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हिंडन किनारे मियावाकी पद्धति से तैयार हो रहा प्राकृतिक वन, ये होगी खासियत

प्रदेश की नदियों को पुनर्जीवित करने तथा नदियों को प्रदूषण मुक्त बनाकर इनका प्रवाह अविरल व निर्मल बनाने के लिए गंगा यमुना की सहायक नदियों के किनारे पर हरियाली की योजना पर काम शुरू।

By Taruna TayalEdited By: Published: Wed, 22 Jul 2020 06:30 AM (IST)Updated: Wed, 22 Jul 2020 09:08 AM (IST)
हिंडन किनारे मियावाकी पद्धति से तैयार हो रहा प्राकृतिक वन, ये होगी खासियत
हिंडन किनारे मियावाकी पद्धति से तैयार हो रहा प्राकृतिक वन, ये होगी खासियत

सहारनपुर, [बृजमोहन मोगा]। प्रदेश की नदियों को पुनर्जीवित करने तथा नदियों को प्रदूषण मुक्त बनाकर इनका प्रवाह अविरल व निर्मल बनाने के लिए गंगा यमुना की सहायक नदियों के किनारे वृहद स्तर पर हरियाली की योजना पर काम शुरू हो गया है। इसे ध्यान में रखते हुए ही जनपद में ङ्क्षहडन नदी के दोनों किनारों पर 81 हजार पौधे लगाए गए हैं। इस पूरे क्षेत्र को स्वच्छ कर इसके किनारे हरित पट्टी बनाई जा रही है। यही नहीं नदी के एक किनारे पर मियावाकी पद्धति पर प्राकृतिक वन (आक्सीजन बैंक) भी तैयार किया जा रहा है।

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जनपद में ङ्क्षहडन नदी की लंबाई 90 किलोमीटर है। ङ्क्षहडन नदी का उद्गम स्थल शिवालिक क्षेत्र से लगभग 10 किमी वन क्षेत्र की पहाडिय़ों से होता है, जो कालूवाला के पास मैदान में निकलती है। प्रथम चरण में नदी के दोनों किनारों पर 81 हजार पौधे लगाए गए। इस कार्य में वन विभाग के अलावा अन्य विभागों व ग्रामीणों का भी सहयोग लिया गया। मुख्य रूप से नदी के किनारे अर्जुन, जामुन, शीशम, सागौन, चकरेसिया, आम, नीम, शीशम, जामुन, अर्जुन, खैर, आंवला आदि प्रजातियों के पौधों को लगाया गया है।

मियावाकी प्राकृतिक वन में 15 हजार पौधे लगाए

प्रभागीय निदेशक सामाजिक वानिकी प्रभाग विजय ङ्क्षसह ने बताया कि ङ्क्षहडन नदी के किनारे 81000 पौधों का रोपण किया गया है। इसके अलावा मियावाकी पद्धति से एक प्राकृतिक वन (आक्सीजन बैंक) तैयार किया जा रहा है। इसमें अभी 15 हजार पौधों का रोपण किया गया है। इसके चार क्लोन बनाए गए हैं। प्रथम क्लोन में शीशम-सागौन आदि के पौधे लगाए गए हैं। उप वृक्ष में आंवला आदि प्रजाति के पौधे लगाए गए हैं। तीसरे में अमरूद, नींबू आदि के तथा चौथे तुलसी, एलोविरा आदि औषधीय पौधे लगाए गए हैं। यहां एक हेक्टेयर में 35 हजार पौधे लगाए जाएंगे। वनाधिकारी विजय ङ्क्षसह का कहना है कि यह टिम्बर वन न होकर एक तरह से आक्सीजन बैंक होता है, जो शहर के आसपास बनाए जाते हैं। यहीं पर अलग से इंडस्ट्रियल प्लांटेशन भी किया गया है। इसमें घाना सागौन, शीशम, यूकेलिप्टस व खैर आदि के पौधे लगाए गए हैं। उन्होंने बताया कि यह दोनो ही काम नये हैं। पहली बार इस पर काम किया जा रहा है।

यह है मियावाकी पद्धति

मियावाकी पद्धति जापान के डा. अकीरा मियावाकी के द्वारा तैयार प्राकृतिक वन पर आधारित है। इसके लिए पूरे क्षेत्र को स्वच्छ किया जाता है और पौधारोपण के लिए एक फुट गहरा गड्ढा बनाकर उसमें निर्धारित मात्रा में भूसा और कम्पोस्ट का मिश्रण बनाया जाता है। इसकी खास बात यह है कि जब पौधारोपण किया जाता है उसी समय गड्ढे तैयार किये जाते हैं। इसमें पौधारोपण के लिए दो फुट की दूरी निर्धारित की गई है। 


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