DRDO की बड़ी परियोजनाओं पर काम कर चुके वैज्ञानिक रमेश चंद्र त्यागी का निधन, सात सुरों की दी थी गणितीय आवृति Meerut News
वैज्ञानिक रमेश चंद्र त्यागी पहली बार भारतीय संगीत के सात स्वर सा रे गा मा पा धा नि की गणितीय आवृत्ति बताई। ऐसा करने वाले वह विश्व के पहले वैज्ञानिक हैं।
मेरठ, जेएनएन। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) की आइआर (Infred) डिटेक्टर परियोजना में तकनीकी रूप से अहम योगदान देने वाले वैज्ञानिक डॉ. रमेश चंद्र त्यागी (Scientist Passes away) का शनिवार सुबह होप अस्पताल में निधन हो गया। सात साल पहले मस्तिष्क की सर्जरी कराने के बाद उनका स्वास्थ्य खराब चल रहा था। करीब एक सप्ताह पहले तबीयत बिगडऩे पर उन्हें होप अस्पताल में भर्ती कराया था। वह करीब 84 वर्ष के थे। उनकी मौत की खबर मिलने पर उनसे जुड़े तमाम भौतिकी के विज्ञानी व शोधार्थियों में शोक छा गया। बुढ़ाना गेट स्थित उनके आवास पर लोग अंतिम दर्शन को पहुंचे।
चचेरे भाई सतीश चंद्र त्यागी ने बताया कि डा. रमेश चंद त्यागी के दोनों बेटे अमेरिका में रहते हैं। बड़े बेटे दिनेश विज्ञान के क्षेत्र में योगदान दे रहे हैं जबकि छोटे बेटे राजेश त्यागी गणित के प्रोफेसर हैं। अंतिम संस्कार के लिए पार्थिव शरीर को गढ़ ले जाया गया।
देशसेवा की खातिर छोड़ आए थे नासा
मूलरूप से मुरादाबाद निवासी डॉ. रमेश चंद्र त्यागी ने भौतिकी से MSc व इंग्लैंड में PHD की थी। उन्होंने दिल्ली की राष्ट्रीय भौतिकी प्रयोगशाला, इंग्लैंड के हल विश्वविद्यालय, आइआइटी दिल्ली, नासा (अमेरिका) व डीआरडीओ आदि शोध संस्थानों में अपनी सेवाएं दीं। कई भौतिकी के स्कॉलर ने उनके अधीन शोध किए। 1972 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की विशेष पहल पर भारत में एंटी एयरक्राफ्ट मिसाइल में इंफ्रारेड डिटेक्टर प्रणाली बनाने की परियोजना पर काम करने के लिए वह नासा की नौकरी छोड़ आए थे। यह डिटेक्टर स्वदेशी मिसाइल को नई क्षमता प्रदान करता। कामयाबी के पास होने पर भी विदेशी दबाव व राजनीतिक कारणों से प्रोजेक्ट बंद हो गया। जिसका उन्हें गहरा आघात पहुंचा था।
वकालत कर खुद लड़े अपना केस
स्व. डा. आरसी त्यागी को रिसर्च प्रोजेक्ट से हटाकर कभी डीआरडीओ तो कभी आइटीआइ में पढ़ाने के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान स्थानांतरित किया गया। इससे नाराज डा. त्यागी ने सरकार का विरोध किया तो उन्हें आनन-फानन में महीने की चार तारीख को ही सेवानिवृत्त कर उनके जीपीएफ व पेंशन भी जारी हुआ दिखा दिया गया जबकि उन्हें कुछ नहीं मिला। उन्होंने अपना पक्ष मजबूती से रखने के लिए वकालत की पढ़ाई की। अदालतों में भी काफी विरोध के बाद जब सुनवाई ठीक से नहीं हुई तो उन्होंने यूएन में शिकायत की। वहां से नोटिस आने पर मामला सुप्रीम कोर्ट में चला जिसमें वह जीते भी, लेकिन उन्हें 20 साल का वेतन व जीपीएफ नहीं मिला। बाद में केवल पेंशन शुरू की गई थी।
साधा था सुरों का वैज्ञानिक सिद्धांत
डा. त्यागी के शोधपत्र इवोल्यूशन ऑफ एब्सोल्यूट स्केल ऑफ म्यूजिक, को कैंब्रिज में भी मान्यता मिली। उनका कहना था कि हजारों साल पहले भरत मुनि ने 22 रुतियों के बारे में बताया। बाद में उच्च ओर मध्यम मिलाकर 12 सुर बने और अब सात सुरों का प्रयोग होता है। लेकिन इन सिद्धातों का कोई वैज्ञानिक व तार्किक आधार नहीं है। 31 सालों की मेहनत से उन्होंने भौतिकी और गणित की कसौटी पर हर सुर की विशिष्ट फ्रीक्वेंसी निकाली और उसे सिद्ध किया। मानक फ्रीक्वेंसी के लिए उन्होंने स्वरमंडल की रचना की थी। उन्होंने ही पहली बार भारतीय संगीत के सात स्वर सा, रे, गा, मा, पा, धा नि की गणितीय आवृत्ति बताई। ऐसा करने वाले वह विश्व के पहले वैज्ञानिक हैं।