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    भारतीय सेना में देशी नस्ल के श्वान... देश की रक्षा के लिए राजापलयाम और रामपुर हाउंड भी हुए शामिल

    Updated: Sun, 13 Jul 2025 12:27 PM (IST)

    भारतीय सेना में स्वदेशी श्वान नस्लों को शामिल किया जा रहा है जिनमें राजापलयाम और रामपुर हाउंड भी शामिल हैं। ये नस्लें जो कभी शाही परिवारों की सुरक्षा करती थीं अब देश की रक्षा में योगदान दे रही हैं। अपनी विशेष खूबियों और अनुशासित स्वभाव के कारण ये श्वान फौजी दस्ते के लिए उपयुक्त साबित हो रहे हैं। इनका प्रशिक्षण आरवीसी सेंटर एंड कॉलेज में किया जा रहा है।

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    देश की रक्षा में तैनात हो रहे शाही घरानों के श्वान रक्षक।

    अमित तिवारी, जागरण, मेरठ। भारत की सांस्कृतिक विरासत केवल मंदिरों और त्योहारों तक सीमित नहीं है, बल्कि देश की जमीन पर पले-बढ़े श्वानों की अनोखी नस्लें भी इसका गौरवशाली हिस्सा हैं। जहां एक ओर विदेशी नस्लों को घरों से लेकर भारतीय सेना के फौजी दस्तों तक प्राथमिकता मिलती रही है, वहीं अब भारत की पारंपरिक श्वान नस्लें फिर चर्चा में हैं।

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    इनमें भी ऐसी नस्लें जो एक समय शाही परिवारों की सुरक्षा करती थी, अब देश की रक्षा और सुरक्षा में भारतीय सेना के फौजी श्वान दस्ते में शामिल होकर अपना गौरव वापस ले रही हैं।

    आत्मनिर्भर भारत की दिशा में योगदान देती भारतीय सेना की फोर्स मल्टीप्लायर, आरवीसी सेंटर एंड कालेज ने इस ओर कदम बढ़ाया है। मुधोल हाउंड और चिप्पीपराई जैसी भारतीय श्वान नस्लों के सफल प्रशिक्षण के बाद अब राजापलयाम और रामपुर हाउंड हो भी सेना में शामिल किया गया है।

    रामपुर हाउंड को तो दवाब अहमद अली खान बहादुर ने अफगान हाउंड और इंग्लिश ग्रेहाउंड के प्रजनन से स्वदेसी नस्ल तैयार कराई थी जिसे रामपुर हाउंड नाम दिया गया। नवाब ने जंगली पशुओं से सुरक्षा और शिकार के लिए शिकारी कुत्तों का दल तैयार किया था। केंद्र सरकार ने वर्ष 2005 में रामपुर हाउंड पर डाक टिकट जारी किया था। मध्य प्रदेश पुलिस ने इस प्रजाति को अपने डाग स्क्वाड में शामिल किया है।

    इनकी विशेष खूबियां ही फौजी श्वानों के लिए जरूरी

    देशी श्वानों की इन चारों प्रजातियों में व्याप्त विशेष खूबियां ही इन्हें फौजी श्वान बनने के लिए योग्य बनाती हैं। इनका दुबला-पतला शरीर लेकिन बेहद चुस्ती, फूर्ति और आक्रामकता इन्हें विदेशी श्वानों से पूरी तरह अलग करती हैं। इनमें सूंघने की शक्ति, खोजी प्रवृत्ति इन्हें गार्ड और असाल्ट दोनों श्रेणी में खास बनाते हैं। स्वभाव में मुधोल हाउंड वफादार और रिजर्व है तो चिप्पीपराई स्वतंत्र और शांत रहता है। राजापलयाल साहसी और क्षेत्र को कंट्रोल करने वाला है तो रामपुर हाउंड सतर्क और अपनों के प्रति स्नेह का स्वभाव रखता है।

    सेना के फौजी श्वान दस्ते का हिस्सा बने राजापलयाम व रामपुर हाउंड

    प्रशिक्षण के दौरान इनकी रफ्तार वाहनों के पीछे दौड़ते हुए बहुत अच्छी मापी गई है। आरवीसी ने स्थापना दिवस पर मुधोल हाउंड की रफ्तार दिखाई भी थी जिसमें वह पलक झपकते ही घुड़सवारी के लिए इस्तेमाल होने वाली बाधाओं को लंबी छलांग में पार करते हुए निकल गया था। अन्य तीनों प्रजातियों की खूबियों को अभी तक सेना से बाहर प्रदर्शित नहीं किया गया है।

    दक्षिण से उत्तर भारत तक की ली जा रही नस्ल

    सेना के स्वदेशी फौजी श्वानों के दस्ते का पहला फौजी मुधोल हाउंड कर्नाटक के बागलकोट जिले के मुधोल क्षेत्र का है। इसकी ऊंचाई 66 से 74 सेमी और वजन 20 से 28 किलो होता है। चिप्पीपराई तमिलनाडु के पेरियार लेक, विरुधुनगर, मदुरै व शिवगंगा जिले में अधिक मिलता है। इसकी ऊंचाई 61 से 66 सेमी और वजन 15 से 20 किलो होता है। इसे फज्ञस्टेस्ट डाग ब्रीड भी कहा जाता है।

    राजापलयाम भी तमिलनाडु के विरुधुनगर जिले के राजापलशम शहर का है और उसी पर इसका नाम भी पड़ा। इसकी ऊचाई 64 से 76 सेमी और वजन 25 से 30 किलो होता है। इनसे अलग रामपुर हाउंड उत्तर प्रदेश के रामपुर का श्वान है। इसकी ऊचाई भी 64 से 86 सेमी और वजन 27 से 30 किलो तक रहता है। यह सभी बेहद अनुशासित होते हैं जिसके कारण इनके प्रशिक्षण बेहतर हो पा रहे हैं।

    ब्रीडिंग से ट्रेनिंग तक सब आरवीसी में

    आरवीसी सेंटर एंड कालेज के डॉग फैकल्टी में श्वानों की नई प्रजातियों को ब्रीडिंग से ट्रेनिंग यानी प्रजनन से प्रशिक्षण तक परखा जाता है। जन्म के कुछ समय बाद से अनुशासनात्मक प्रशिक्षण, फिर सामान्य प्रशिक्षण और उसके बाद विशेषज्ञता प्रशिक्षण पूरा होने के बाद श्वानों को फौजी दलों के साथ प्रशिक्षित कर ऑपरेशन के लिए तैयार किया जाता है।