RLD-SP Alliance: पहली बार सपा के गठबंधन संग नगर निकाय चुनाव लड़ेगा रालोद, शहर पार्टी बनने की ओर कदम
nagar nikay chunav अब शहरी पार्टी बनने को रालोद तैयार कर रही पांसे। प्रदेश में पहली बार सपा के गठबंधन के साथ नगर निकाय चुनाव लड़ेगी। देहात की पार्टी रालोद का पालिका पंचायतों में भी नहीं रहा दबदबा। नए सिरे बना रहे हैं रणनीति।

प्रदीप द्विवेदी, मेरठ। RLD SP Alliance चौधरी चरण सिंह के नाम और काम के बूते जब तक राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) आशीर्वाद पाती रही तब तक यह लोकसभा, विधानसभा ही नहीं निकाय चुनाव में भी अपनों को सीट पर बैठाने पर सफल होती रही। मेरठ नगर निगम जब कभी महानगर पालिका हुआ करती थी और उसके मुखिया का पद चेयरमैन हुआ करता था तब अयूब अंसारी चेयरमैन बने थे और इसी पार्टी के खाते में गिने जाते थे।
राजनीति ने चाल बदली
फिर समय ने करवट ली। राजनीति ने चाल बदली। महाभारत के समय की तरह रणनीतियां बनने लगीं तो सपा, बसपा और भाजपा का दौर शुरू हुआ। रालोद देहात की पार्टी बनकर रह गई और फिर ऐसा समयकाल घूमा कि देहात में भी चारों खाने चित्त होने लगी। पार्टी के मुखिया के तौर पर जब चौधरी जयंत सिंह को पार्टी की जिम्मेदारी मिली तो लोग उनमें चौधरी चरण सिंह का प्रतिबिंब देखने लगे।

देहात में उभर चुकी है रालोद
भाजपा जैसे वटवृक्ष से दूर रहकर अलग अस्तित्व बनाने की मांग करने लगे तो जयंत ने विधानसभा चुनाव 2022 में सपा का सहारा लिया। सपा-गठबंधन की सरकार तो नहीं बनी लेकिन मूर्छित पड़ी रालोद को संजीवनी मिल गई। एकदम से पार्टी उभर कर आ गई। महाभारत की इस धरती पर कभी चौसर खेले जाते थे तब समझदार लोग पांसे पर इतनी मेहनत करते थे कि फेंके तो दांव उन्हीं का पड़े। और रालोद अब देहात में उभर चुकी है इसलिए यह देहाती पार्टी की छवि से निकलकर शहरी पार्टी बनने को जी-जान लगाने को तैयार हो रही है।
बाद में किया गलती में सुधार
कोई रणनीति मानता है तो कोई भूल जब रालोद के प्रदेश अध्यक्ष रामाशीष राय बोले गए थे कि रालोद अलग चुनाव लड़ेगी। लेकिन उसके तीन दिन बाद गलती सुधारी गई और निकाय चुनावों के लिए बनाई गई पर्यवेक्षकों की टीम के सदस्य सुनील रोहटा के माध्यम से कहलाया गया कि निकाय चुनाव मिलकर लड़ेंगे। क्योंकि रालोद को सपा के सहारे शहरी लोगों की पसंद वाली पार्टियों की सूची में भी शामिल होने का सफर तय करना है।
2006 में गठबंधन होते-होते रह गया था
2006 में सपा और रालोद ने मिलकर चुनाव लड़ने की योजना बना ली थी लेकिन राजनीतिक कारणों से बात नहीं बन सकी। जिसके बाद नगर निगम में सपा ने कुल 80 वार्डों में 59 और रालोद ने 55 सीट पर उम्मीदवार उतारे। रालोद ने पांच सीटों पर निर्दलीय को समर्थन दिया। 30 वार्डों में अच्छी बढ़त लेकर रालोद प्रत्याशी अंत में धराशायी हो गए थे।
2017-2006 में रालोद ने उतारा था महापौर प्रत्याशी
महापौर पद पर रालोद ने 2006 में शाइस्ता को प्रत्याशी बनाया और उन्हें 8966 मत ही मिले। 2017 में अपने सिंबल पर सुशील की पत्नी संगीता को चुनाव लड़ाया। 9175 मत प्राप्त करके पांचवें पायदान पर रहीं। हालांकि इस बार जब गठबंधन से मैदान में उतरेगी तो सीट बंटवारे में महापौर सीट सपा के खाते में जाना लगभग तय माना जा रहा है।
पार्षदों, पालिका-पंचायत अध्यक्ष पद पर ऐसी रही स्थिति
2017 : नगर निगम में रालोद के सिर्फ एक पार्षद प्रत्याशी ने चुनाव जीता। मुस्लिम बहुल वार्ड 10 में विशाल चौधरी पार्षद बने। अधिकांश लोग किसान हैं जिसका लाभ मिला। रालोद का गढ़ माना जाने सिवालखास नगर पंचायत के अध्यक्ष का पद हिस्से में आया। करनावल नगर पंचायत अध्यक्ष का पद भी रालोद ने अपना माना क्योंकि यहां सिंबल से प्रत्याशी तो नहीं उतारा लेकिन समर्थन दिया था।
2012 : रालोद ने चुनाव में प्रतिभाग नहीं किया था।
2006 : नगर निगम में रालोद के सात पार्षद चुने गए थे। खरखौदा नगर पंचायत अध्यक्ष पद पर निर्दलीय ने रालोद प्रत्याशी को हरा दिया। नगर पंचायत दौराला को रालोद का गढ़ माना जाता था लेकिन निर्दलीय ने रालोद प्रत्याशी को कुचल दिया। सिवालखास नगर पंचायत के चेयरमैन तब कांग्रेस के मेराज बने थे। यह वही मेराज थे जिन्हें रालोद ने बच्चा संबोधित करते हुए टिकट नहीं दिया था।
इन सीटों पर रालोद को इस बार प्रदर्शन की उम्मीद
जाट बहुल नगर पालिका मवाना और नगर पंचायतों में बहसूमा, खिवाई, लावड़, दौराला, फलावदा, सिवालखास, हर्रा व करनावल में रालोद अपने गठबंधन के साथ अध्यक्ष बनने की संभावना जता रही है।

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