सरहदों पर फौजी श्वानों का अहम योगदान,आरट्रैक में बढ़ेगी आरवीसी की जिम्मेदारी
सरहदों पर आरवीसी के फौजी श्वानों का भी महत्वपूर्ण योगदान है। अब आरट्रैक के मेरठ छावनी में आने से आरवीसी सेंटर एंड कालेज की जिम्मेदारी में भी बढ़ोत्तरी होने जा रही है।
मेरठ, [अमित तिवारी]। देश की सीमाओं की रक्षा के लिए सरहदों पर तैनात भारतीय सेना के जवानों के साथ ही रिमाउंट वेटनरी कोर (आरवीसी) सेंटर एंड कालेज के फौजी श्वानों का भी महत्वपूर्ण योगदान है। सरहदों के लिए विभिन्न भौगोलिक परिस्थितियों और मौसम के अनुरूप ही फौजी श्वानों को भी प्रशिक्षित किया जाता है।
प्रशिक्षण आरट्रैक की निगरानी में
सेना की जरूरतों के अनुरूप जवानों की ही तरह फौजी श्वानों की ट्रेनिंग का खाका भी आर्मी ट्रेनिंग कमांड (आरट्रैक) ही तैयार करता है। आरवीसी में होने वाली सभी ट्रेनिंग सीधे तौर पर आरट्रैक की निगरानी में ही होती है। अब आरट्रैक के मेरठ छावनी में आने से आरवीसी सेंटर एंड कालेज की जिम्मेदारी में भी बढ़ोत्तरी होने जा रही है।
हर तरह की ट्रेनिंग देखता है आरट्रैक
आरवीसी सेंटर की पूरी गतिविधियां आरट्रैक के अंतर्गत आती हैं। इनमें फौजी श्वानों की ट्रेनिंग के साथ ही घोड़ों व खच्चरों की ट्रेनिंग, ब्वायज स्पोर्ट्स कंपनी के कैडेटों की ट्रेनिंग और अन्य सैनिकों की ट्रेनिंग भी शामिल है। यहां होने वाली सभी ट्रेनिंग को आरट्रैक से ही अनुमोदन मिलता है। अब तक आरवीसी की ओर से पूरी रिपोर्ट शिमला भेजी जा रही है। इसमें विशेष तौर पर तरह-तरह की गुणवत्ता वाले फौजी श्वानों की ट्रेनिंग होती है जिसे दुर्गम परिस्थितियों में ड्यूटी कर रही सैन्य यूनिटों की जरूरतों के अनुरूप तैयार किया जाता है।
बढ़ेगी निगरानी और जिम्मेदारी भी
आरट्रैक के छावनी में आने पर जहां आरवीसी पर निगरानी बढ़ेगी वहीं जिम्मेदारी भी बढ़ेगी। आरट्रैक और रिमाउंट वेटनरी सर्विसेस की ओर से मिले दिशा निर्देश के अनुसार आरवीसी ने अपने स्तर की तैयारियां शुरू कर दी हैं। आरट्रैक के मेरठ आने पर आरवीसी के अफसरों की ड्यूटी भी ट्रेनिंग कमांड मुख्यालय कार्यालय में लगाई जाएगी। आरवीसी की तैयारियां भी ट्रेनिंग कमांड के दिसंबर तक मेरठ छावनी में आने को लेकर की जा रही हैं।
247 सालों से सेवारत है आरवीसी
पलासी के युद्ध में बंगाल आर्मी को शहजादा अली गौहर के खिलाफ युद्ध में प्रशिक्षित घोड़ों की जरूरत महसूस हुई। उसी समय बंगाल आर्मी ने मुगल हॉर्स खड़ी की। ले. विलियम फ्रेजर की अगुवाई में 31 अक्टूबर 1794 को बना पशु उन्नयन बोर्ड का गठन हुआ। जून 1795 में बिहार के पूसा में 20 घोड़ों व 400 घोड़ियों से घुड़साल बनी। वर्ष 1876 में इसे आर्मी रिमाउंट विभाग व हॉर्स ब्रीडिंग डिपार्टमेंट बनाया गया। बाद में बाबूगढ़ हापुड़ (1882), कर्नाल (1888) और अहमदनगर (1889) में सेंटर बने। वर्ष 1920 में 14 दिसंबर को आर्मी वेट कोर इंडिया की स्थापना हुई। वर्ष 1925 में इसका नाम इंडियन आर्मी वेट कोर पड़ा। वर्ष 1939 में विश्व युद्ध द्वितीय में घोड़ों की जगह टैंक व आर्टी ने ले ली।
होती है श्वानों की ब्रीडिंग भी
छावनी स्थित आरवीसी सेंटर में घोड़ों की केवल ट्रेनिंग होती है जबकि श्वानों की ब्रीडिंग भी यहीं पर होती है। डॉग ट्रेनिंग फैकल्टी के अंतर्गत संचालित डॉग ब्रीडिंग सेंटर में लेब्राडोर, जर्मन शेफर्ड और अब देशी ब्रीड मुधोल हाउंड की ब्रीडिंग और ट्रेनिंग भी होने लगी है। हर श्वान में प्राकृतिक रूप से सूंघने, सुनने और देखने के बेहद विकसित गुण होते हैं। उनमें साहस, जानने की उत्सुकता, रक्षात्मक प्रवृत्ति, अधीनता, काटने की प्रवृत्ति और सहनशीलता आदि गुण किसी में कम तो किसी में अधिक होते है। इन्हीं गुणों को परखने के लिए जन्म के तीन महीने बाद श्वानों का पप्पी एप्टीट्यूड टेस्ट (पैट) किया जाता है।
