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    भारत छोड़ो आंदोलन : आह्वान होते ही उबल पड़ा मेरठ, भामौरी ने देखा मिनी जलियावाला

    By Taruna TayalEdited By:
    Updated: Tue, 09 Aug 2022 03:10 PM (IST)

    मुंबई में आठ अगस्त 1942 की शाम को नौ अगस्त से अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन शुरू करने की घोषणा हुई और उसका संदेश जैसे ही मेरठ को मिला यहां के रणबाकुरों की भुजाएं ब्रितानिया हुकूमत के खिलाफ उठ खड़ी हुईं।

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    भारत छोड़ो आंदोलन : आठ अगस्त 1942 की शाम से ही शुरू हो गई थी गिरफ्तारी।

    मेरठ, प्रदीप द्विवेदी। मुंबई में आठ अगस्त 1942 की शाम को नौ अगस्त से अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन शुरू करने की घोषणा हुई और उसका संदेश जैसे ही मेरठ को मिला, यहां के रणबाकुरों की भुजाएं ब्रितानिया हुकूमत के खिलाफ उठ खड़ी हुईं। नौ अगस्त को इस आंदोलन को व्यापक स्तर जिसके पास जो भी संदेश का माध्यम था, उससे क्रांतिकारियों तक पहुंचा दिया गया। देखते-देखते आंदोलन उग्र हो उठा तो उधर तमतमाए बैठे अंग्रेज सैनिकों ने क्रूरता से इसे कुचलना शुरू कर दिया। उसी दिन से गिरफ्तारी शुरू हो गईं। इस आंदोलन पर मेरठ की भागीदारी, गिरफ्तारी, योगदान आदि पर तमाम दावे अलग-अलग स्तर पर किए जाते हैं।

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    जानकार सुनाते हैं दास्तां

    सरकारी दस्तावेज और किताबों में तथ्य अलग हैं तो इतिहास के जानकार भी अलग दास्तां सुनाते हैं। बहरहाल, हम आधिकारिक पुष्टि के बजाय यह बताने का प्रयास कर रहे हैं कि जिनका भी योगदान किसी भी माध्यम से हम सबके सामने है, उस पर हमें भ्रमित हुए बिना गर्व करना चाहिए। उन्हें नमन करना चाहिए। उप्र राजकीय अभिलेखागार में इनके नाम दर्जलखनऊ स्थित उप्र राजकीय अभिलेखागार में 50 आडियो टेप के माध्यम से स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की सूची 'स्मृति के पृष्ठ' नाम से तैयार की गई है। इसमें अलग-अलग आंदोलन के क्रांतिकारियों के नाम हैं। इसे ई-अभिलेखागार पोर्टल पर भी पढ़ा जा सकता है।

    भारत छोड़ो आंदोलन में मेरठ के क्रांतिकारियों के नाम निम्नवत हैं

    -बसंत सिंह भृंग -हस्तिनापुर-आचार्य दीपांकर शास्त्री-अनूप सिंह त्यागी-हर दत्त शास्त्री-जग मोहन शर्मा-चंद्रभान-श्रीदत्त त्रिपाठी-कांति प्रसाद भटनागर-बाबू राम त्यागी-राजेश्वर शास्त्री-होती लाल अग्रवाल-खचेंदी सिंह

    मेरठ में कई गिरफ्तारी, कई नेतृत्वकर्ता

    मोदीपुरम के डोरली स्थित दयानंद महाविद्यालय गुरुकुल इंटर कालेज के दस्तावेज के अनुसार यहां से आठ अगस्त 1942 की रात को पंडित शिव दयालू और आचार्य लेखराम शास्त्री को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया था। एक रिकार्ड बताता है कि जटपुरा निवासी पंडित बसंत लाल शर्मा को बम के साथ पकड़ा गया था, अंग्रेजी टुकड़ी पर बम फेंकने की योजना बना चुके थे। वह अंग्रेजी सेना में सूबेदार थे। उन्होंने इस आंदोलन को सफल बनाने के लिए सैनिकों को पर्चे भी बांटे थे। प्रो. विग्नेश त्यागी के अनुसार आठ अगस्त 1942 की शाम को पहली गिरफ्तारी शांति त्यागी की हुई। कैथवाड़ी गांव निवासी शांति त्यागी उस समय मेरठ कालेज में इस आंदोलन की रणनीति बनाकर निकली थीं। मेरठ जेल में उनके समेत पिता और माता को भी भेज दिया गया था। शांति त्यागी की गिरफ्तारी के खिलाफ छात्रों ने प्रदर्शन शुरू कर दिया। इसमें 90 छात्र गिरफ्तार हुए जिनमें 61 लड़कियां थीं।

    असौड़ा रियासत के राजा ने की अगुवाई

    एक दस्तावेज बताता है कि असौड़ा रियासत के राजा चौधरी रघुवीर नारायण सिंह ने नौ अगस्त के आंदोलन की अगुवाई की थी। उनकी गिरफ्तारी हुई। उनकी मदद करने पर झड़ीना के जमींदार और तहसीलदार चौाधरी अतर सिंह व चौधरी देवी शरण त्यागी भी जेल भेज दिए गए। चिरंजीव सिन्हा की रक्त का कण- कण समर्पित किताब में लिखा गया है कि मेरठ में इस आंदोलन का संचालन कैलाश प्रकाश ने किया तथा मवाना में ठाकुर रुमाल सिंह ने किया। नौ अगस्त को मवाना टाउन स्कूल में जुलूस निकालकर बड़ी सभा की गई। इस सभा में पुलिस अधीक्षक ग्लैन और थाना इंचार्ज जुल्फिकार पहुंच गए। थाना इंचार्ज द्वारा गोलियां चलाई गईं और लाठियां बरसाई गईं। उस दिन उन्हें गिरफ्तार नहीं कर पाई, लेकिन दो-तीन दिन बाद एक सभा से उन्हें पकड़ लिया गया और अंग्रेजी सैनिक ने उन्हें अपने घोड़े पर बैठाकर हाथ-पैर बांधकर पूरे गांव में घुमाया फिर जेल में डाल दिया। उनके गांव को बागी घोषित करके पूरे गांव पर भारी जुर्माना लगाया गया।

    इन्‍होंने बताया...

    इतिहासविद डा. केडी शर्मा बताते हैं कि इस आंदोलन के तहत सरकारी इमारतों का बहिष्कार शुरू हुआ। यह आंदोलन कई दिनों तक चलता रहा। 18 अगस्त को भामौरी में एक सभा में शामिल क्रांतिकारियों के सीने पर गोलियां बरसा दी गईं, क्रांतिकारियों के शवों को गायब कर दिया। जिसे मिनी जलियावाला बाग कांड कहा गया। उन्होंने बताया कि उस दिन जब मेरठ कालेज में सभा और यज्ञ का आयोजन हुआ था तब शांति त्यागी, राजेंद्र बागिया, धर्मदिवाकर आदि गिरफ्तार हुए। वहीं छावनी क्षेत्र में वीरबाला पुलिस की फायरिंग में बलिदान हो गईं।