भावुक कर देगी सहारनपुर के इस बुजुर्ग की कहानी, वजन तौलने की मशीन से चलाते हैं पूरे परिवार का खर्च, नहीं लेते किसी से मदद
यूपी के सहारनपुर के इस बुजुर्ग की कहानी सुन आप भावुक हो जाएंगे। ये उम्र के आखिरी पड़ाव पर गंभीर रूप से बीमार होने पर भी अपने स्वाभिमान को नहीं बेचा और किसी से मदद भी नहीं ली। वजन तौलने की मशीन के सहारे पूरे परिवार का खर्च चलाते हैं।
सहारनपुर, जेएनएन। यूपी के सहारनपुर के इस बुजुर्ग की दास्तां सुन आप भावुक हो जाएंगे। बुर्जुग उम्र के अब आखिरी पड़ाव पर हैं लेकिन रोजी रोटी के लिए कभी अपने स्वाभिमान को नहीं बेचा और न ही किसी से मदद ली। उन्होंने वजन तौलने की मशीन को रोजी-रोटी का माध्यम बनाया है। गोपाल नगर, नुमाइश कैंप निवासी बलदेव राज अहूजा की उम्र 83 वर्ष है। गंभीर रूप से बीमार होने के बावजूद वे हर रोज वजन तौलने की मशीन लेकर बैंक के सामने बैठकर लोगों का इंतजार करते हैं। लंबे इंतजार के बाद शायद ही कोई वजन कराने आता है। कभी-कभी तो बलदेव को खाली हाथ लौटना पड़ता है।
एक हाथ में लाठी तो दूसरे हाथ में मशीन
बलदेव राज आहुजा हर दिन सहारनपुर के गोपाल नगर, नुमाइश कैंप से माधव नगर स्थित पंजाब नेशनल बैंक पहुंचते हैं। एक हाथ में लाठी तो दूसरे हाथ में वजन तौलने की मशीन इनके साथ रहता है। यहां पर स्थित बाइकों के बीच बैठकर बलदेव ग्राहकों का इंतजार करते हैं। गंभीर रूप से बिमार बुजुर्ग बतातें हैं किस सैकड़ों की संख्या में यहां लोग आते हैं। इनमें से बहुत कम की ही नजर इनपर पडती है। जो आते हैं, वे अपने इच्छा से वजन कर पैसे दे देते हैं। बुजुर्ग बतातें हैं कि इसके लिए कोई निर्धारित मुल्य नहीं है।
कभी-कभी लौटना पड़ता है खाली हाथ
बदलेव बतातें हैं कि कभी-कभी ऐसा होता है कि दिन भर में एक भी रुपया भी नहीं आता है। इस वजह से खाली हाथ ही लौटना पड़ता है। बलदेव बताते हैं कि दिनभर में कभी 20 या 50 रुपये तक मिल जाता है। इसी पैसे से खर्च चल जाता है। वे कहते हैं कि अगर कोई मदद करेगा तो उसे कभी तो लौटाना ही पड़ता है। चाहे इस जन्म में या अगले जन्म में। इसी कारण से ये किसी से मदद नहीं लेते।
पूरे परिवार की उठा रहे जिम्मेदारी
बलदेव राज भावुक होकर बताते हैं कि कुछ वर्ष पूर्व उनके युवा पुत्र की हार्ट अटैक से मौत हो गई थी। परिवार में दो बेटे और एक बिमार पत्नी भी है, जिसकी जिम्मेदारी बलदेव उठाते हैं। बदलेव ने बताया कि पुत्र की इच्छा थी कि मरने के बाद उसके नेत्रदान कर दिए जाएं। जब इन्होंने ऐसा किया तो संस्था ने इन्हें पैसे देना चाहा, पर इन्होंने नहीं लिया। इन्होंने अपने स्वाभिमान को कायम रखने के लिए मशीन का सहारा लिया है।