प्रशिक्षण आरट्रैक की निगरानी में
सेना की जरूरतों के अनुरूप जवानों की ही तरह फौजी श्वानों की ट्रेनिंग का खाका भी आर्मी ट्रेनिंग कमांड (आरट्रैक) ही तैयार करता है। आरवीसी में होने वाली सभी ट्रेनिंग सीधे तौर पर आरट्रैक की निगरानी में ही होती है। अब आरट्रैक के मेरठ छावनी में आने से आरवीसी सेंटर एंड कालेज की जिम्मेदारी में भी बढ़ोत्तरी होने जा रही है।
हर तरह की ट्रेनिंग देखता है आरट्रैक
आरवीसी सेंटर की पूरी गतिविधियां आरट्रैक के अंतर्गत आती हैं। इनमें फौजी श्वानों की ट्रेनिंग के साथ ही घोड़ों व खच्चरों की ट्रेनिंग, ब्वायज स्पोर्ट्स कंपनी के कैडेटों की ट्रेनिंग और अन्य सैनिकों की ट्रेनिंग भी शामिल है। यहां होने वाली सभी ट्रेनिंग को आरट्रैक से ही अनुमोदन मिलता है। अब तक आरवीसी की ओर से पूरी रिपोर्ट शिमला भेजी जा रही है। इसमें विशेष तौर पर तरह-तरह की गुणवत्ता वाले फौजी श्वानों की ट्रेनिंग होती है जिसे दुर्गम परिस्थितियों में ड्यूटी कर रही सैन्य यूनिटों की जरूरतों के अनुरूप तैयार किया जाता है।
बढ़ेगी निगरानी और जिम्मेदारी भी
आरट्रैक के छावनी में आने पर जहां आरवीसी पर निगरानी बढ़ेगी वहीं जिम्मेदारी भी बढ़ेगी। आरट्रैक और रिमाउंट वेटनरी सर्विसेस की ओर से मिले दिशा निर्देश के अनुसार आरवीसी ने अपने स्तर की तैयारियां शुरू कर दी हैं। आरट्रैक के मेरठ आने पर आरवीसी के अफसरों की ड्यूटी भी ट्रेनिंग कमांड मुख्यालय कार्यालय में लगाई जाएगी। आरवीसी की तैयारियां भी ट्रेनिंग कमांड के दिसंबर तक मेरठ छावनी में आने को लेकर की जा रही हैं।
247 सालों से सेवारत है आरवीसी
पलासी के युद्ध में बंगाल आर्मी को शहजादा अली गौहर के खिलाफ युद्ध में प्रशिक्षित घोड़ों की जरूरत महसूस हुई। उसी समय बंगाल आर्मी ने मुगल हॉर्स खड़ी की। ले. विलियम फ्रेजर की अगुवाई में 31 अक्टूबर 1794 को बना पशु उन्नयन बोर्ड का गठन हुआ। जून 1795 में बिहार के पूसा में 20 घोड़ों व 400 घोड़ियों से घुड़साल बनी। वर्ष 1876 में इसे आर्मी रिमाउंट विभाग व हॉर्स ब्रीडिंग डिपार्टमेंट बनाया गया। बाद में बाबूगढ़ हापुड़ (1882), कर्नाल (1888) और अहमदनगर (1889) में सेंटर बने। वर्ष 1920 में 14 दिसंबर को आर्मी वेट कोर इंडिया की स्थापना हुई। वर्ष 1925 में इसका नाम इंडियन आर्मी वेट कोर पड़ा। वर्ष 1939 में विश्व युद्ध द्वितीय में घोड़ों की जगह टैंक व आर्टी ने ले ली।
होती है श्वानों की ब्रीडिंग भी
छावनी स्थित आरवीसी सेंटर में घोड़ों की केवल ट्रेनिंग होती है जबकि श्वानों की ब्रीडिंग भी यहीं पर होती है। डॉग ट्रेनिंग फैकल्टी के अंतर्गत संचालित डॉग ब्रीडिंग सेंटर में लेब्राडोर, जर्मन शेफर्ड और अब देशी ब्रीड मुधोल हाउंड की ब्रीडिंग और ट्रेनिंग भी होने लगी है। हर श्वान में प्राकृतिक रूप से सूंघने, सुनने और देखने के बेहद विकसित गुण होते हैं। उनमें साहस, जानने की उत्सुकता, रक्षात्मक प्रवृत्ति, अधीनता, काटने की प्रवृत्ति और सहनशीलता आदि गुण किसी में कम तो किसी में अधिक होते है। इन्हीं गुणों को परखने के लिए जन्म के तीन महीने बाद श्वानों का पप्पी एप्टीट्यूड टेस्ट (पैट) किया जाता है।
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