Save Birds : कानों में मिसरी सी घोलते चिड़ियों का शोर जाने कहां खो गया
हल्की-सी आहट पर तोते का फड़फड़ाकर पेड़ों के पत्तों में गुम हो जाना..। ये सब बीते वक्त की बातें हो चुकी हैं। चिड़िया अब लुप्त होती जा रही है। इसका बचाना जरूरी है।
मेरठ, [रवि प्रकाश तिवारी]। गौरैया का मुंडेर पर चहचहाना,कांव-कांव करते कौवा को देख चेहरे पर किसी प्रियजन के आने की खुशी तैर जाना, बसंत में कोयल का कूक भरना और हल्की-सी आहट पर तोते का फड़फड़ाकर पेड़ों के पत्तों में गुम हो जाना..। ये सब बीते वक्त की बातें हो चुकी हैं। कानों में मिसरी सी घोलते चिड़ियों के शोर के साथ भोर होती थी लेकिन अब तो सुबह चुपचाप आती है और शाम भी दबेपांव निकल जाती है।
लुप्त होने की वजह
मेरठ जैसा शहर भी परिंदों को पोस नहीं पा रहा है। साइबेरियन पक्षियों के लिए मेरठ की हस्तिनापुर सेंचुरी भले ही आज भी एक अहम पड़ाव है, लेकिन लगलग, ढेक, सारस जैसे अपने परिंदे भी अब यदा-कदा ही दिखते हैं। इन्हें लुप्त होने के कगार पर ले जाने की अहम वजह है इनके रहवास का उजड़ना। यदि अब भी हम नहीं चेते तो इन मित्र पक्षियों का दीदार तो छोड़िए, जिक्र भी किताबों में सिमटकर रह जाएगा।
28 प्रजातियां संकटग्रस्त
अकेले मेरठ में पक्षियों की ऐसी 28 प्रजातियां संकटग्रस्त हैं। इनमें 11 की स्थिति तो बेहद खराब है। 1980 में बड़ी संख्या में दिखने वाली येलो फिंग वीवर, यानी पहाड़ी बया अब बामुश्किल दिखती है। इसी तरह गिद्धों की कुछ प्रजातियां दो दशक पहले तक तो दिखती थीं, लेकिन अब नजर नहीं आतीं। हालात दिनोंदिन बिगड़ते जा रहे हैं। परिंदों के लिए चुनौतियां बढ़ती जा रही हैं। कुदरती रिश्ता होने के चलते परिंदे तो हमें नहीं छोड़ना चाहते लेकिन हम उनके लिए लगातार चुनौतियां बढ़ा रहे हैं। इन हालात पर अर्से पहले पढ़ी दो पंक्तियां याद आती हैं.
कट गया पेड़ मगर ताल्लुक की बात थी।
बैठे रहे जमीन पर वो परिंदे रातभर।
मेरठ में 288 प्रजाति के पक्षी
मेरठ में पक्षी विज्ञानियों ने समय-समय पर दौरा किया और महीनों बिताकर पक्षियों की प्रजातियों को सूचीबद्ध किया। सबसे पहले 1986 में मेरठ के पक्षियों की चेकलिस्ट तैयार की गई थी। वाइएम राय ने मेरठ के लगभग प्रत्येक हिस्से को कवर करते हुए पाया था कि यहां पक्षियों की 257 प्रजातियां हैं। 90 के अंत में पक्षी विज्ञानी डा. रजत भार्गव ने पक्षियों की मौजूदगी का सचित्र प्रमाण तैयार किया। उनकी रिपोर्ट में मेरठ में 288 प्रजाति के पक्षी सामने आए। इस रिपोर्ट के बाद पक्षी विज्ञानियों का दावा था कि इस चेक लिस्ट में पक्षियों की सात प्रजातियां नहीं हैं, जो 80 के दशक तक मेरठ या इसके आसपास दिखती थीं।
हमसे बेहतर तो दिल्ली है..
पक्षियों की मौजूदगी के मामले में भारत की स्थिति दुनिया में ठीक-ठाक है। विश्व में लगभग नौ हजार प्रजाति के पक्षी रिकॉर्ड में हैं जबकि देशभर में लगभग 1300 प्रजातियां मिलती हैं। भारत की भौगालिक हिस्सेदारी विश्व की कुल चार फीसद है जबकि यहां 13.6 फीसद प्रजातियों के पक्षी मिलते हैं। स्थानीय स्तर पर बात करें तो पक्षियों की प्रजातियों की उपलब्धता के मामले में अपना मेरठ पीछे छूट गया है। विकास और शहरीकरण में मीलों आगे दिल्ली में 453 प्रजातियां मिलती हैं। हम लगभग इनके आधे हैं।
देश का दूसरा सबसे बड़ा कैंट और हस्तिनापुर सेंचुरी
परिंदों के पलने-बढ़ने के लिए मेरठ मुफीद ठिकाना है। देश की दूसरी सबसे बड़ी छावनी का मेरठ में होना खासकर पक्षियों के नजरिए से काफी सकारात्मक है। 3568 हेक्टेयर में फैले कैंट में बड़े और पुराने दरख्त पक्षियों का बसेरा बने। इसी तरह 2073 वर्ग किमी क्षेत्र में फैली यहां की हस्तिनापुर वन्यजीव सेंचुरी भी परिंदों को मेरठ में रोकने में अहम भूमिका निभा रही है। हस्तिनापुर का लगभग 222 वर्ग किमी का क्षेत्र मेरठ वन विभाग के पास है और इसका एक बड़ा हिस्सा नहरों व अन्य जलस्रोतों का है। शांत और सुकूनभरे इस माहौल में देशी प्रजातियों के साथ-साथ बड़ी संख्या में विदेशी पक्षियों का बसेरा भी खूब रहता है।
यह भी जान लीजिए
- 118 प्रजातियों के पक्षी मेरठ में प्रवास और प्रजनन करते हैं
- 86 ऐसी प्रजातियों के पक्षी हैं जो शीतकाल में आते हैं,लेकिन यहां प्रजनन नहीं करते
- 51 प्रजाति के पक्षी गर्मियों में आते हैं और यहीं प्रजनन करते हैं
- 12 प्रजातियां मूल रूप से उन पक्षियों की हैं जो सर्दियों में कुछ समय के लिए मार्ग में रुकते हैं
- 08 प्रजाति उन पक्षियों की हैं जिन्हें कभी-कभार देखा जाता है
- 03 प्रजाति के पक्षी गर्मी में यहां आते हैं और उनकी प्रजनन स्थिति अस्पष्ट है
- 18 प्रजातियों की स्थिति अस्पष्ट है।
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