NIRF Ranking: कभी टाप-10 में था मेरठ मेडिकल कालेज... आज 93वें स्थान पर फिसला, जानिए वजह
नेशनल इंस्टीट्यूशनल रैंकिंग फ्रेमवर्क (एनआइआरएफ) की सूची में कभी टाप-10 में रहकर गर्व से इतराने वाला लाला लाजपत राय मेडिकल कालेज विडंबना देखिए कि अब ...और पढ़ें

जागरण संवाददाता, मेरठ। नेशनल इंस्टीट्यूशनल रैंकिंग फ्रेमवर्क (एनआइआरएफ) की सूची में कभी टाप-10 में रहकर गर्व से इतराने वाला लाला लाजपत राय मेडिकल कालेज, विडंबना देखिए कि अब 93 वें स्थान पर फिसल चुका है। इससे यहां के पुरातन छात्रों में चिंता है, कसक है। यह ऐसे पुरातन छात्र हैं, जिनके दौर में एलएलआरएम की साख देशभर में थी। सन 1978 में एमबीबीएस में प्रवेश लेने वाले वरिष्ठ काíडयोलोजिस्ट डा. राजीव अग्रवाल बाद में नई दिल्ली के जीबी पंत से डीएम काíडयो करने वाले पश्चिमी उप्र के पहले डाक्टर बने। सन 1990 में एमबीबीएस में प्रवेश लेकर एम्स से डीएम करने वाली डा. ममतेश गुप्ता और बालरोग विशेषज्ञ डा. अमित उपाध्याय ने भी मेरठ का मान-सम्मान दिल्ली तक बढ़ाया, देश तक पहुंचाया। दर्जनों अन्य डाक्टर पश्चिमी उप्र से लखनऊ तक चिकित्सा संस्थानों की रीढ़ हैं। वो बताते हैं कि तब एलएलआरएम रैंकिंग में टाप-10 में शामिल था। प्रदेश सरकार ने भी ध्यान नहीं दिया, वहीं फैकल्टी व इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी ने चिकित्सा की गुणवत्ता गिरा दी। एमबीबीएस की सीटों को 150 से घटाकर सौ कर दिया था।

