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जब बच्चों ने एस्ट्रोनाट से किए सवाल..'क्या अंतरिक्ष में सोने को मिलता है'

चंद्रशेखर विज्ञान क्लब एवं विज्ञान प्रसार की मदद से आयोजित कार्यक्रम में शहर के 20 स्कूलों के छात्र-छात्राओं को इस खगोलीय घटनाक्रम से जुड़े कार्यक्रम में हिस्सा लेने का मौका मिला।

By Ashish MishraEdited By: Published: Fri, 24 Aug 2018 10:15 AM (IST)Updated: Fri, 24 Aug 2018 06:40 PM (IST)
जब बच्चों ने एस्ट्रोनाट से किए सवाल..'क्या अंतरिक्ष में सोने को मिलता है'
जब बच्चों ने एस्ट्रोनाट से किए सवाल..'क्या अंतरिक्ष में सोने को मिलता है'

मेरठ (जेएनएन)। 28 हजार किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से पृथ्वी का चक्कर लगा रहे इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (आइएसएस) के एस्ट्रोनॉट (अंतरिक्ष यात्री) रिक्की ऑर्नोल्ड गुरुवार को मेरठ के स्कूली बच्चों से रूबरू हुए। स्पेस स्टेशन में उनकी दिनचर्या, खान-पान, पसंद, ब्लैक होल और एलियन से जुड़े सवालों के जवाब पाकर बच्चों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। विद्या मंदिर इंटर कॉलेज में चंद्रशेखर विज्ञान क्लब एवं विज्ञान प्रसार की मदद से आयोजित कार्यक्रम में शहर के 20 स्कूलों के छात्र-छात्राओं को इस खगोलीय घटनाक्रम से जुड़े कार्यक्रम में हिस्सा लेने का मौका मिला।

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मेरठ में पहली बार आयोजित इस विशेष कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए बच्चे दो घंटे पहले ही पहुंच गए। लाइव स्ट्रीमिंग में आइएसएस अंतरिक्ष में विभिन्न देशों के ऊपर से गुजरता हुआ साफ दिख रहा था। आइएसएस एक बार पृथ्वी का चक्कर लगाकर लौटा। जब यह इटली के ऊपर से गुजरा तब इंटील के रेडियो स्टेशन के जरिए एस्ट्रोनॉट और बच्चों की बात कराई गई।

बारी-बारी से पूछे सवाल

एस्ट्रोनॉट से पूछे जाने वाले सवाल पहले ही रेडियो स्टेशन को भेजे जा चुके थे। रिहर्सल के बाद करीब 1.50 बजे एस्ट्रोनॉट रिक्की और बच्चों की बातचीत शुरू हुई। क्रम से पूछे गए बच्चों के सवालों का रिक्की ने जवाब दिया। रेडियो पर बच्चों की आवाज ठीक से एस्ट्रोनॉट तक पहुंचे, इसके लिए बातचीत से पहले इटली रेडियो स्टेशन ने रिहर्सल भी कराया।

रेडियो स्टेशन की जानकारी दी

विज्ञान प्रसार के वैज्ञानिक संदीप बरुआ ने बच्चों को रेडियो कम्युनिकेशन की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि हैम रेडियो का इतिहास करीब 180 साल पुराना है। इसकी पढ़ाई के बाद लाइसेंस लेकर कोई भी अपना रेडियो स्टेशन चला सकता है और सीधे आइएसएस के एस्ट्रोनॉट से बातचीत कर सकता है। इसी तरह के रेडियो के जरिए केरल जैसी बाढ़ के हालात में कम्युनिकेशन में मदद मिलती है। उन्होंने बताया कि भारत सरकार द्वारा लाइसेंस के साथ ही फ्रीक्वेंसी भी प्रदान की जाती है। उन्होंने क्लब की ओर से बच्चों को रेडियो कम्युनिकेशन पर एक किताब भी भेंट की।

पृथ्वी के 24 घंटे के बराबर हैं अंतरिक्ष के 90 मिनट

संदीप बरुआ ने बच्चों को बताया कि स्पेस की जिंदगी आरामदायक लगती है लेकिन असलियत में ऐसा नहीं है। आइएसएस आठ किलोमीटर प्रति सेकेंड की रफ्तार से पृथ्वी का चक्कर लगाता है। आइएसएस के एस्ट्रोनॉट हर दिन 16 सूर्योदय और सूर्यास्त देखते हैं। पृथ्वी के 24 घंटे अंतरिक्ष के 90 मिनट के बराबर होते हैं। यानी, पृथ्वी पर दिन-रात का समय 24 घंटे का माना जाता है जबकि आइएसएस दिन-रात के इस समय को 90 मिनट में ही तय कर लेता है। ऐसे में स्पेस में व्याप्त डेब्रिस से स्टेशन को बचाकर आगे बढऩा पड़ता है। जरूरत पडऩे पर इसे ऊपर-नीचे भी करना होता है। आइएसएस एक रीजन को 10-15 मिनट में पार करता है। इस दौरान ही उस रीजन में आने वाले देशों से संपर्क किया जा सकता है।

