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पड़ोस में पर्यटन: सिखों का ऐतिहासिक तीर्थ है सैफपुर गुरुद्वारा Meerut News

हस्तिनापुर कस्बे के समीप बसा गांव सैफपुर पंज प्यारे भाई धर्म सिंह जी की जन्म स्थली है जहां सिख समाज ने विशाल भव्य गुरुद्वारे का निर्माण किया गया है।

By Taruna TayalEdited By: Published: Wed, 25 Sep 2019 04:39 PM (IST)Updated: Wed, 25 Sep 2019 05:00 PM (IST)
पड़ोस में पर्यटन: सिखों का ऐतिहासिक तीर्थ है सैफपुर गुरुद्वारा Meerut News
पड़ोस में पर्यटन: सिखों का ऐतिहासिक तीर्थ है सैफपुर गुरुद्वारा Meerut News

मेरठ, जेएनएन। देश-धर्म की रक्षा के लिए बलिदान का जिक्र आते ही सिख धर्म का नाम जेहन में आता है। सिख धर्म का ऐसा ही पवित्र स्थान सैफपुर गांव में है। यह पंज प्यारे भाई धर्म सिंह का जन्म स्थान है। दूरदराज से श्रद्धालु यहां पहुंचकर सिखों की बहादुरी के इतिहास से रूबरू होते हैं। हस्तिनापुर कस्बे के समीप बसा गांव सैफपुर पंज प्यारे भाई धर्म सिंह जी की जन्म स्थली है, जहां सिख समाज ने विशाल भव्य गुरुद्वारे का निर्माण किया गया है। गुरुद्वारा साहिब की देखरेख करने वाले बाबा जोगेंद्र सिंह ने बताया कि गुरुद्वारे में शीश नवाने से पूर्व श्रद्धालु पवित्र सरोवर में स्नान करते हैं। यात्रियों के लिए 24 घंटे लंगर व ठहरने की सुविधा उपलब्ध है। भाई धर्म सिंह के नाम पर ही धर्मार्थ चिकित्सालय भी संचालित है, जिसमें निश्शुल्क दवा दी जाती हैं। गुरुद्वारा साहिब में प्रत्येक अमावस्या को जोड़ मेला आयोजित होता है।

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स्वर्णिम है भाई धर्म सिंह का इतिहास

जब अनंतपुर साहिब में सजे दीवान हाल में गुरु गोविंद सिंह ने सिख धर्म व देश की रक्षा के लिए पांच शीश की मांग की थी तो हाल में सन्नाटा छा गया था। काफी देर बाद दयाराम नाम का व्यक्ति खड़ा हुआ और उसने अपना शीश गुरु के चरणों में समर्पित करने के लिए प्रस्तुत किया। इसके बाद सैफपुर गांव निवासी भाई धर्म सिंह, जो अपने गांव से पैदल चलकर बैसाखी के दिन अनंतपुर साहिब पहुंचे थे, खड़े हुए और गुरु के समक्ष शीश भेंट करने के लिए प्रस्तुत किया। एक-एक कर पांच अनुयायी साथ आए और फिर यही पंज प्यारे कहलाए। इस तरह मेरठ की धरती का एक लाल सिखों के खालसा पंथ की स्थापना का न सिर्फ गवाह बना बल्कि इसे आगे बढ़ाने का काम किया। तभी गुरु गोविंद सिंह ने पंज प्यारो को अमृत छकाकर व स्वयं उनके हाथ से अमृत चखकर खालसा पंथ की सृजना की।

कौन थे भाई धर्म सिंह

भाई धर्म सिंह का जन्म संवत 1724 को सैफपुर गांव के संतराम के घर साभों की कोख से हुआ। वे 1735 में कलगीधर जी की शरण में आए और 32 वर्ष की उम्र में बैसाखी वाले दिन शीश भेंट कर क्षेत्र का नाम रोशन कर दिया। संवत 1795 में गुरुद्वारा नांदेड़ साहिब महाराष्ट्र में उनका देहांत हुआ।

वर्ष 2000 में रखी गई थी गुरुद्वारा साहिब की नींव

बाबा जोगेंद्र सिंह जी ने बताया कि कार सेवा वाले बाबा हरबंश सिंह की पावन प्रेरणा व सानिध्य से गुरुद्वारा साहिब का निर्माण लगभग वर्ष 2000 में प्रारंभ हो गया था। गुरुद्वारा के शुभारंभ के अवसर पर पंजाब के तत्कालीन सीएम प्रकाश सिंह बादल ने गुरुद्वारा साहिब में मत्था टेका था। उसके बाद पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरजीत सिंह बरनाला, मंत्री बलदेव ङ्क्षसह औलख आदि गुरुद्वारा साहिब में मत्था टेकने के लिए सैफपुर पहुंचे हैं।

ऐसे पहुंचें गुरुद्वारा साहिब

जनपद मुख्यालय से 40 किमी दूर तयकर महाभारतकालीन ऐतिहासिक नगरी हस्तिनापुर पहुंचते हैं। यहां से गुरुद्वारा साहिब लगभग 2.5 किमी की दूरी पर स्थित है। गुरुद्वारा साहिब जाने के लिए दो मार्ग हैं, एक हस्तिनापुर पहुंचने से पूर्व ही तथा दूसरा मुख्य बाजार के समीप से होकर जाता है। मेरठ से हस्तिनापुर के लिए रोडवेज बस सुगमता से मिल जाती है व हस्तिनापुर से गुरुद्वारा साहिब तक पहुंचने के लिए तांगा, ई रिक्शा आदि आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। 


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