Hastinapur Wetlands : हल्की धुंध के बीच प्रवासी पक्षियों का कलरव, धरती पर भोजन की तलाश...विहार के लिए उन्मुक्त आकाश
हस्तिनापुर की दलदली भूमि में प्रकृति का अद्भुत नजारा देखने को मिला है, जहाँ मेहमान परिंदों का आगमन हुआ है। विभिन्न प्रजातियों के पक्षी यहाँ आकर इस स्थान की सुंदरता बढ़ा रहे हैं। दूर-दूर से आए ये पक्षी यहाँ भोजन और आश्रय की तलाश में आते हैं, जिससे यह पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बन गया है।

हस्तिनापुर की एक झील के पानी में तैरता प्रवासी पक्षियों का झुंड। सौ. वन विभाग
जागरण संवाददाता, मेरठ। नवंबर से मार्च माह तक भोर में हस्तिनापुर सेंक्चुरी की झीलों के किनारे जाएंगे तो लगेगा कि प्रकृति ने अपने पर्दे खोल दिए हैं। सामने फैली वेटलैंड पर हल्की धुंध। उसी के बीच सैकड़ों प्रवासी पक्षियों का गूंजता कलरव। कहीं पिनटेल डक पानी की सतह चीरते दिखाई देते हैं, तो कहीं बार हेडेड गीज अपने विशाल पंख फैलाकर क्षितिज की ओर उड़ान भरते हुए। कुछ पक्षी झील के उथले किनारों पर भोजन तलाशते मिलेंगे। हर हलचल, हर पंख की फड़फड़ाहट मानो किसी अनकहे संगीत का हिस्सा हो।
पास में बने वाच टावर से नीचे झांककर देखने पर लगता है कि दलदली जमीन झील है और उसमे साइबेरिया, रूस, कजाकिस्तान और जापान से आए रंग-बिरंगे परिंदे अठखेलियां करते दिखेंगे। पक्षियों का एक साथ झुंड बनाकर बैठना, एक साथ उड़ान भरना और उनका सामूहिक स्वर मनमोहक होता है। जैसे-जैसे सूर्यदेव रोशनी फैलाने लगते है तो इनकी संख्या भी कम होने लगती है। यह प्रवासी पक्षी हर वर्ष बढ़ती ठंड के कारण अपने देश को छोड़कर हस्तिनापुर की इन झीलों, दलदली जमीनों में आते हैं और करीब चार माह बाद लौट जाते हैं। आइए विस्तार से जानते हैं इन प्रवासी पक्षियों के बारे में। पेश है एक रिपोर्ट...

हजारों किलोमीटर का सफर तय करके आते हैं प्रवासी पक्षी
जब प्रवासी पक्षी अपने समूह के साथ अपने गंतव्य के लिए आसमान में उड़ान भरता है तो अपनी यात्रा के साथ-साथ प्रकृति की लय, ऋतु परिवर्तन और सह-अस्तित्व का अद्भुत संगम लेकर चलते है। ये पक्षी रूस, अफ्रीका, जापान, साइबेरिया, कजाकिस्तान, चीन, भूटान आदि देशों से हजारों किलोमीटर का सफर तय करके आते हैं। ऐसा लगता है ये पक्षी इंसानों को सिखा रहे हों कि प्रकृति में न कोई सीमा है, न कोई बंधन।
प्रत्येक पक्षी की हर उड़ान में विज्ञान, कौशल और सौंदर्य का खजाना छिपा होता है। कुछ पक्षी पूरे वर्ष दिखाई देते है‚ जिन्हें हम अप्रवासी पक्षी के नाम से जानते है। कुछ पक्षी शीतकाल में आते है और गर्मी के प्रारंभ ही अपने देशों को वापस लौट जाते हैं। जिन्हें प्रवासी पक्षी कहते है। कुछ अपना जीवन एक ही स्थान पर व्यतीत करना पसंद करते हैं। हालांकि, प्रतिकूल जलवायु परिस्थितियां कुछ पक्षियों को सर्दियों में उपलब्ध भोजन की कमी से बचने के लिए समय-समय पर अपना आवास बदलने के लिए मजबूर करती हैं।
प्रवासी पक्षी कौन हैं... और क्यों करते हैं प्रवास
वर्ल्ड वाइड फंड फार नेचर (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) के वरिष्ठ परियोजना अधिकारी व पक्षी विशेषज्ञ हरिमोहन मीणा ने बताया कि पक्षी उत्तर से दक्षिण और कुछ पक्षी पूर्व पश्चिम की ओर प्रवास करने जाते है। लंबी उड़ान भरते हुए ये दूसरे देशों में भी पहुंच जाते है। इसलिए इन पक्षियों को प्रवासी पक्षी कहा जाता है।
पक्षियों का प्रवास मुख्यत मौसम‚ भोजन की तलाश व प्रजनन स्थल के लिए होता है। यह प्रक्रिया प्रतिवर्ष होनी स्वाभाविक है। सर्दियों के मौसम में हस्तिनापुर सेंक्चुरी में भी विभिन्न दलदली झीलों में प्रवासी पक्षियों का आगमन होता है।