एरिश ने बच्चों को स्पेस से जोड़ा

नासा के पब्लिक आउटरीचिंग प्रोग्राम के अंतर्गत अमेचर रेडियो ऑन द इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (एरिश) के एरिश स्कूल कांटेक्ट के तहत बच्चों को एस्ट्रोनॉट से बात करने का अवसर मिला। यह वार्तालाप इटली के कैसल मोनफेराटो स्थित टेलीब्रिज ग्रांड स्टेशन (हैम रेडियो स्टेशन) के जरिए हुई। इटली से हैम रेडियो स्टेशन के जरिए विज्ञान प्रसार के वैज्ञानिकों ने विद्या मंदिर से कनेक्शन जोड़ा और फिर बच्चों ने आइएसएस एस्ट्रोनॉट रिक्की से सवाल पूछे।

बच्चे नहीं समझ पाए जवाब

एस्ट्रोनॉट रिक्की से बातचीत के दौरान उनकी आवाज साफ न होने के कारण बच्चों को सवालों के जवाब तुरंत समझ में नहीं आए। इसी बीच दो बजकर दो मिनट पर बिजली भी गुल हो गई, जिससे बाधा आई। बाद में रिकॉर्डिंग सुनकर उन्हें जवाब दिया गया। चंद्रशेखर विज्ञान क्लब के को-आर्डिनेटर संजय शर्मा ने कार्यक्रम का संचालन किया। स्कूल की प्रिंसिपल रंजना गौड़ ने धन्यवाद दिया।

एक नजर में आइएसएस

लांच : 20 नवंबर, 1998

स्थान : केनेडी स्पेस सेंटर, अमेरिका

लंबाई : 239 फीट

चौड़ाई : 365 फीट

ऊंचाई : 66 फीट

स्पीड : 28,800 किलोमीटर प्रति घंटा

एस्ट्रोनॉट से सवाल जवाब

रिक्की ने कुछ सवालों के यूं दिए जवाब

अंतरिक्ष यात्री बनने के लिए कितनी भाषाएं आनी चाहिए? -अरुण

रसियन और अंग्रेजी।

आइएसएस में कौन सा समय चलता है? -सुहाब

यहां ग्रीनविच मीन टाइम चलता है। भारत से साढ़े पांच घंटे का अंतर है।

क्या अंतरिक्ष में सोने का मौका मिलता है? -वैष्णवी

हां पर यह काम के शेड्यूल पर निर्भर करता है।

अंतरिक्ष में ठंड महसूस होती है या गर्मी? -रुद्राक्ष

स्पेस स्टेशन को आराम के हिसाब से व्यवस्थित रखते हैं।

अंतरिक्ष में कभी कोई एलियन या यूएफओ देखा है? -मुकुल

अभी तक नहीं दिखा है।

आपका पसंदीदा प्लेनेट कौन सा है? -रिजवान

बच्चों से बात करते समय पृथ्वी अच्छी लग रही है।

आप खाने को कैसे व्यवस्थित रखते हैं? -शालू

फूड वार्मर से खाना ठीक रहता है।

आपका सामान्य दिन कैसा होता है? -यशिका

यह एक टास्क है। कोई सामान्य दिन नहीं होता।

स्पेस में मस्ती के लिए क्या करते हैं? -तानिया

फोटोग्राफी।

आइएसएस पर जन्मदिन मनाते हैं? -सोनिया

नासा की ओर से मनाया जाता है।

-छुट्टियों में मेरठ आकर इस कार्यक्रम का पता चला तो खुद को रोक नहीं सका। यह मेरा पहला अनुभव है जब किसी एस्ट्रोनॉट से सवाल पूछा। अब आगे चलकर एस्ट्रोनोमी पढऩा चाहूंगा।

-रुद्राक्ष मित्तल, कक्षा नौ, लंदन वेलिंगटन काउंटी ग्रामर स्कूल

-अंतरिक्ष से जुड़े प्रोग्राम आकर्षित करते हैं। जैसे ही इस कार्यक्रम की जानकारी मिली में देहरादून से मेरठ चला आया। ऐसे कार्यक्रमों नई जानकारी मिली है जो काफी अच्छी रही।

-आदित्य गौड़, कक्षा नौ, दून इंटरनेशनल स्कूल, देहरादून

-मैंने पूछा उन्हें कौन सा देश अच्छा लग रहा हे। मुझे लगा उन्होंने इंडिया कहा। हमें शुभकामनाएं भी दी। ऐसे कार्यक्रम और अधिक होने चाहिए।

-अर्पिता, कक्षा नौ, विद्या मंदिर इंटर कॉलेज, मेरठ

-मैंने पूछा साथियों के साथ कैसा व्यवहार रहता है। आवाज कुछ कम समझ में आई लेकिन यह अनुभव जीवन भर याद रहेगा। अंतरिक्ष से लाइव बात करना यादगार रहा।

-कीर्ति, कक्षा नौ, विद्या मंदिर इंटर कॉलेज, मेरठ  


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