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QR कोड से पता करें क्रिकेट का बल्‍ला असली है या नकली, जानिए पूरा तरीका Meerut News

क्रिकेट के नकली बल्‍लों की भी खूब खरीदारी हो रही है। लेकिन बल्ले पर लगे क्यूआर कोड को स्कैन करते ही निर्माता कंपनी की पूरी कुंडली स्क्रीन पर खुल जाएगी।

By Prem BhattEdited By: Published: Sat, 30 Nov 2019 09:51 AM (IST)Updated: Sat, 30 Nov 2019 09:51 AM (IST)
QR कोड से पता करें क्रिकेट का बल्‍ला असली है या नकली, जानिए पूरा तरीका Meerut News
QR कोड से पता करें क्रिकेट का बल्‍ला असली है या नकली, जानिए पूरा तरीका Meerut News

मेरठ, [संतोष शुक्ल]। चमकदार कवर में रखे नकली बल्ले को कैसे पहचानें? क्रिकेटरों के सामने अब इस प्रश्न का सटीक जवाब हाजिर है। दुनिया की सबसे होनहार क्रिकेट इंडस्ट्री ने नया एप विकसित किया है। बल्ले पर लगे क्यूआर कोड को स्कैन करते ही निर्माता कंपनी की पूरी कुंडली स्क्रीन पर खुल जाएगी। क्रिकेट उत्पाद बनाने वाली दो अग्रणी इकाइयां एसजी और एसएस ने इस पर अमल शुरू कर दिया है। अन्य बड़ी कंपनियां भी अपने उत्पादों को सुरक्षा कवच देने जा रही हैं।

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मोबाइल स्क्रीन पर खुलेगी बल्ले की पूरी कुंडली

क्रिकेट बल्ला, गेंद, ग्लव्स व हेलमेट बनाने में मेरठ दुनिया का नंबर एक शहर है। लेकिन लंबे समय से ब्रांडेड बल्लों का डुप्लीकेशन होने से कारोबार पर असर पड़ा है। बल्लों की ऑनलाइन बिक्री से नकली उत्पादों को बढ़ावा मिला। एसजी कंपनी के मार्केटिंग डायरेक्टर पारस आनंद ने बताया कि बल्लों पर एक चिट लगाई जाएगी। इसमें क्यूआर कोड होगा, जिसे मोबाइल पर स्कैन करते ही ये डाउनलोड हो जाएगा। स्क्रीन पर कंपनी का नाम, उत्पादन की तिथि और कंपनी से बाहर आने का समय भी पता चल जाएगा। ऐसे में कोई भी दूसरी कंपनी एसजी के सामान का डुप्लीकेट नहीं कर पाएगी। पारस कहते हैं कि यह अन्य उत्पादों पर भी आजमाया जाएगा। एसएस के निदेशक जतिन सरीन ने भी क्यूआर कोड के जरिये डुप्लीकेशन रोकने का साफ्टवेयर विकसित कराया है। उन्होंने बताया कि एसएस के स्मार्ट लेबल पहचानना काफी सरल होगा। कोई एप डाउनलोड नहीं करना है।

असली या नकली होगी अब पहचान

पेटीएम, जेनरिक स्कैनर और स्योर स्कैनर नाम के तीन एप को सिर्फ मोबाइल से स्कैन करना होगा। कंपनी के होलोग्राम स्टिप के साथ पूरी जानकारी स्क्रीन पर आ जाएगी। नीचे फेक या जेन्यून निशान आएगा, जो बता देगा कि बल्ला नकली है या असली। एसजी ने अपनी गेंद पर भी क्यूआर कोड लगाना शुरू कर दिया है। पारस आनंद बताते हैं कि डुप्लीकेशन रोकने के लिए यह तकनीक जरूरी है। सभी उत्पादों को क्यूआर कोड से सुरक्षित किया जाएगा। एसएस के जतिन सरीन ने बताया कि सूरजकुंड के आसपास कश्मीर और इंग्लिश विलो में बड़े पैमाने पर डुप्लीकेशन हो रहा है।

लगा डुप्लीकेशन का घुन

स्पोर्ट्स सिटी के हुनर में डुप्लीकेशन का घुन लग गया है। क्रिकेट बल्ले, किट, गेंद एवं हेल्मेट समेत अन्य खेल उत्पाद बनाने के लिए दुनियाभर में मशहूर मेरठ में गत छह माह में बड़े पैमाने पर नकली सामान पकड़े गए हैं। खेल उद्यमियों की मानें तो ऑनलाइन बिक्री के जरिये नकली बल्लों के बाजार में पहुंचने से बड़े खेल ब्रांडों को बड़ा झटका लगा है। मेरठ, जम्मू और जालंधर को नकली खेल सामानों का हब माना जा रहा है।

पकड़े गए नकली बल्‍ले

खेलकूद कारोबारियों का कहना है कि ऑनलाइन कारोबार वाली कंपनियों ने कई बार नकली सामान बेचा। गत दिनों एसजी कंपनी के नकली बल्ले पकड़े गए। ऑनलाइन कारोबार वाली एजेंसियां बल्ला, गेंद, किट, हेल्मेट व ग्लब्स निर्माता कंपनियों के बजाय बाजार में बैठे स्टाकिस्ट से खरीद लेती हैं, जिससे नकली की गुंजाइश बढ़ती है। खेल उद्योग से जुड़े लोगों ने बताया कि मेरठ के सूरजकुंड क्षेत्र में बड़ी कंपनियों के नकली स्टीकर, नकली बल्ले, गेंद, ग्लव्स व किट बनाए जा रहे हैं। 2009 में मेरठ की बड़ी क्रिकेट कंपनियों ने जालंधर में छापेमारी कराई, जहां मेरठ के कई ब्रांडों के डुप्लीकेट सामान पकड़े गए। मेरठ के उद्यमियों ने वाद भी दायर कराया, लेकिन काला धंधा नहीं रुका। इस वजह से इंडस्ट्री को बड़ा घाटा हो चुका है।

अंडमान के केन से बनाते हैं हैंडल

नकली बल्ला बनाने में अंडमान के केन, एक प्रकार की भरी हुई लकड़ी का प्रयोग होता है, जबकि ब्रांडेड कंपनियां सिंगापुर और मलेशिया से केन मंगाती हैं। 20 फुट लंबे केन का दाम करीब 700 रुपये होता है जबकि डुप्लीकेट बनाने वाले इसे अंडमान से तीन सौ रुपये में मंगाते हैं। उद्यमियों ने बताया कि दुकान पर ग्राहक इसे डी कहकर मांगते हैं।

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