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    Raja Deendayal Story: सरधना में जन्मे थे देश के पहले पेशेवर फोटोग्राफर, उनके सम्मान में डाक टिकट भी हुआ जारी

    Updated: Fri, 15 Aug 2025 09:30 PM (IST)

    मेरठ के सरधना में जन्मे राजा दीनदयाल देश के पहले पेशेवर फोटोग्राफर थे। उन्होंने रुड़की से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की और इंदौर में नौकरी करते हुए फोटोग्राफी शुरू की। उनकी प्रतिभा से प्रभावित होकर उन्हें राजा-महाराजाओं और अंग्रेजों से सम्मान मिला। उन्होंने कई स्टूडियो स्थापित किए और उनके चित्रों को आज भी सराहा जाता है। उनके नाम से डाक टिकट भी जारी किया गया है।

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    सरधना में जन्मे थे देश के पहले पेशेवर फोटोग्राफर राजा दीनदयाल

    अनुज शर्मा, मेरठ। यह बात मेरठ जनपद के छोटे से कस्बे सरधना के लिए बड़े ही सम्मान की है कि जो व्यक्ति देश का पहला पेशेवर फोटोग्राफर घोषित हुआ वह यहीं की मिट्टी में जन्मा था। एक जौहरी परिवार में जन्म लेकर इंदौर में सेंट्रल इंडिया एजेंसी के लोक निर्माण विभाग में सर्वेक्षक के पद पर तैनात दीनदयाल ने कैमरे से ऐसा कमाल कर दिखाया कि मुरीद राजा, महाराजा से लेकर अंग्रेज अधिकारियों तक को अपनी मुरीद बना लिया। उनकी कला को विभिन्न उपाधियों और सम्मान से नवाजा गया।

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    रुड़की से इंजीनियरिंग, इंदौर में नौकरी

    राजा दीनदयाल द्वारा खींचे गए दुर्लभ फोटो आज भी लोगों को आश्चर्यचकित करते हैं। उन्होंने धार्मिक, ऐतिहासिक स्थलों से लेकर उस समय के राजा, महाराजा और अंग्रेज अफसरों की भी तस्वीरें तैयार कीं। सरधना में वर्ष 1844 में उन्होंने एक जौहरी परिवार में जन्म लिया।

    वर्ष 1866 में रुड़की से सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की और इंदौर में सरकारी सेवा में प्रवेश किया। उन्हें सेंट्रल इंडिया एजेंसी के लोक निर्माण विभाग में सर्वेक्षक के पद पर नौकरी मिली। यहीं पर उन्होंने कैमरा थामा। उनकी फोटोग्राफी से प्रसन्न होकर महाराजा तुकोजी राव द्वितीय ने उन्हें सर हेनरी डेली से मिलवाया था।

    हैदराबाद के राजा से मिली राजा की उपाधि

    सर हेनरी डेली की मदद से उन्होंने इंदौर में अपना स्टूडियो स्थापित किया। 1876 में प्रिंस आफ वेल्स की यात्रा की तस्वीरें लेने का काम उन्हें सौंपा गया। 1878 में राजा दीन दयाल ने सांची के महान स्तूप का दस्तावेजीकरण किया। 1885 में इनकी नियुक्ति भारत के वॉयसराय के फोटोग्राफर के तौर पर हुई थी।

    1887 में दीन दयाल महारानी के फोटोग्राफर बन गए। उन्होंने इंदौर में 1870 के दशक के मध्य, सिकंदराबाद में 1886 और मुंबई में 1896 में स्टूडियो की स्थापना की। हैदराबाद के निजाम ने उन्हें राजा की मानद उपाधि प्रदान की।

    इसी समय दयाल ने हैदराबाद में फर्म राजा दीन दयाल एंड संस की स्थापना की। हैदराबाद के छठे निजाम महूबूब अली खान ने इन्हें मुसव्विर जंग राजा बहादुर का खिताब दिया था। उन्हें 1897 में क्वीन विक्टोरिया से रायल वारंट प्राप्त हुआ था। लाला दीन दयाल के स्टूडियो के 2857 निगेटिव ग्लास प्लेट को 1989 में इंदिरा गांधी नेशनल सेंटर फार आर्ट, नई दिल्ली द्वारा खरीदा गया था।

    वंशज बचे न संपत्ति के अवशेष

    सरधना कसबे में वर्तमान में राजा दीनदयाल का कोई वंशज नहीं है। न ही किसी संपत्ति का कोई अवशेष यहां बचा है। फिर भी कस्बे के लोग उनके नाम पर गर्व करते हैं।

    101 वर्ष बाद डाक टिकट पर आए दीनदयाल

    राजा दीनदयाल का निधन वर्ष 1905 में हुआ। उनके फोटो संग्रह को वर्ष 2006 में हैदराबाद महोत्सव के दौरान सालार जंग संग्रहालय में प्रदर्शित किया गया। जिसके बाद नवंबर 2006 में डाक विभाग ने उन्हें सम्मान दिया। उनके नाम से एक डाक टिकट जारी किया गया।