चार माह तक जमाते हैं डेरा
प्रभागीय निदेशक वानिकी वंदना फोगाट ने बताया कि शरीर के अनुकूल मौसम न मिलने की वजह से ही पक्षी प्रवास के लिए निकलते हैं, जैसे ही मौसम अनुकूल हो जाता है तो लौट जाते हैं। उन्होंने बताया कि नवंबर के प्रथम सप्ताह से प्रवासी पक्षियों का हस्तिनापुर की दलदली झीलों में आना शुरू हो जाता है और लगभग चार माह का प्रवास करने के बाद अप्रैल के प्रथम सप्ताह तक प्रवास करने के बाद पक्षी उसी रास्ते से लौट जाते हैं।
8500 मीटर ऊंचाई तक उड़ते हैं पक्षी
हरिमोहन मीणा के अनुसार, प्रवासी पक्षियों में बार हेडेड गीज सर्दियों के मौसम में हिमालय की लगभग 8500 मीटर ऊंची चोटियों को छूकर उत्तरी भारत में प्रवास के लिए पहुंचता है। हस्तिनापुर सेंक्चुरी में भी इसकी भरमार रहती है। बार हेडेड गीज के उड़ने की गति 300 किमी प्रति घंटा तक होती है। इसके खून में एक विशेष प्रकार का अमीनो एसिड होता है, जो काफी ठंडे स्थानों पर रहने में सहायक होता है। यह बिना रुके लगभग 800 किमी की यात्रा कर सकते है यानि तिब्बत से उड़ान भरकर हिमालय की चोटियों से होते हुए भारत पहुंच जाते हैं।
सामान्यत: ये आते है प्रवासी पक्षी
पिनटेल डक, नोर्दन स्वालर, बार हेडेड गीज, ग्रे लेग गूज, मलार्ड, बहामनी डक, ब्लैक नेक्ड स्टार्क, यूरेशियन करल्यू, पालस गुल अटैक, कामन पोचार्ड, पाइड एवोसेट, कॉटन टील, टपटेड पोचार्ड समेत हर वर्ष लगभग 50 से 70 प्रजाति के पक्षी हस्तिनापुर सेंक्चुरी में आते हैं।
क्या होते हैं वेटलैंड प्रवासी पक्षी
नमी या दलदली भूमि वाले क्षेत्र को आर्दभूमि या वेटलैंड कहा जाता है। ये वो क्षेत्र होते हैं, जहां भरपूर नमी पाई जाती है। इसके कई लाभ हैं। यह पानी को प्रदूषण मुक्त बनाती है। यह वह क्षेत्र होते हैं, जहां वर्ष भर आंशिक रूप से या पूर्णतः पानी भरा रहता है। अधिक संख्या में कीड़े-मकौड़े होने के कारण पक्षियों को पेटभर भोजन भी मिलता है।
सेंक्चुरी में कई प्रकार के भोजन
प्रभागीय निदेशक वानिकी वंदना फोगाट कहती हैं कि विदेशी पर्यटक पक्षियों को पसंद आने वाले कई प्रकार के भोजन उन्हें हस्तिनापुर सेंक्चुरी में मिल जाते हैं। झील में दर्जनभर किस्म की घास की उपलब्धता है। इनमें तमाम कीड़े पनपते हैं। मेहमान पक्षियों के लिए इतने प्रकार के व्यंजन देश के अन्य किसी दलदली जगहों में उपलब्ध नहीं हैं।

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।