लोकसभा चुनाव 2019 : रेल हो या बस सिर्फ चुनावी चर्चा,जानिए क्या चल रहा लोगों के मन में
इन दिनों चौपाल से चौपले तक और रेल से बसों तक जहां कहीं भी देख लीजिए लोगों की जुबां पर सिर्फ चुनावी की चर्चा ही है। यात्रा के दौरान लोग अपने मन की बात ...और पढ़ें

मेरठ, [संदीप शर्मा]। चुनावी माहौल में हर ओर हवा सियासी हो चुकी हैं। चौपाल से चौपले तक,रेल से बस तक चर्चा चुनावी ही है। दैनिक जागरण मतदाताओं के बीच जाकर उनके ‘मन की बात’सुन रहा है। जागरण संवाददाता ने मुजफ्फरनगर से मेरठ तक रोडवेज बस में सफर किया और यात्रियों की चुनावी बहस में हिस्सा लिया।
नेताओं को अपनी सीट से मतलब
शाम को साढ़े छह बजे मुजफ्फरनगर रोडवेज बस स्टैंड से भैंसाली डिपो की बस मेरठ के लिए चलने को तैयार थी। बस सवारियों से करीब-करीब भरी हुई थी। बस की सीट ठीक नहीं होने पर एक यात्री ने तंज कसते हुए कहा कि ‘नेताओं को बस अपनी सीट’से मतलब है। जनता की सीट चाहे फटी क्यों न हो। धीरे-धीरे चर्चा पीएम बनाम विपक्ष पर आ जाती है। तीन यात्रियों वाली सीट पर बैठे इकबाल सिंह कहते हैं कि मोदी का रैली का फॉर्मूला गजब था। मेरठ में ऐसी जगह रैली की,जहां प्रशासनिक दृष्टि से मेरठ शहर और लोकसभा क्षेत्र मुजफ्फरनगर है।
चुनाव जनसमस्याओं पर हो
उनकी बराबर में बैठे युवा राहुल ने कहा कि भारत में संसदीय प्रणाली में चुनाव मुद्दों और जनसमस्याओं पर होना चाहिए, लेकिन सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों व्यक्ति केंद्रित चुनाव लड़ रहे हैं। आगे वाली सीट पर बैठे कृष्णवीर ने कहा कि वेस्ट यूपी के नेताओं में दम ना है। ये तो सारे के सारे पिछलग्गू हैं। नहीं तो अभी तक हाईकोर्ट बेंच बन जाती। हमैं इतनी दूर इलाहाबाद लो धक्के ना खाणो पड़ते। दो यात्रियों वाली सीट पर बैठे दिलशाद अहमद ने कहा कि वेस्ट यूपी में हाईकोर्ट बेंच तो कभी की बन जाती,लेकिन यहां नेता जाति-धर्म के नाम पर मतदाताओं में फूट डालते हैं। इसके बाद सारे वास्तविक मुद्दे दरकिनार हो जाते हैं। खतौली आते ही कई यात्री उतर जाते हैं।
दिल पर हाथ रखकर कहो,गुंडागर्दी कम हुई कि नहीं
चर्चा में धीरे-धीरे करीब आधी सवारियां शामिल होने लगते हैं। बात कानून-व्यवस्था और महिला सुरक्षा पर आ टिकती है। बुजुर्गवार बालकिशन कहते हैं कि भाई दिल पर हाथ रखकर कहो कि प्रदेश की वर्तमान सरकार में गुंडागर्दी कम हुईं कि नहीं। योगी सरकार में कितने एनकाउंटर हुए बदमाशों के। तभी आवाज आई कि ताऊजी यह लोकसभा का चुनाव है, विधानसभा का नहीं। भाई चुनाव कोई सा भी हो। पार्टी तो वही है।
सरकारी महिलाकर्मियों की नियुक्ति घर के पास हो
बड़े ध्यान से बात सुन रहे युवा अरुण ने कहा कि पिछली सरकारों में रिपोर्ट दर्ज नहीं होती थी। इसलिए कागजों में अपराध नहीं था। आज अधिकतर मामलों में रिपोर्ट दर्ज हो जाती है। महिला कल्पना सिंह ने कहा कि बाकी सब तो ठीक है, लेकिन सरकारी महिलाकर्मियों की नियुक्ति घर के पास ही होनी चाहिए। इतना सुनते ही बराबर में बैठी दूसरी महिला अर्चना शर्मा ने कहा कि सरकार तो बात-बात में कहती है कि ‘बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ’। घनश्याम फसलों के वाजिब दाम और खेती-किसानी की बात करते हैं तो सभी लगे हाथ उनका समर्थन भी कर देते हैं।
