली में भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग (एएसआइ) की खोदाई में ताम्रजड़ित रथ, तांबे की तलवार, ताबूत, नरकंकाल और विभिन्न तरह के मृदभांड मिलने से उत्साहित इतिहासविदों ने अब हस्तिनापुर की धरती के नीचे दबे इतिहास से भी पर्दा उठाने की पटकथा तैयार कर ली है। संस्कृति मंत्रालय को पत्र लिखकर यहां फिर से खोदाई कराने की मांग की है। पत्र में कहा गया है कि सरकार उच्च स्तरीय समिति का गठन कर इस दिशा में आगे बढे़। पत्र शहजादा राय शोध संस्थान की ओर से भेजा गया है। अधिकांश हिस्सा तो अछूता है
सेंटर फॉर आर्म्ड फोर्सेज हिस्टोरिकल रिसर्च, नई दिल्ली के फेलो डा. अमित पाठक का तर्क है कि 66 वर्ष पूर्व हस्तिनापुर के एक छोटे हिस्से की खोदाई में 3200 वर्ष तक पुरानी सभ्यता के प्रमाण मिले थे। हालिया सिनौली उत्खनन में मिले कई सामान और हस्तिनापुर से मिले प्रमाणों में संस्कृति की समानताएं भी हैं। इतना ही नहीं 1952 के बाद से अब तक हस्तिनापुर में दोबारा कोई उत्खनन नहीं हुआ जबकि इन साढे छह दशकों में तकनीक काफी विकसित हुई है। ऐसे में उत्खनन की विकसित तकनीक के सहारे कई और महत्वपूर्ण प्रमाण मिल सकते हैं। कुरुक्षेत्र तक का मार्ग खोजे सरकार
शहजादा शोध संस्थान के निदेशक अमित राय जैन कहते हैं कि महाभारत सर्किट की बात तभी पूरी हो सकती है, जब हस्तिनापुर से कुरुक्षेत्र तक का मार्ग प्रमाण सहित खोजा जाए। यह तभी संभव है जब हस्तिनापुर में फिर उत्खनन हो। उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि इंद्रप्रस्थ में तो चार-पांच बार उत्खनन हुआ, लेकिन हस्तिनापुर में एक ही बार, क्यों? एक नहीं कई सभ्यताओं के हस्तिनापुर में मिले हैं निशान
डा. बीबी लाल की अगुवाई में 1951-52 में हस्तिनापुर में जो खुदाई हुई उसमें एक-दो नहीं कई सभ्यताओं के निशान मिले, जो इस प्रकार है:
3200 वर्ष पुरानी सभ्यता: हस्तिनापुर की खोदाई में जो सबसे पुरानी सभ्यता मिली, वह लगभग 3200 वर्ष पुरानी थी। इसमें ओकर कलर्ड पॉटरी यानि मिट्टी के गेरुआ रंग के बर्तन मिले, साथ ही कॉपर होर्ड के भी सामान थे। सिनौली उत्खनन में भी इस तरह की सभ्यता मिली है। 3100-2800 वर्ष पुरानी सभ्यता: इसी खोदाई में चित्रित धूसर मृदभांड यानि पेंटेड ग्रे वेयर मिला। कार्बन डेटिंग में यह लगभग 3100 से 2800 वर्ष पुरानी आंकी गई। यह एक बेहद उन्नत किस्म की पॉटरी थी। मिट्टी से बने इन पॉटरी की खनक चीनी मिट्टी के सामानों की सी है। एएसआइ की टीम ने बूढ़ी गंगा के नीचे जब बोरवेल लगाया था तो रेत के साथ इस पॉटरी के टुकड़े भी साथ आए थे। इससे यह माना गया कि गंगा ने अपने अंदर इस सभ्यता को समेट लिया था। बाद में इतिहासकारों ने चित्रित धूसर मृदभांड की सभ्यता को महाभारत के समकालीन बताया था। 2600-2300 वर्ष पुरानी सभ्यता: यह बौद्ध और महावीर का समय माना जाता है। मौर्य काल के इस समय के लोहे के कई उपकरण भी खोदाई में प्राप्त हुए थे। 2100-1800 वर्ष पुरानी सभ्यता: इस कालखंड में सूंग, कुषाण, शाख सभ्यता के लोगों की मौजूदगी इसी कालखंड की मानी जाती है। हस्तिनापुर की माटी के नीचे से बीबी लाल और उनकी टीम को इस सभ्यता के लोगों की बसावट के साक्ष्य मिले थे। 1400-1200 वर्ष पुरानी सभ्यता: यह कालखंड सल्तनत काल का है। इस समय के मंदिरों के अवशेष मिले थे। हालांकि जो प्रमाण मिले, उससे ऐसा लगता है कि तब तक हस्तिनापुर अपना मूल स्वरूप खो चुका था, और यहां छोटा-मोटा रिहायशी इलाका ही रहा होगा। चावल के सबसे पुराने प्रमाण भी यहीं के थे
हस्तिनापुर उत्खनन के दौरान ही लगभग 3200 वर्ष पुराने मिट्टी के गेरुआ रंग के पात्र में चावल के प्रमाण मिले थे। मिट्टी के इस विशेष बर्तन में जले हुए चावल का टुकड़ा मिला था। यह भारत में चावल मिलने का अब तक का सबसे पुराना प्रमाण था।