कई विभागों में प्रोफेसर ही नहीं
एमसीआई के मानकों के मुताबिक हर यूनिट में एक प्रोफेसर, एक-एक एसोसिएट और असिस्टेंट प्रोफेसर के साथ ही 15-15 बेड भी होने चाहिए। हालांकि यहां चेस्ट एवं टीबी विभाग, ईएनटी, नेफ्रो, न्यूरो सर्जरी, हार्ट, नेत्र रोग समेत कई विभागों में प्रोफेसर ही नहीं हैं। चर्म रोग विभाग में डा. प्रज्ञा संविदा पर कार्यरत प्रोफेसर हैं। चिकित्सकों की भारी कमी है। एंडोक्रायनोलोजी एवं रेडियोडाइग्नोस्टिक में जीरो फैकल्टी है। रेडियो में एसोसिएट प्रोफेसर डा. यास्मीन उस्मानी को तीन दिन मेरठ और दो दिन सहारनपुर से संबद्ध किया गया है, इससे जांच और चिकित्सा शिक्षा दोनों पर ही विपरीत असर पड़ रहा है। एमसीआई के मानकों के मुताबिक एनेस्थीसिया, रेडियोडाइग्नोस्टिक एवं पैथोलोजी में तीन-तीन फैकल्टी अतिरिक्त होनी चाहिए। फैकल्टी की कमी के बीच पीजी छात्रों की परीक्षाएं कैसे कराई गईं, इसपर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। तीन साल पहले एमसीआई की टीम ने मेडिसिन, साइकेट्री, गायनी एवं अन्य विभागों में बेड आक्यूपेंसी की पड़ताल की। यहां 80 की जगह सिर्फ 65 प्रतिशत बेड आक्यूपेंसी मिली।
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अगले साल सुधारेंगे रैंकिंग
रैंकिंग का पैमाना क्या है, इसे समझना जरूरी है। प्रदेश के सभी मेडिकल कालेजों में फैकल्टी की कमी है। केजीएमयू का बजट कई सौ करोड़, जबकि एलएलआरएम का करीब 20 करोड़ है। कई बातों का असर पड़ता है। पूरा प्रयास किया जाएगा, अगले साल रैंकिंग सुधर जाएगी।
डा. ज्ञानेंद्र सिंह, प्राचार्य, एलएलआरएम
लानी होंगी नई प्रतिभाएं
एलएलआरएम की यह रैंकिंग निराशाजनक है। आज पश्चिमी उप्र के तकरीबन सभी बड़े चिकित्सक एलएलआरएम के पढ़े हैं। मेडिकल कालेज के मेडिसिन विभाग की साख प्रदेश में सर्वोच्च थी। अब, मेडिकल कालेज नई प्रतिभाओं को आकर्षति नहीं कर पा रहा है, इस दिशा में प्रयास करना होगा। पीएमएस एवं चिकित्सा शिक्षा का काडर अलग करना चाहिए, जो नौकरशाही के नियंत्रण से बाहर हो। डा. राजीव अग्रवाल, हृदय रोग विशेषज्ञ
अब निजी क्षेत्र की चुनौती
मेडिकल कालेज, केजीएमयू और कानपुर के बाद तीसरे नंबर पर था। डा. टीएन मल्होत्र, डा. अदीप मित्र, डा. एलहेंस और प्रो. श्रीवास्तव जैसे बड़े नाम यहां थे। मेरठ में निजी क्षेत्र बेहद विकसित है, ऐसे में एलएलआरएम के नए डाक्टरों को सीखने के लिए क्वालिटी आफ पेशेंट नहीं मिलते। अपने को बेहतर करने के लिए उन्हें अतिरिक्त प्रयास करने होंगे।
डा. ममतेश गुप्ता, हृदय रोग विशेषज्ञ
फैकल्टी और एक्सपोजर की कमी
मैंने मेरठ से एमबीबीएस और नई दिल्ली से पीजी और डीएम किया। वहां मेरठ में ग्रहण की गई शिक्षा मेरे बहुत काम आई। उन दिनों यहां बेहतरीन प्रोफेसर थे। अब फैकल्टी और उनके एक्सपोजर की बड़ी कमी है। कई डाक्टर मेडिकल छोड़ना चाहते हैं, यह निराशाजनक है। संस्थान को उच्चता पर रहने के लिए नए सिरे से विचार करना होगा।
डा. अमित उपाध्याय, बाल रोग विशेषज्ञ
1963 में नींव पड़ी, 66 में पहला बैच चला
गढ़ रोड पर 150 एकड़ के विशाल परिसर में स्थित मेडिकल कालेज की नींव 13 सितंबर 1963 में तत्कालीन मुख्यमंत्री सीबी गुप्त ने रखी। अगस्त 1966 में 50 छात्रों का पहला बैच कैंपस में आया। अब तक 66 हजार से ज्यादा छात्र पढ़कर यहां से निकल चुके हैं। यहां से पढ़े छात्र यूरोप एवं अमेरिका के सबसे बड़े अस्पतालों में प्रतिष्ठित डाक्टर हैं। वर्तमान में यहां 26 विभाग हैं, 14 आपरेशन थिएटर हैं। इसके साथ ही 650 एमबीबीएस, 210 पीजी छात्र, 225 पैरामेडिकल स्टाफ, 392 अन्य इंप्लाई एवं सौ नर्सें कार्यरत हैं। कुल 1040 बेड हैं, जिनमें 750 बेड एमसीआई के मानकों के अधीन संचालित हैं। रोजाना करीब ढाई हजार मरीज ओपीडी में पहुंचते हैं। उधर, 150 करोड़ की लागत से सुपर स्पेशियलिटी ब्लाक भी बना है।

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