नेताओं को अपनी सीट से मतलब
शाम को साढ़े छह बजे मुजफ्फरनगर रोडवेज बस स्टैंड से भैंसाली डिपो की बस मेरठ के लिए चलने को तैयार थी। बस सवारियों से करीब-करीब भरी हुई थी। बस की सीट ठीक नहीं होने पर एक यात्री ने तंज कसते हुए कहा कि ‘नेताओं को बस अपनी सीट’से मतलब है। जनता की सीट चाहे फटी क्यों न हो। धीरे-धीरे चर्चा पीएम बनाम विपक्ष पर आ जाती है। तीन यात्रियों वाली सीट पर बैठे इकबाल सिंह कहते हैं कि मोदी का रैली का फॉर्मूला गजब था। मेरठ में ऐसी जगह रैली की,जहां प्रशासनिक दृष्टि से मेरठ शहर और लोकसभा क्षेत्र मुजफ्फरनगर है।
चुनाव जनसमस्याओं पर हो
उनकी बराबर में बैठे युवा राहुल ने कहा कि भारत में संसदीय प्रणाली में चुनाव मुद्दों और जनसमस्याओं पर होना चाहिए, लेकिन सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों व्यक्ति केंद्रित चुनाव लड़ रहे हैं। आगे वाली सीट पर बैठे कृष्णवीर ने कहा कि वेस्ट यूपी के नेताओं में दम ना है। ये तो सारे के सारे पिछलग्गू हैं। नहीं तो अभी तक हाईकोर्ट बेंच बन जाती। हमैं इतनी दूर इलाहाबाद लो धक्के ना खाणो पड़ते। दो यात्रियों वाली सीट पर बैठे दिलशाद अहमद ने कहा कि वेस्ट यूपी में हाईकोर्ट बेंच तो कभी की बन जाती,लेकिन यहां नेता जाति-धर्म के नाम पर मतदाताओं में फूट डालते हैं। इसके बाद सारे वास्तविक मुद्दे दरकिनार हो जाते हैं। खतौली आते ही कई यात्री उतर जाते हैं।
दिल पर हाथ रखकर कहो,गुंडागर्दी कम हुई कि नहीं
चर्चा में धीरे-धीरे करीब आधी सवारियां शामिल होने लगते हैं। बात कानून-व्यवस्था और महिला सुरक्षा पर आ टिकती है। बुजुर्गवार बालकिशन कहते हैं कि भाई दिल पर हाथ रखकर कहो कि प्रदेश की वर्तमान सरकार में गुंडागर्दी कम हुईं कि नहीं। योगी सरकार में कितने एनकाउंटर हुए बदमाशों के। तभी आवाज आई कि ताऊजी यह लोकसभा का चुनाव है, विधानसभा का नहीं। भाई चुनाव कोई सा भी हो। पार्टी तो वही है।
सरकारी महिलाकर्मियों की नियुक्ति घर के पास हो
बड़े ध्यान से बात सुन रहे युवा अरुण ने कहा कि पिछली सरकारों में रिपोर्ट दर्ज नहीं होती थी। इसलिए कागजों में अपराध नहीं था। आज अधिकतर मामलों में रिपोर्ट दर्ज हो जाती है। महिला कल्पना सिंह ने कहा कि बाकी सब तो ठीक है, लेकिन सरकारी महिलाकर्मियों की नियुक्ति घर के पास ही होनी चाहिए। इतना सुनते ही बराबर में बैठी दूसरी महिला अर्चना शर्मा ने कहा कि सरकार तो बात-बात में कहती है कि ‘बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ’। घनश्याम फसलों के वाजिब दाम और खेती-किसानी की बात करते हैं तो सभी लगे हाथ उनका समर्थन भी कर देते हैं।

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